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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 -- --- गानालिटर है, जो आप हैं। इसे स्मरण रखें। लगते हैं कि अब कामातुर हो जाओ। चौदह साल के पहले कोई यह स्मरण, रिमेंबरेंस जितनी घनी हो जाएगी, उतना ही आप कामवासना उठती हुई मालूम नहीं पड़ती। चौदह साल हुए, ग्लैंड पाएंगे, आप अलग हैं। जिस दिन आप पाएंगे, आप अलग हैं, उसी परिपक्व हो जाती है, सक्रिय हो जाती है। सक्रिय हुई ग्लैंड कि उसने दिन आपकी मालकियत की घोषणा संभव हो पाएगी। और कठिन | - आपको धक्के देने शुरू किए कि कामवासना में उतरो, भागो, नहीं है फिर यह घोषणा कर देना कि मैं मालिक हूं। लेकिन एक दफे दौड़ो। जाओ, नंगी तस्वीरें देखो, फिल्म देखो, कहानी पढ़ो; कुछ पृथकता को अनुभव करना कठिन है; मालकियत की घोषणा करो। कुछ न मिले, तो रास्ते पर किसी को धक्का दे दो, गाली दे आसान है। | दो, कुछ न कुछ करो। और जो व्यक्ति इंद्रिय और शरीर का मालिक हो जाता है, वह अब यह आप कर रहे हैं, इस भ्रांति में मत पड़ना, क्योंकि आप अपना मित्र हो जाता है। मित्र इसलिए हो जाता है कि उसकी इंद्रियां तो चौदह साल पहले भी थे। लेकिन एक ग्लैंड सक्रिय नहीं थी; वही करती हैं, जो उसके हित में है। एक इंद्रिय सोई हुई थी। अब वह जग गई है। वह इंद्रिय ही आपसे अन्यथा इंद्रियों के हाथ में चलाना बड़ा खतरनाक है। शरीर हमें करा रही है। अगर इतना होश पैदा कर सकें कि यह इंद्रिय मुझसे चला रहा है, जिसके पास कोई भी होश नहीं, समझ नहीं, चेतना | करा रही है; और मैं पृथक हूं; जिस दिन आपको पृथकता का नहीं। इंद्रियां हमें दौड़ा रही हैं, लेकिन हमें खयाल में नहीं है कि दौड़ अनुभव हो जाए, उसी दिन आप अपनी मालकियत की घोषणा कर किस तरह की है। सकते हैं। अभी रूस में एक मनोवैज्ञानिक कुछ समय पहले चल बसा, और मजा ऐसा है कि आपने घोषणा की कि मैं मालिक हूं, कि पावलव। उसने मनुष्य की ग्रंथियों पर बहुत से काम किए हैं। उसमें सारी इंद्रियां सिर झुकाकर पैर पर पड़ जाती हैं। आपकी घोषणा की एक काम आपको खयाल में ले लेने जैसा है। उसका यह कहना है | सामर्थ्य चाहिए बस। कि अगर आदमी की कोई ग्रंथि, विशेष ग्रंथि काट दी जाए, कोई | मैंने आपसे कहानी कही ग्लैंड अलग कर दी जाए, तो उसमें से कुछ चीजें तत्काल नदारद | | बाहर है, या सोया है, या बेहोश है, या मौजूद नहीं है। नौकर सब हो जाती हैं। मालिक हो गए हैं। उस कहानी को हम थोड़ा और आगे बढ़ा ले जैसे आप में क्रोध है। आप सोचते हैं, मैं क्रोध करता हूं, तो आप सकते हैं कि मालिक वापस लौट आया। उसका रथ द्वार पर आकर गलती में हैं। आपकी इंद्रियों में क्रोध की ग्रंथियां हैं और जहर इकट्ठा रुका। जो नौकर दरवाजे पर था, उसने चिल्लाकर यह नहीं कहा कि है। वह आपने जन्मों-जन्मों के संस्कारों से इकट्ठा किया है। वही मैं मालिक हूं। कैसे कहता! वह जल्दी से उठा और उसके पैर छुए। आपसे क्रोध करवा लेता है-वह जहर। उसने कहा कि बहुत देर लगाई। हम बड़ी प्रतीक्षा कर रहे थे! वह पावलव ने सैकड़ों प्रयोग किए कि वह जहर की गांठ काटकर | मालिक घर के भीतर आया। सारे नौकरों में खबर पहुंच गई। वे फेंक दी, अलग कर दी। फिर उस आदमी को आप कितनी ही सब प्रसन्न हैं; नाराज भी नहीं हैं; मालिक वापस लौट आया। अब गालियां दें, वह क्रोध नहीं कर सकता; क्योंकि क्रोध करने वाला | घर में कोई घोषणा नहीं करता कि मैं मालिक हूं। मालिक की उपकरण न रहा। ऐसे ही, जैसे मेरा हाथ आप काट दें। और फिर | मौजूदगी ही घोषणा बन गई। मुझसे कोई कितना ही कहे कि हाथ बढ़ाओ और मुझसे हाथ ठीक ऐसी ही घटना इंद्रियों के जगत में घटती है। एक दफे आप मिलाओ, मैं हाथ न मिला सकूँ। कितना ही चाहूं, तो भी न मिला | जान लें कि मैं पृथक हूं, और एक बार खड़े होकर कह दें कि मैं सकू। क्योंकि हाथ तो नहीं है, चाह रह जाएगी नपुंसक पीछे। हाथ | | पृथक हूं, आप अचानक पाएंगे कि जो इंद्रियां कल तक आपको तो मिलेगा नहीं, उपकरण नहीं मिलेगा। खींचती थीं, वे आपके पीछे छाया की तरह खड़ी हो गई हैं। वह इंद्रियों के पास अपने-अपने संग्रह हैं हार्मोस के, और प्रत्येक आपकी आज्ञा मानना उन्होंने शुरू कर दिया है। इंद्रिय आपसे कुछ काम करवाती रहती है और आप उसके धक्के आप आज्ञा ही न दें, तो इंद्रियों का कसूर क्या है ? आप मौजूद में काम करते रहते हैं। जब आपकी कामेंद्रिय पर जाकर वीर्य इकट्ठा ही न हों, तो आज्ञा कौन दे? और इंद्रियों को गाली मत देना, जैसा हो जाता है, केमिकल्स इकट्ठे हो जाते हैं, वे आपको धक्का देने कि अधिक लोग देते रहते हैं। कई लोग यही गालियां देते रहते हैं 54
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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