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* गीता दर्शन भाग-42
आखिरी मौत नहीं; यह जन्म कोई पहला जन्म नहीं। यह होता ही के लिए, एक पूरा जीवन का वर्तुल है। रहेगा। इतनी जल्दी क्या है!
पर यह है क्या? और यह समय का इतना फैलाव और इसलिए आप जानकर हैरान होंगे, पूरब के पास टाइम | | सिकुड़ाव, यह है क्या? और अगर यही है, यही समय का घूमता कांशसनेस बिलकुल नहीं है। पश्चिम के पास टाइम कांशसनेस है। वर्तुल ही सब कुछ है, तो इसमें घूमते जाना समझदारी नहीं है। इस पश्चिम समय के प्रति बहुत सजग है; एक-एक सेकेंड की सजगता | वर्तुल के बाहर निकलना समझदारी है। इस चक्र के बाहर होना है। यहां! यहां अगर हम घड़ी हाथ पर बांध भी लेते हैं, तो वह समझदारी है। समय के बाहर होना बुद्धिमत्ता है। टु ट्रांसेंड टाइम, शृंगार ज्यादा है, वह समय का बोध कम है। और पुरुष को तो | समय के पार हो जाना बुद्धिमत्ता है। क्योंकि जो समय के पार हो थोड़ी-बहुत समय की जरूरत पड़ गई, ट्रेन पकड़नी है। स्त्रियां भी | | गया, वह सृष्टि और प्रलय के पार हो गया। जो समय के पार हो घड़ी बांधे हुए हैं चूड़ियों की भांति। अगर एकदम से उनसे पूछो कि | | गया, वह जन्म और मृत्यु के पार हो गया। जो समय के पार हो घड़ी में कितने बजे हैं, तो पता नहीं चलता।
| गया, वह दुख और सुख के पार हो गया। जो समय के पार हो जाता मैं तो एक दिन ट्रेन में बैठा था; सामने एक महिला बहुत सजी है, वह उस अलोक को उपलब्ध हो जाता है, जहां से न कोई लौटना हुई, काफी सोना-वोना पहने बैठी थी। एयरकंडीशन में बैठी थी, | | है, जहां से न कोई वापसी है, न कोई पुनरागमन है। जहां परम तो धनपति के घर की ही होगी। बड़ी शानदार घड़ी उसने बांध रखी | | जीवन में प्रवेश, परम अस्तित्व में प्रवेश है; अनादि और अनंत। थी। मैंने उससे पूछा कि घड़ी में कितने बजे हैं? उसने कहा, आज काल के इस रहस्य को अगर जानना हो, तो ध्यान में थोड़ी गति ही आई है। और मुझे इसे देखने का ठीक अंदाज नहीं। आपकी घड़ी | | करें, क्योंकि ध्यान काल के विपरीत है। ध्यान में जितनी गति होगी, में बताइए कितने बजे हैं? वह बांधे हुए है बस!
उतने समय के बाहर हो जाएंगे। समय का बोध पूरब को हो नहीं सकता, क्योंकि समय इतना | इसलिए कभी तो ध्यान में ऐसा हो जाता है कि घंटों बीत गए लंबा है हमारे पास कि ठीक है, कोई जल्दी नहीं है। पश्चिम को और जागकर वह व्यक्ति कहता है कि क्या हुआ, कितना समय समय की प्रतीति गहन हो गई. क्योंकि ईसाइयत ने कहा, बस एक बीत गया। मझे तो कछ पता ही नहीं। मैं था. होश था. बेहोश नहीं ही जन्म है, और मामला इसके पीछे सब समाप्त हो जाएगा। जो था, लेकिन समय का मुझे कुछ पता नहीं है। घड़ी जैसे रुक गई, भी करना है, अभी कर लो। त्वरा आ गई। जल्दी करो। फैसले का ठहर गई भीतर की। दिन निकट है!
ध्यान समय के बाहर उतरने की विधि है। कृष्ण कहते हैं अर्जुन से कि अगर तू ब्रह्मा के हिसाब से सोचे, । ये बातें मैंने आपसे कहीं, लेकिन ये बातें आपको पूरी तभी समझ तो बस एक दिन और एक रात। सुबह होती है सृष्टि; सांझ होते | में आ पाएंगी, जब ध्यान की थोड़ी-सी झलक और स्वाद आपको आधी हो जाती; रात होती, सुबह होते, पूरी हो जाती; प्रलय आ | मिलना शुरू हो जाए। तो काल का रहस्य खयाल में आ जाता है, जाता। यह चौबीस घंटे का खेल है। एक चक्र है ब्रह्मा के लिए। | और काल के बाहर जाने की क्षमता भी आ जाती है। इसमें कुछ भी नया नहीं है अर्जुन। ब्रह्मा के लिए सब एक वर्तुल आज इतना ही। है। वही आरा नीचे आ जाएगा और सब समाप्त हो जाएगा। लेकिन अभी जाएंगे नहीं। पांच मिनट तक ये काल के बाहर
लेकिन कृष्ण कहते हैं, समय के इस रहस्य को जो जान लेता है, | जाने के लिए संन्यासी कोशिश करेंगे कीर्तन में। आप भी साथी हो वह तत्वविद है और ऐसे योगीजन परम गति को पाते हैं। | जाएं। कौन जाने, किसी भी क्षण क्रांति घटित हो सकती है।
समय के इस रहस्य को जो जान लेता है! यह समय का रहस्य कोई उठेगा नहीं। और मैंने इतनी बार कहा, लेकिन वे लोग आना क्या हुआ? यह समय का रहस्य यह हुआ कि जानने वाली चेतना | शुरू कर दिए आगे की तरफ। आप वहीं रुकें। वहीं रुकें। और बाद पर ही समय का फैलाव या सिकुड़ाव निर्भर है।
में भी जब कीर्तन होता है, तब उठ आते हैं। आप जब उठ आते हैं, ब्रह्मा की चेतना के लिए इतना विराट आयोजन सिर्फ एक दिन तो बाकी लोगों को भी उठने की इच्छा पैदा हो जाती है। और रात है। हमारे लिए जो घड़ी में बीतता हुआ एक सेकेंड है, वह | वहीं खड़े रहें। वहीं से भागीदार बनें। ज्यादा फासला नहीं है। किसी छोटे मकोड़े के लिए, किसी पतिंगे के लिए, किसी अमीबा ज्यादा दूरी नहीं है। वहीं से तालियां बजाएं। गीत दोहराएं। बैठकर