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________________ समालकियत की घोषणा - कि इंद्रियां बड़ी दुश्मन हैं। इंद्रियां दुश्मन नहीं हैं। इंद्रियां दुश्मन हैं, अगर आप मालिक नहीं हैं। ध्यान रखना, यह फर्क है। इंद्रियां मित्र हो जाती हैं, अगर आप मालिक हैं। इसलिए भूलकर इंद्रियों को गाली मत देना। कई बैठे-बैठे यही गालियां देते रहते हैं कि इंद्रियां बड़ी शत्रु हैं, बड़े गड्ढों में गिरा देती हैं! कोई इंद्रिय गड्ढे में नहीं गिराती। आप गड्ढे में गिरते हैं, तो इंद्रियां बेचारी साथ देती हैं। आप स्वर्ग की तरफ जाने लगें, इंद्रियां वहां भी साथ देती हैं; वे उपकरण हैं।। मगर आपने कभी मालकियत की घोषणा न की। आप अपने नौकरों के पीछे चल रहे हैं। कसूर किसका है? और नौकरों के पीछे चलकर फिर गालियां दे रहे हैं कि नौकर हमको भटका रहे हैं, वे हमको गलत जगह ले जा रहे हैं! कम से कम कहीं तो ले जा रहे हैं! चला तो रहे हैं किसी तरह। आप तो मौजूद ही नहीं हैं। आप तो मरे की भांति हैं; जिंदा ही नहीं हैं। आप हैं या नहीं, इसका भी पता नहीं चलता। कृष्ण इसलिए बहुत ठीक डिस्टिंक्शन करते हैं। वे इंद्रियों को नहीं कहते कि इंद्रियां शत्रु हैं। और जो आदमी आपसे कहे, इंद्रियां शत्रु हैं, समझना कि उसे कुछ भी पता नहीं है। कृष्ण कहते हैं, मालिक न होना शत्रुता बन जाती है अपनी। मालिक हो गए कि मित्र हो गए। आज के लिए इतना ही। लेकिन उठेंगे नहीं। पांच मिनट कीर्तन के लिए रुकेंगे। शरीर तो कहेगा कि उठो। जरा काबू रखना। इंद्रियां तो कहेंगी कि भागो। मगर जरा काबू रखना। एक पांच मिनट जरा मालिक होने की कोशिश करना। जो भागा, हम समझेंगे, गुलाम है। तो हम पांच मिनट थोड़ा कीर्तन में डूबेंगे, उसमें जरा डूबे। कम से कम बैठकर वहीं से कीर्तन में साथ दें, आवाज दें, ताली बजाएं, आनंदित हों। 55
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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