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________________ ← गीता दर्शन भाग - 3 > बैल मुझे गाली वापस तो नहीं लौटा देंगे। तो क्या मेरा बिगड़ेगा? वह आदमी ठीक कहता है। हमारा गणित बिलकुल ऐसा ही है। जो आदमी गाली वापस नहीं लौटा सकता, उसे गाली देने में हर्ज क्या है? इसलिए अपने से कमजोर को देखकर हम सब गाली देते हैं। कभी तो हम बेवक्त भी गाली देते हैं, जब कि कोई जरूरत भी न हो । कमजोर दिखा, कि हमारा दिल मचल आता है कि थोड़ा इसको सता लो। जीसस ने कहा कि बैलों को गाली तू दे रहा है, अगर वे गाली लौटा सकते, तो कम खतरा था, क्योंकि निपटारा अभी हो जाता। लेकिन चूंकि वे गाली नहीं लौटा सकते, लेकिन गाली तो लौटेगी। तू महंगे सौदे में पड़ेगा। यह गाली देना छोड़ । जीसस की तरफ उस आदमी ने देखा ; जीसस की आंखों को देखा, उनके आनंद को, उनकी शांति को। उसने उनके पैर छुए और कहा कि मैं कसम लेता हूं कि अब मैं इन बैलों को गाली नहीं दूंगा । जीसस दूसरे गांव चले गए। दो-चार दिन उस आदमी ने बड़ी मेहनत से अपने को रोका। लेकिन कसमों से दुनिया कोई रुकावटें नहीं होतीं। कसम से कहीं कोई रुकावट होती है ? समझ से रुकावट होती है। दो-चार दिन रोका अपने को, जबरदस्ती । खा ली थी कसम ईसा के प्रभाव में। दो-चार दिन में प्रभाव क्षीण हुआ, आदमी अपनी जगह वापस लौट आया। उसने कहा कि छोड़ो भी, ऐसे तो हम मुसीबत में पड़ जाएंगे। बैलगाड़ी चलाना मुश्किल हो गया है। हिसाब बैलगाड़ी चलाने का रखें कि गाली न देने का रखें ! बैलों को जोतें कि अपने को जोते रहें! बैलों को सम्हालें कि खुद सम्हालें! यह तो एक बहुत मुसीबत हो गई। गाली उसने वापस देनी शुरू कर दी। चार दिन जितनी रोकी थी, उतनी एक दिन में निकाल ली। रफा-दफा हुआ। मामला हल्का हुआ। मन उसका शांत हुआ। कोई तीन-चार महीने बाद जीसस उस गांव से वापस निकल रहे हैं । उसको तो पता भी नहीं था कि यह आदमी फिर मिल जाएगा रास्ते पर। वह धुआंधार गालियां दे रहा है बैलों को। जीसस ने खड़े होकर राह के किनारे से कहा, मेरे भाई ! उसने देखा जीसस को, उसने कहा बैलों से, देखो बैल, ये मैंने तुम्हें गालियां बताईं जैसी कि मैं तुम्हें पहले दिया करता था। बैलों से बोला, ये मैंने तुम्हें गालियां दीं जैसी कि मैं तुम्हें पहले दिया करता था। अब मेरे प्यारे बेटो, जरा तेजी से चलो। जीसस ने कहा कि तू बैलों को ही धोखा नहीं दे रहा है, तू मुझे भी धोखा दे रहा है। और तू मुझे धोखा दे, इससे कुछ बहुत हर्जा | नहीं है; तू अपने को धोखा दे रहा है। अंतिम धोखा तो खुद पर ही गिर जाता है। जीसस ने कहा, हो सकता है, मैं दुबारा इस गांव फिर कभी न आऊं । मैं माने लेता हूं कि तू बैलों को गालियां नहीं दे रहा था, सिर्फ बैलों को पुरानी याद दिला रहा था। लेकिन किसलिए | याद दिला रहा था ! तू मुझे धोखा दे कि तू बैलों को धोखा दे, इसका बहुत अर्थ नहीं है। लेकिन तू अपने को ही धोखा दे रहा है। जीवन में जब भी हम कुछ बुरा कर रहे हैं, तो हम किसी दूसरे के साथ कर रहे हैं, यह भ्रांति है आपकी । प्राथमिक रूप से हम | अपने ही साथ कर रहे हैं। क्योंकि अंतिम फल हमें भोगने हैं। वह जो भी हम बो रहे हैं, उसकी फसल हमें काटनी है। इंच-इंच का हिसाब है। इस जगत में कुछ भी बेहिसाब नहीं जाता है। अपने ही शत्रु हो जाते हैं हम, कृष्ण कहते हैं। उस क्षण में हम अपने शत्रु हो जाते हैं, जब हम कुछ ऐसा करते हैं, जिससे हम अपने को ही दुख में डालते हैं; अपने ही दुख में उतरने की सीढ़ियां निर्मित करते हैं। तो ठीक से देख लेना, जो आदमी अपना शत्रु है, वही आदमी अधार्मिक है। अधार्मिक वह है, जो अपना शत्रु है। और जो अपना शत्रु है, वह किसी का मित्र तो कैसे हो सकेगा? जो अपना भी मित्र नहीं, वह किसका मित्र हो सकेगा ! जो अपने लिए ही दुख के | आधार बना रहा है, वह सबके लिए दुख के आधार बना देगा | पहला पाप अपने साथ शत्रुता है। फिर उसका फैलाव होता है। फिर अपने निकटतम लोगों के साथ शत्रुता बनती है, फिर दूरतम लोगों के साथ। फिर जहर फैलता चला जाता है। पता भी नहीं | चलता। जैसे कि झील में कोई, शांत झील में, एक पत्थर फेंक दे। पड़ती है चोट, पत्थर तो नीचे बैठ जाता है क्षणभर में, लेकिन झील की सतह पर उठी हुई लहरें दूर-दूर तक यात्रा पर निकल जाती हैं। पत्थर तो बैठ जाता है कभी का, लेकिन लहरें चलती चली जाती हैं। अनंत तक। ऐसे ही हम जो करते हैं, हम तो करके चुक भी जाते हैं। आपने | एक गाली दे दी। बात खत्म हो गई। फिर आप गीता पढ़ने लगे। लेकिन वह गाली की जो रिपल्स, जो तरंगें पैदा हुईं, वे चल पड़ीं। | वे न मालूम कितने दूर के छोरों को छुएंगी। और जितना अहित उस गाली से होगा, उतने सारे अहित के लिए आप जिम्मेवार हो गए। आप कहेंगे, कितना अहित हो सकता है एक गाली से ? अकल्पनीय अहित हो सकता है। और जितना अहित हो जाएगा इस 42
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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