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<< ज्ञान विजय है -
आत्म-विजय है।
तुम कहते हो कि सभी के भीतर आत्मा नहीं है! तो गुरजिएफ कहता तो एक तो अर्थ है कि हमारा जो व्यक्तित्व है, वह इतना स्वाधीन था कि जिसे पता ही नहीं है, उसके भीतर होना और न होना बराबर हो कि मैं कह सकूँ कि मेरा बल, मेरा वश मेरे ऊपर है। आप मुझ | है। यानी एक आदमी कहे कि मेरे घर में खजाना है। उससे पूछो, पर भरोसा कर सकते हैं। मैं अपने पर भरोसा कर सकता हूं। कहां है? वह कहे कि यह मुझे पता नहीं। तो न होने और होने में क्या
लेकिन कर सकते हैं? अगर सोचेंगे, तो पाएंगे, क्या भरोसा कर फर्क है? कोई भी तो फर्क नहीं है; वर्चुअली कोई भी फर्क नहीं है। सकते हैं। एक व्यक्ति को आप कहते हैं कि कल भी तुझे मैं प्रेम | तो गुरजिएफ कहता था, मैं नहीं मानता कि सबके भीतर आत्मा करूंगा। कभी सोचा है आपने कि एक गुलाम आदमी यह वादा कर है। और मैं कहता हूं कि वह ठीक कहता था। आत्मा उसी के भीतर रहा है। कल? कल भी प्रेम कर सकेंगे? थोड़ा एक बार और सोचें। है. जो जानता है।
और कल अगर प्रेम कपूर की तरह तिरोहित हो गया आकाश में, | एक आदमी के बाबत मैंने सुना है, बड़ी हड़बड़ी में एक सड़क तो क्या होगा उपाय उसको वापस लाने का?
के किनारे खड़े होकर वह अपने सब खीसे देख रहा है। दो-चार इसे ऐसा देखें, आज प्रेम में पड़ गए हैं किसी के, अगर मैं आपसे लोग भी इकट्ठे खड़े हो गए हैं उसकी हड़बड़ी देखकर। फिर इस कहं कि एक घंटा इस व्यक्ति को अब प्रेम मत करें। अगर आप खीसे में हाथ डालता है, फिर उस खीसे में हाथ डालता है। सिर्फ समर्थ हों कि कहें कि ठीक, यह एक घंटा मेरी जिंदगी में इससे प्रेम | एक खीसा कोट का ऊपर का छोड़ देता है। का घंटा नहीं रहेगा। तो भरोसा किया जा सकता है कि कल जब प्रेम | फिर आखिर किसी ने पूछा कि महाशय, आप कई बार खीसों उड़ जाए, तब भी आप, प्रेम करने का जो वचन दिया है, वह पूरा में हाथ डालकर देख चुके और बड़े परेशान हैं; पसीने की बूंदें आ कर सकें। अन्यथा भरोसा नहीं किया जा सकता है। अभी आप | | गईं; मामला क्या है ? उस आदमी ने कहा कि मेरा बटुआ खो गया कहेंगे, यह कैसे हो सकता है कि मैं प्रेम न करूं? कल आप कहेंगे है। मैंने सब खीसे देख लिए हैं, सिर्फ एक को छोड़कर। तो उन्होंने कि यह कैसे हो सकता है कि मैं प्रेम करूं? विवश, बंधे हुए हैं। पूछा कि महाशय, उसको भी देख क्यों नहीं लेते? उस आदमी ने __एक तो पहला, प्राथमिक और बहिर अर्थ है, स्वयं को इस अर्थ कहा कि उसे देखने में बड़ा डर लगता है कि अगर उसमें भी न हुआ में जीत लेने का कि मैं अपने पर भरोसा कर सकूँ। दूसरा अर्थ है, तो? इसलिए मैं उसको छोड़कर बाकी में देख रहा हूं! स्वयं को जान लेने का।
भीतर जाने में भी हम डरते हैं कि कहीं आत्मा न हुई तो? इधर महावीर ने कहा है, जिसने जाना स्वयं को, उसने जीता भी। | बाहर से किताब पढ़कर बैठ जाते हैं; बड़ी चैन मिलती है कि भीतर इसलिए महावीर के साथ जिन जुड़ गया। जिन का अर्थ है, जिसने | | आत्मा है, परमात्मा है। अमृत के झरने फूट रहे हैं। आनंद की जीता। लेकिन जाना, तो जीता। क्योंकि जिसे हम जानते ही नहीं, धाराएं बह रही हैं। बाहर किताब में पढ़कर बड़े निश्चित हो जाते • उसे हम जीतेंगे कैसे? जिसे जीतना है, उसे जाने बिना जीतने का हैं। लेकिन कभी खीसे में हाथ नहीं डालते भीतर। कहीं न हुई तो? कोई उपाय नहीं है। ज्ञान विजय है। जिसे भी हम जान लेते हैं, उसके | | तो एक भरोसा और टूट जाए, एक आशा और विखंडित हो जाए। हम मालिक हो जाते हैं।
एक आश्वासन, जिसके सहारे सब दुख झेले जा सकते थे; सब तो दूसरे अर्थ में हम आत्म-अज्ञानी हैं। हमें कुछ पता ही नहीं | खीसे टटोले जा सकते थे जिसके सहारे कि अगर यहां न मिला तो कि मैं कौन हूं! नाम-धाम पता है, उससे कुछ होने का हमारा संबंध ठीक है, कोई हर्ज नहीं, वहां तो खोज ही लेंगे; तो वहां तो मिल ही नहीं है। पता ही नहीं, मैं कौन हूं! इसकी कोई खबर ही नहीं। जिसे जाएगा। कहीं वह भी न टूट जाए, उस भय से भीतर झांककर भी यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूं, उसे आत्मवान कहना भी सिर्फ नहीं देखते। शब्दों के साथ खिलवाड़ है।
__ आत्मजयी का अर्थ है, वह व्यक्ति, जो अपने भीतर पूरी आंखों अभी एक फकीर था, गुरजिएफ। वह कहता था, सभी के भीतर | से देख सकता है। वह जानता है कि वहां है. उसने देखा है कि वहां आत्मा नहीं है। और जब उसने पहली दफा यह कहा. तो बहत | है; उसने पाया है कि वहां है। अब वह निर्भय है। अब उसकी छाती हड़बड़ी मची। क्योंकि लोगों ने कहा कि यह तो किसी शास्त्र में नहीं | में छुरा भोंक दो, तो भी निर्भय है; क्योंकि वह जानता है, यह छुरा लिखा है। सभी शास्त्रों में लिखा है, सबके भीतर आत्मा है। और उसमें प्रवेश नहीं कर सकेगा, जिसे उसने जान लिया है। अब मौत