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________________ गीता दर्शन भाग-3 → प्रार्थना की परमात्मा से कि हे प्रभु, मेरे दुश्मनों से तो मैं निपट लूंगा, आपको पता चलेगा कि शरण का क्या अर्थ है। आपके भीतर प्रभु मेरे मित्रों से तू निपट ले। मेरे दुश्मनों से मैं निपट लूंगा। उनकी तू की किरणें सब तरफ से प्रवेश करने लगेंगी। क्योंकि शरण का अर्थ फिक्र छोड़। मैं काफी हूं। लेकिन मेरे मित्रों से तू निपट ले; उनसे है, ओपनिंग। मैं बिलकुल नहीं निपट पाता। इंडोनेशिया में एक आंदोलन चलता है, कीमती आंदोलन है। इकहार्ट का शिष्य साथ में था। उसने यह प्रार्थना सुनी। वह बड़ा इस जमीन पर जो दो-चार कीमती बातें आज चल रही हैं, उनमें हैरान हुआ। हैरान इसलिए हुआ कि सवाल तो दुश्मनों से ही होता इंडोनेशिया में मोहम्मद सुबुद के द्वारा चलता हुआ एक छोटा-सा है निपटने का; मित्रों से तो कोई सवाल नहीं होता! और यह इकहार्ट ध्यान का आंदोलन भी है। उस आंदोलन का नाम है सुबुद। उस क्या पागलपन की बात कह रहा है। कहीं गलती तो नहीं हो गई आंदोलन की प्रक्रिया में कोई और विशेषता नहीं है, बस, इतनी ही शब्दों की जमावट में! कहना चाहता हो कि मेरे मित्रों से मैं निपट प्रक्रिया है कि वे व्यक्ति को राजी करते हैं कि तू अपने को छोड़ दे लूंगा, दुश्मनों से तू निपट ले। कहीं भूल तो नहीं हो गई! परमात्मा के हाथों में। इसको वे कहते हैं, ओपनिंग। इसको कृष्ण इकहार्ट जैसे ही प्रार्थना के बाहर हुआ, मित्र ने हाथ पकड़ा और | कहते हैं, सरेंडरिंग। इसको वे कहते हैं, खुले अपने सब दरवाजे कहा कि मालूम होता है, तुम कुछ भूल कर गए। यह तुमने क्या | छोड़ दें। परमात्मा से कोई बचाव तो नहीं करना है, इसलिए कहा! मित्रों से निपटने की कोई जरूरत ही नहीं है। और तुमने खिड़की-दरवाजे सब खुले छोड़ दें। और ऐसा पड़ जाएं, जैसे परमात्मा से कहा कि शत्रुओं से तो मैं निपट लूंगा, मेरे मित्रों से तू परमात्मा है और हम उसकी गोद में पड़े हैं। निपट ले। और एक तीन सप्ताह में परिणाम गहरे होने लगते हैं। जैसे ही इकहार्ट ने कहा कि मैं तुझसे कहता हूं कि जिन-जिन को हमने | | आप अपने को खुला छोड़ते हैं...। रेसिस्टेंस छोड़ने में थोड़ा वक्त मित्र समझा है, वे ही हमारे शत्रु हैं, और उनसे निपटना बड़ा मुश्किल लगता है। दो-चार दिन तो आप कहेंगे, लेकिन छोड़ न पाएंगे। है। और उनमें सबसे बड़ा मित्र है मैं, ईगो। यह बहुत मित्र मालूम | | धीरे-धीरे धीरे-धीरे छोड़ पाएंगे। जिस दिन भी छोड़ना हो जाएगा, पड़ता है। हम इसी को तो जिंदगीभर बचाते हैं। यही है जहर, क्योंकि उसी दिन आप पाएंगे, आपके भीतर कोई विराट ऊर्जा प्रवेश कर यही मैं शरण न जाने देगा। यही मैं सिर न झुकाने देगा। यही मैं छोड़ने रही है। आपकी मांसपेशियों में कोई और नई चीज बहने लगी। न देगा आपको कि आप लेट गो में पड़ जाएं। कह दें कि ठीक। आपकी हड्डियों के आस-पास किसी नई चीज ने प्रवाह लिया। कभी देखें। कभी देखें, जमीन पर ही लेट जाएं। किसी मंदिर में आपके हृदय की धड़कनों के पास कोई नई शक्ति आ गई। आपके जाने की उतनी जरूरत नहीं है। जमीन पर ही लेट जाएं चारों खून में कुछ और भी बह रहा है। आपकी श्वासों में कोई और भी हाथ-पैर छोड़कर, और कह दें परमात्मा से कि अब घंटेभर तू ही तिर रहा है। और आप एक तीन महीने के अनुभव में पाएंगे कि आप है, मैं नहीं। और पड़े रहें घंटेभर। अपनी तरफ से कोई बाधा न दें। नहीं बचे, परमात्मा ही बचा है। फिर तो यह भी कहने की जरूरत सिर्फ पड़े रहें, जैसे कि मुर्दा पड़ा हो या कोई छोटा बच्चा अपनी मां न रहेगी कि मैं शरण आता हूं। क्योंकि फिर इतना भी आप न बचेंगे की गोद में सिर रखकर सो गया हो। करते रहें, करते रहें। एक कि कह सकें कि मैं शरण आता हूं। पंद्रह-बीस दिन के भीतर आपको शरण का क्या अर्थ है, वह पता बुद्ध के पास एक युवक आया। उसने सुन रखा था कि बुद्ध चलेगा। यह शब्द नहीं है, यह अनुभव है। लोगों से कहते हैं, अप्प दीपो भव! अपने प्रकाश स्वयं बनो; बी जमीन पर पड़ जाएं; अपने कमरे को भी बंद कर लें, जमीन पर | ए लाइट अनटु योरसेल्फ। फिर जब वह युवक बुद्ध के पास आया, पड़ जाएं चारों हाथ-पैर छोड़कर। सिर रख लें जमीन पर, पड़ जाएं, तो उसे बड़ी बेचैनी हुई। वहां उसने देखा कि लोग कह रहे हैं, बुद्ध और कह दें, प्रभु, घंटेभर के लिए तू है, अब मैं नहीं हूं। पड़े रहें। शरणं गच्छामि, बुद्ध की शरण जाते हैं। उस युवक को तो बड़ी विचार चलते रहेंगे, भाव चलते रहेंगे। दो-चार-आठ दिन में | | परेशानी हुई। वह तो सुनकर आया था कि बुद्ध कहते थे कि अपने विचार, भाव विलीन हो जाएंगे। पंद्रह दिन में आपको लगेगा कि दीए स्वयं बनो। तो यह तो बात बड़ी उलटी मालूम पड़ती है, बुद्ध वह जमीन, जिस पर आप पड़े हैं, और आप अलग नहीं हैं; एक की शरण जाओ! अपने दीपक बनना है, तो किसी की शरण मत हो गए; किसी गहरी इकाई में जुड़ गए। एक महीना पूरा होते-होते जाओ, यही उसने मतलब लिया था। 450
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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