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बुद्ध पर बोल सकता हूं; महावीर पर बोल सकता हूं; कृष्ण पर,
क्राइस्ट पर, लाओत्सू पर, कबीर पर, नानक पर। मेरे काम का ढंग सारे जगत के प्रज्ञापुरुषों ने जो कहा है, उसकी एक गंगा बना देना है।...
मेरे काम करने का ढंग ऐसा है कि जो मेरे भीतर हुआ है, उसके माध्यम से समस्त इतिहास में जब-जब यह घटना घटी है, मैं उस सबका साक्षी हो जाना चाहता हूं। मेरा काम समग्र अतीत को इस क्षण में पुकार लेना है।...
मेरी बात का एक लाभ है कि हिंदू आ सकता है, मुसलमान आ सकता है, ईसाई आ सकता है; जरा भी अड़चन नहीं है। इस मंदिर में सारे द्वार हैं। सारे द्वार मैंने इस मंदिर में इकट्ठे कर लिए हैं। यह एक महान समन्वय का प्रयास
मेरे वक्तव्यों में कोई एक सिद्धांत नहीं है। जो सिद्धांत पकड़ने आया है, वह तो चला जाएगा। मैं तो सारे सिद्धांतों का सार बोल रहा हूं। इस सार को हृदय से ही समझा जा सकता है।
-ओशो