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________________ - आसक्ति का सम्मोहन - कहीं इंद्रियों की आसक्ति से मुक्त हो सकेगा? अगर मैं इंद्रियों का सिर्फ पता चलता है कि शरीर को भूख लगी है। लेकिन इतनी लंबी जोड़ हूं, तो इंद्रियों की आसक्ति से मुक्त होना तो सिर्फ आत्मघात | | प्रक्रिया में आप नहीं जाते। सीधी छलांग लगा देते हैं कि मुझे भूख है; और कुछ भी नहीं। मैं मर जाऊंगा, और क्या होगा! लगी है। भूख शरीर को लगती है, आप सिर्फ कांशस होते हैं कि __ लेकिन कृष्ण तो कहते हैं कि इंद्रियों की आसक्ति से जो पार हो | शरीर को भूख लगी है। आप सिर्फ होश से भरते हैं कि शरीर को गया, वह योगारूढ़ हो गया। वे कहते हैं, मर नहीं जाएगा, बल्कि | भूख लगी है। लेकिन चूंकि शरीर को आपने माना मैं, इसलिए आप वही पूरे अर्थों में जीवन को पाएगा। कहते हैं कि मुझे भूख लगी है। पर हमें उस जीवन का कोई भी पता नहीं है। हमें तो इंद्रियों का अब जब भूख लगे, तो आप गौर से देखें कि आपकी चेतना, जोड़ ही हमारा जीवन है। अगर हमारी इंद्रियों के अनुभव एक-एक जिसे पता चलता है कि भूख लगी है और आपका शरीर जहां भूख करके हटा दिए जाएं, तो पीछे जीरो, शून्य बचेगा, कुछ भी नहीं लगती है, ये एक चीजें नहीं हैं; दो चीजें हैं। जब पैर में चोट लगती बचेगा। हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। सब जोड़ कट जाएगा। तो हम है, तो आपको चोट नहीं लगती। आपको पता चलता है कि शरीर कैसे इंद्रियों से, इंद्रियों की आसक्ति से मुक्त हो जाएं? इंद्रियों की को चोट लगी है। लेकिन भाषा ने बड़ी भ्रांतियां खड़ी कर दी हैं। आसक्ति से मुक्त होने के लिए पहला सूत्र खयाल में रखें, तभी भाषा में संक्षिप्त, हम कहते हैं, मुझे चोट लगी है। अगर सिर्फ भाषा हो सकेंगे। की भल हो. तब तो ठीक है। लेकिन गहरे में चेतना की भल हो जब कोई इंद्रिय मांग करे, जब कोई इंद्रिय चुनाव करे, जब कोई जाती है। इंद्रिय भोग करे, जब कोई इंद्रिय तृप्ति के लिए आतुर होकर दौड़े, जब आप जवान होते हैं, तो कहते हैं, मैं जवान हो गया। जब तब आपको कुछ करना पड़ेगा इस सत्य को पहचानने के लिए कि आप बूढ़े होते हैं, तो कहते हैं, मैं बूढ़ा हो गया। वही भूल है। वह मैं इंद्रिय नहीं हूं। जो भूख वाली भूल है, वह फैलती चली जाती है। आप जरा भी जब आप भोजन करते हैं, तो आप भोजन की इंद्रिय ही हो जाते बूढ़े नहीं हुए। आंख बंद करके पता लगाएं कि चेतना बूढ़ी हो गई? हैं। उस समय थोड़ा स्मरण रखना जरूरी है, सच में मैं भोजन कर चेतना पर कहीं भी बुढ़ापे की झुर्रियां न दिखाई पड़ेंगी। और चेतना रहा हूं? भोजन करते वक्त चौंककर एक बार देखना जरूरी है, मैं | पर कहीं भी बुढ़ापे का कोई झुकाव नहीं आया होगा। चेतना वैसी भोजन कर रहा हूं? कहीं भी भीतर खोजें, मैं भोजन कर रहा हूं? | | की वैसी है, जैसे बच्चे में थी। जन्म के वक्त जितनी ताजी थी, मरते ___ तो आपको एक फर्क दिखाई पड़ेगा। आप भोजन कर ही नहीं रहे - वक्त भी उतनी ही ताजी होती है। हैं; आप तो भोजन से बहुत दूर हैं। शरीर भोजन कर रहा है। भोजन चेतना बासी होती ही नहीं। लेकिन शरीर बासा होता चला जाता आपको छूता भी नहीं कहीं। आपकी कांशसनेस को, आपकी चेतना | है। शरीर जीर्ण-जर्जर होता चला जाता है। और हम चौबीस घंटे को कहीं स्पर्श भी नहीं करता है। कर भी नहीं सकता है। की पुरानी भ्रांति को दोहराए चले जाते हैं कि मैं शरीर हूं, इसलिए चेतना को कोई पदार्थ कैसे स्पर्श करेगा! लेकिन चेतना चाहे, आदमी रोता है कि मैं बूढ़ा हो गया। तो पदार्थ के प्रति आसक्त हो सकती है। पदार्थ स्पर्श नहीं करता; चेतना कभी बूढ़ी नहीं होती। और इसीलिए, अगर आपकी लेकिन चेतना चाहे, तो आकर्षित हो सकती है। चेतना चाहे, तो आंख बंद रखी जाएं, और आपको आपके शरीर का पता न चलने पदार्थ के साथ अपने को बंधन में अनुभव कर सकती है, बंधा हुआ दिया जाए, और सालभर बीत जाए, दस साल बीत जाएं; आपको मान सकती है। भोजन दे दिया जाए, लेकिन कभी दर्पण न देखने दिया जाए, तो जब आप भोजन करते हैं, तो कहते हैं, मैं भोजन कर रहा हूं। | क्या दस साल बाद आप सिर्फ भीतर चेतना के अनुभव से कह भूल जरा और गहरी है; जब आपको भूख लगती है, तभी से शुरू सकेंगे कि मैं दस साल बूढ़ा हो गया? आप न कह सकेंगे। आपको हो जाती है। तब आप कहते हैं, मुझे भूख लगी है। थोड़ा गौर से | पता ही नहीं चलेगा। देखें, आपको कभी भी भूख लगी है? आप कहेंगे, निश्चित ही, । इसीलिए कई दफे बड़ी भूलें हो जाती हैं। कई दफे भूलें हो जाती रोज लगती है। फिर भी मैं आपसे कहता हूं, आपको भूख कभी भी | । हैं। कई दफे किन्हीं गहरे क्षणों में बूढ़े भी बच्चों के जैसा व्यवहार नहीं लगी; भ्रांति हुई है। भूख तो शरीर को ही लगती है। आपको कर जाते हैं। वह इसीलिए कर जाते हैं, और कोई कारण नहीं है।
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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