SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञान विजय है - | भी गीत गाएं और साथ दें। पांच मिनट लीन होकर देखें। सब प्रश्न, सब जिज्ञासा, सब गीता, वेद छोड़कर वहां उतर जाएं जहां से गीता | जन्मती है और वेद आविर्भूत होते हैं। डूबें थोड़ा अपने भीतर! हुआ, जो प्रौढ़ हुआ। जिसने अस्तित्व को स्वीकार किया और पूछना बंद किया। और जिसने जाना कि मैं एक लहर हूं इस विराट सागर में, क्या पूर्वी ? किससे पूछू ? कौन देगा जवाब? मैं खुद ही जवाब हूं। चुप हो जाऊं, मौन हो जाऊं, उतरूं गहरे में। जानूं कि अस्तित्व क्या है। पछं न. उत्तर की तलाश न करूं. अनभव की तलाश करूं। उस अनुभव में जो फलित होता है, उस अनुभव में व्यक्ति परमात्मा को उपलब्ध हो जाता है, ऐसा जानने वालों ने कहा है। कृष्ण कहते हैं, ऐसा जानने वालों ने कहा है। ऐसा कहा जाता है। ऐसा क्यों कहते हैं? यह आखिरी बात, फिर हम सांझ बात करेंगे। कृष्ण ऐसा क्यों कहते हैं कि ऐसा कहा जाता है? ऐसा कृष्ण इसलिए कहते हैं कि मेरा कोई दावा नहीं है कि ऐसा मैं कहता हूं। जिन्होंने भी जाना है, उन्होंने ऐसा ही कहा है। मैं कोई दावेदार नहीं हूं। कृष्ण ऐसा नहीं कहते कि ऐसा मैं ही कह रहा हूं। ऐसा उन्होंने भी कहा है, जो जानते हैं। ज्ञान ऐसा कहता है। इससे व्यक्ति को विदा करने की कोशिश है। और ध्यान रहे, ज्ञानी में व्यक्ति नहीं रह जाता। बोले, तो भी नहीं रह जाता। मैं कहे, तो भी नहीं रह जाता। ये सिर्फ कामचलाऊ बातें रह जाती हैं। ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं, ऐसा कहा जाता है। ऐसा मैं भी कहता हूं। ऐसा और भी कहते हैं। ऐसा जो भी जानते हैं, वे कहते हैं। ऐसा ज्ञान का कथन है। ऐसा ज्ञान कहता है। समस्त द्वंद्वों से पार, कुतूहल से पार, व्यर्थ जानने की दौड़ और जिज्ञासा से पार, प्रौढ़ हुआ चित्त, समतुल हुआ चित्त, निद्वंद्व हुआ चित्त, समबुद्धि में ठहरा हुआ चित्त, अकंप हुआ चित्त, परमात्मा को उपलब्ध हो जाता है। पांच मिनट और बैठे रहेंगे। अभी इतनी बात सुनी; प्रश्न हैं, जवाब हैं, पांच मिनट थोड़ा अनुभव में उतरने की कोशिश करेंगे। हालांकि मन यह करता है कि सुन तो सकते हैं दो घंटे, लेकिन अनुभव में पांच मिनट उतरने में भी कठिनाई होती है। तो पांच मिनट अनुभव में उतरेंगे। और मैं चाहूंगा कि साथ दें। यहां कीर्तन करेंगे संन्यासी, तो वे आनंद में मग्न हो रहे हैं, आप भी उनके आनंद में भागीदार हों। ताली बजाएं, उनके साथ गीत गाएं। संकोच न करें, पड़ोसी क्या कहेगा! वह वैसे ही काफी कह रहा है। आप उसकी कोई बहुत फिक्र न करें। जिनको नाच में सम्मिलित होना हो, वे भी ऊपर आ जाएं या सामने आ जाएं। जिनको बैठकर ताली देनी हो, गीत गाने हों, वे
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy