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________________ आसक्ति का सम्मोहन → कामातुर होता है। चौबीस घंटे! पशु जब कामातुर होता है, तब की धारा मर जाएगी। सेक्स जो है, बायोलाजिकल है। आपकी मादा नर को या नर मादा को खोजता है। मनुष्य अलग है। उसको आवश्यकता नहीं है उतनी, जितनी प्रकृति आपसे किसी को पैदा नारी दिख जाए, पुरुष दिख जाए, कामातुर हो जाता है। उलटा है। करवा लेगी, इसके पहले कि आप मरें। वह प्रकृति की जरूरत है। कामातुरता पहले आ जाती है पशु में, तब खोज शुरू होती है। और जो व्यक्ति यह जान लेता है कि मैं इंद्रियों के पार हूं, वह मनुष्य को पहले आब्जेक्ट दिखाई पड़ जाए, विषय दिखाई पड़ यह भी जान लेता है कि मैं प्रकृति के पार हूं। वह प्रकृति के चंगुल जाए, और कामातुरता पैदा हो जाती है। और जाल के बाहर हो जाता है। __ मेरे एक मित्र बड़े शिकारी हैं, बहुत सिंहों और बहुत शेरों का तो जैसे भोजन तो जारी रहेगा, लेकिन काम तिरोहित हो जाएगा। शिकार किया है। उनके घर मैं मेहमान था। उनसे मैं पूछने लगा कि यह मैंने फर्क करने को कहा कि हमारी आवश्यकताओं में भी भेद कभी आपने किसी शेर को या सिंह को भोजन कर लेने के बाद | हैं। जिस व्यक्ति की इंद्रिय-आसक्ति मिट गई, उसकी भूख शुद्ध भोजन में उत्सुक पाया? उन्होंने कहा, कभी नहीं। भोजन पर हम | होकर सीमित, स्वाभाविक हो जाएगी। उसका काम शुद्ध होकर बैठे थे। उनके भोजन को देखकर ही मैंने उनसे यह पूछा था। मित्र | राम की ओर गतिमान हो जाएगा। उसकी कामवासना विलीन हो के भोजन को देखकर! वे खाए ही चले जा रहे थे। उनको देखकर जाएगी। क्योंकि वह व्यक्ति की जरूरत ही नहीं है, वह प्रकृति की ही मैंने पूछा था। उनको फिर भी खयाल नहीं आया। | जरूरत है। आप मर जाएं, इसके पहले प्रकृति आपसे इतना काम उन्होंने कहा, आप यह क्यों पूछते हैं? मैंने कहा, मैं इसलिए | | ले लेना चाहती है कि अपनी जगह किसी को छोड़ जाएं। बस, पूछता हूं कि मैं देख रहा हूं कि भोजन की जरूरत बहुत देर पहले | | उससे आपका कोई प्रयोजन नहीं है। वह आपकी जरूरत नहीं है पूरी हो गई है। वैसे भी आपके शरीर में इतना इकट्ठा है कि महीने | गहरे में। दो महीने भोजन न करें, तो कोई भूख नहीं लगेगी। लेकिन आप लेकिन इंद्रिय से भरा हुआ मन उलटा सोचेगा। वह सोचेगा, एक खाए चले जा रहे हैं! इसलिए मैं आपसे पूछता हूं कि किसी शेर को | बार भूखा रह जाए, राजी हो जाएगा, लेकिन कामवासना से रुकने आपने भोजन करने के बाद उत्सुक देखा? उन्होंने कहा कि नहीं | | को राजी नहीं रहेगा। भूख छोड़ देगा, धन छोड़ देगा, स्वास्थ्य छोड़ देखा। भोजन करने के बाद तो शेर के पास बकरी भी खड़ी रहे, तो | | देगा, लेकिन कामवासना के पीछे पड़ा रहेगा। वे विकृत हो गई वह देखता भी नहीं। लेकिन आदमी के पास मिठाई रखी रहे, तो न | | इंद्रियां हैं। भी देखे फिर भी देखता रहता है। न देखे फिर भी देखता रहता है! __ जैसे ही इंद्रियां प्रकृतिस्थ होंगी, सुकृत होंगी, सहज होंगी, वैसे इंद्रियासक्ति शरीर को विकृत व्यवस्था दे जाती है। ऐसा व्यक्ति, | ही जो व्यक्ति की आवश्यकता है, वह सरल हो जाएगी। और जो जिसकी इंद्रिय की आसक्ति नहीं है, उसको भी भूख लगेगी। व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है, वह तिरोहित हो जाएगी। लेकिन भूख शुद्ध होगी। और भूख वहीं तक होगी, जहां तक ऐसे व्यक्ति के कर्म का क्या होगा? आवश्यकता है। और आवश्यकताएं बहुत कम हैं। वासनाएं अनंत कर्म के प्रति उसकी आसक्ति खो जाएगी, लेकिन कर्म बंद नहीं हैं; आवश्यकताएं बड़ी सीमित हैं। स्वाद का कोई अंत नहीं। भोजन | होगा। और जब कर्म के प्रति आसक्ति खोती है, तो जो गलत कर्म तो बहुत थोड़ा काफी है। हैं, वे विदा हो जाते हैं; और जो सही कर्म हैं, वे और भी बड़ी ऊर्जा और जीवन की समस्त दिशाओं में ऐसा ही परिणाम होगा। सब से सक्रिय हो जाते हैं। धीरे-धीरे व्यक्ति के जीवन में शुभ कर्म रह तरफ शुद्धतम आवश्यकताएं रह जाएंगी। कुछ आवश्यकताएं ऐसी | जाते हैं, अशुभ कर्म तिरोहित हो जाते हैं। हैं, जो व्यक्ति की आवश्यकताएं ही नहीं हैं। उनसे व्यक्ति मुक्त हो आज इतना ही। जाएगा। जैसे सेक्स। यह बहुत मजे की बात है कि भोजन आपके लेकिन पांच मिनट रुकेंगे। पांच मिनट और। फिर हम रात बात शरीर की आवश्यकता है, लेकिन आपने कभी सोचा न होगा कि करेंगे आगे सूत्रों पर। पांच मिनट संन्यासी कीर्तन करेंगे। आपमें से कामवासना आपकी आवश्यकता नहीं है। कामवासना समाज की भी जो सम्मिलित होना चाहें, वे सम्मिलित हो सकते हैं। जो बैठे आवश्यकता है। अगर आप भोजन न करें, तो आप मर जाएंगे। और हैं, वे भी इतना तो साथ दें कि तालियां बजाएं, उनका गीत दोहराएं। अगर आप में कामवासना न रहे, तो संतति मर जाएगी, आगे समाज पांच मिनट उनके भजन का प्रसाद ले लें, फिर हम विदा हो जाएंगे। 37
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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