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आसक्ति का सम्मोहन -
से दूसरे द्वंद्व में भटकता रहता है।
यह दूसरी बात भी खयाल में ले लें। - जब कृष्ण कहते हैं, समत्व, तो अगर हम ठीक से समझें, तो | मन के कारण वह पशुओं के ऊपर उठ जाता है। लेकिन मन के समत्व को वही उपलब्ध होगा, जो मन को क्षीण कर दे। क्योंकि ही कारण वह परमात्मा नहीं हो पाता। पशुओं से ऊपर उठना हो, मन तो चुनाव है। बिना चुनाव के मन एक क्षण भी नहीं रह सकता। | तो मन का होना जरूरी है। और अगर मनुष्य के भी ऊपर उठना हो ___ जब मैंने आपसे कहा कि तराजू का कांटा जब बीच में ठहर जाता | और परमात्मा को स्पर्श करना हो, तो मन का पुनः न हो जाना जरूरी है, तब अगर हम दूसरी तरह से कहना चाहें, तो हम यह भी कह | है। यद्यपि मनुष्य जब मन को खो देता है, तो पशु नहीं होता, सकते हैं कि तराजू अब नहीं है। क्योंकि तराजू का काम तौलना है। परमात्मा हो जाता है।
और जब कांटा बिलकुल बीच में ठहर जाता है, तो तौलने का काम | ___ मनुष्य मन को जान लिया, और तब छोड़ता है। पशु ने मन को बंद हो गया; चीजें समतुल हो गईं। तौलने का तो मतलब यह है | जाना नहीं, उसका उसे कोई अनुभव नहीं है। अनुभव के बाद जब कि तराजू खबर दे। लेकिन अब दोनों पलड़े थिर हो गए और कांटा | कोई चीज छोड़ी जाती है, तो हम उस अवस्था में नहीं पहुंचते जब बिलकुल बीच में आ गया, समतुलता आ गई, तो वहां तराजू का अनुभव नहीं हुआ था, बल्कि उस अवस्था में पहुंच जाते हैं जो काम समाप्त हो गया। समतुल तराजू, तराजू होने के बाहर हो गया। अनुभव के अतीत है। ऐसे ही मन का काम अतियों का चुनाव है।
__मन है चुनाव, च्वाइस-यह या वह। मन सोचता है ईदर-आर अगर ठीक से हम समझें, अगर हम मनोवैज्ञानिक से पूछे, तो | की भाषा में। इसे चुनूं या उसे चुनूं! दुकान पर आप खड़े हैं; मन वह कहेगा, मन का विकास ही चुनाव की वजह से पैदा हुआ। और | सोचता है, इसे चुनूं, उसे चुनूं! समाज में आप खड़े हैं; मन सोचता इसीलिए आदमी के पास सबसे ज्यादा विकसित मन है, क्योंकि | है, इसे प्रेम करूं, उसे प्रेम करूं! प्रतिपल मन चुनाव कर रहा है, आदमी के पास सबसे ज्यादा चुनाव की आकांक्षा है। पशु बहुत | यह या वह। सोते-जागते, उठते-बैठते, मन कांटे की तरह डोल चुनाव नहीं करते, इसलिए बहुत मन उनमें पैदा नहीं होता। पक्षी | | रहा है तराजू के। कभी यह पलड़ा भारी हो जाता है, कभी वह बहुत चुनाव नहीं करते। पौधे बहुत चुनाव नहीं करते। आदमी की पलड़ा भारी हो जाता है। सामर्थ्य यही है कि वह चन सकता है। वह कह सकता है. यह और ध्यान रहे, जिस चीज को मन चुनता है, बहुत जल्दी उससे भोजन मैं करूंगा और वह भोजन मैं नहीं करूंगा। पश तो वही ऊब जाता है। मन ठहर नहीं सकता। इसलिए मन अक्सर जिसे भोजन करते चले जाएंगे, जो प्रकृति ने उनके लिए चुन दिया है। | चुनता है, उसके विपरीत चला जाता है। आज जिसे प्रेम करते हैं,
अगर यहां हजार तरह की घास लगी हो और आप भैंस को छोड़ कल उसे घृणा करने लगते हैं। आज जिसे मित्र बनाया, कल उसे दें, तो भैंस उसी घास को चुन-चुनकर चर लेगी जो प्रकृति ने उसके | शत्रु बनाने में लग जाते हैं। जो बहुत गहरा जानते हैं, वे तो कहेंगे, लिए तय किया है, बाकी घास को छोड़ देगी। भैंस खुद चुनाव नहीं | मित्र बनाना शत्रु बनाने की तैयारी है। इधर बनाया मित्र कि शत्रु करेगी, इसलिए भैंस के पास मन भी पैदा नहीं होगा।
बनने की तैयारी शुरू हो गई। मन लौटने लगा। सारी प्रकृति मनुष्य को छोड़कर मन से रहित है। ठीक से समझें, थियोडर रेक अमेरिका का एक बहुत विचारशील मनोवैज्ञानिक तो मनुष्य हम कहते ही उसे हैं, जिसके पास मन है। मनुष्य शब्द | | था। उसने लिखा है, मन के दो ही सूत्र हैं, इनफैचुएशन और का भी वही अर्थ है, मन वाला।
फ्रस्ट्रेशन। उसने लिखा है, मन के दो ही सूत्र हैं, किसी चीज के __ मनुष्य में और पशुओं में इतना ही फर्क है कि पशुओं के पास प्रति आसक्त हो जाना और फिर किसी चीज से विरक्त हो जाना। कोई मन नहीं और मनुष्य के पास मन है। मनुष्य इसलिए मनुष्य | या तो मन आसक्त होगा, या विरक्त होगा। या तो पकड़ना नहीं कहलाता कि मनु का बेटा है, बल्कि इसलिए मनुष्य कहलाता | चाहेगा, या छोड़ना चाहेगा। या तो गले लगाना चाहेगा, या फिर है कि मन का बेटा है; मन से ही पैदा होता है। वह उसका गौरव कभी नहीं देखना चाहेगा। मन ऐसी दो अतियों के बीच डोलता भी है, वही उसका कष्ट भी है। वही उसकी शान भी है, वही उसकी | | रहेगा। इन दो अतियों के बीच डोलने वाले मन का ही नाम मृत्यु भी है। मन के कारण वह पशुओं से ऊपर उठ जाता है। लेकिन | संकल्पात्मक, संकल्प से भरा हुआ। मन के कारण ही वह परमात्मा नहीं हो पाता।
जहां संकल्प है, वहां विकल्प सदा पीछे मौजूद रहता है। जब