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________________ < धर्म का सार ः शरणागति - द्वेष में ही अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। उनके पास न तो | हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम जीवन को कैसे देखते हैं। वर्षा शक्ति बचती है, न समय बचता है, न चेतना बचती है कि मेरी ओर रुकेगी नहीं आपके देखने से। पानी बंद नहीं होगा, बादल आपकी प्रवाहित हो सके। लेकिन जो ज्ञानीजन हैं...। | फिक्र न करेंगे। लेकिन आपके दृष्टिकोण का अंतर, आपके और ज्ञानी कौन है? ज्ञानी वही है, जो अपने जीवन को निरंतर एटिट्यूड का जरा सा बदल जाना, और सब बदल जाता है। आनंद की दिशा में प्रवाहित करने में समर्थ है। सुना है मैंने कि केलिफोर्निया के एक मोटेल में एक यात्री मेहमान और अज्ञानी वही है, जो अपने ही हाथों नर्क की यात्रा करता है। | है। सुबह सूरज निकल रहा है और पक्षी गीत गा रहे हैं। तो मोटेल जो अपने साथ अपना नर्क लेकर चलता है। कहीं भी पहुंच जाए, के मैनेजर ने उस यात्री को कहा कि आप कृपा करके बाहर आएं। तो वह नर्क को निर्मित कर लेगा। उसके पास बिल्ट-इन-प्रोग्रेम है। सूरज निकला है, पक्षी गीत गा रहे हैं, आकाश बहुत सुंदर है। उस उसके पास हमेशा तैयार है फार्मूला नर्क बनाने का। वह कहीं भी आदमी ने कहा, वह तो ठीक है। बट फर्स्ट लेट मी नो हाउ मच इट पहुंच जाए, ज्यादा देर न लगेगी, वह नर्क निर्मित कर लेगा। विल कास्ट-पहले मुझे बता दो कि कीमत क्या चुकानी पड़ेगी! ___ अज्ञानी वही है, जो अपने चारों तरफ नर्क की समस्त | हम जिस दुनिया में जीते हैं, वह बाजार की दुनिया है। वहां हर संभावनाओं को लेकर चलता है। और ज्ञानी वही है, जो अपने चारों चीज को हम मूल्य से आंकते हैं। अगर किसी दिन ऐसा हो जाए तरफ स्वर्ग की समस्त संभावनाओं को लेकर चलता है। स्वर्ग की कि वर्षा मुश्किल हो जाए, तो निश्चित ही हम पैसे चुकाकर शावर बड़ी से बड़ी संभावना प्रभु का स्मरण है। के नीचे खड़े होंगे। और जिन मुल्कों में सूरज नहीं निकलता, जब इसलिए कृष्ण कहते हैं, वह ज्ञानी जिसने अपने मन को निष्काम | सूरज निकल आता है, तो छुट्टी हो जाती है। अंग्रेजी में संडे के दिन कर डाला, पवित्र कर डाला, जिसके जीवन में पुण्य की गंध पैदा छुट्टी का कारण है, क्योंकि वह सन-डे है, वह सूरज का दिन है। 'हुई, जिसने व्यर्थ के घास-पात को उखाड़कर फेंक दिया, राग-द्वेष आकाश घिरा रहता है बादलों से; सूरज का कोई दर्शन नहीं होता। में जो अब जीता नहीं, जो अब भगवत-भजन की दिशा में निरंतर | जब सूरज निकल आए, तो आनंद से प्रफुल्लित होकर लोग सूरज चल रहा है; उठता है, बैठता है, चलता है, डोलता है, कुछ भी की धूप लेने के लिए लेट जाते हैं। करता है, प्रत्येक कृत्य जिसका प्रभु के लिए समर्पित है और प्रत्येक जो न्यून हो जाए, और जिसके लिए हमें पैसा देना पड़े, फिर हमें क्षण, वैसा व्यक्ति मुझे उपलब्ध होता है। लगता है, उसमें कुछ आनंद है। लेकिन जो हमें मुफ्त में मिल जाए, दो बातें स्मरणीय हैं। अगर परमात्मा भी मुफ्त हम पर बरसता हो, तो हम द्वार-दरवाजे अभी इस घटना का उपयोग करूं। अभी वर्षा पड़ रही है। हमारी बंद करके भीतर हो जाएंगे। दृष्टि पर सब निर्भर है। अगर हम सोचते हैं कि बहुत बड़ा दुख हमारे (वर्षा शुरू हो गई है और भगवान श्री अपना बोलना जारी ऊपर गिर रहा है, तो हमारी दृष्टि शत्रुता की हो जाती है। अगर हम रखते हैं।) सोचते हैं कि प्रभु की अनुकंपा बरस रही है, तो हमारी दृष्टि मित्रता मैं कहता हूं, इधर थोड़ी देर हम बैठेंगे ही। मुझे लगता है, कोई की हो जाती है। और तब यह पड़ती हुई बूंद, पानी की बूंद नहीं रह इनमें से जाने वाला नहीं है। जो जाने वाले थे, वे आए ही नहीं हैं। जाएगी, यह पड़ती बूंद भगवत चेतना की बूंद हो जाती है। वर्षा भी रुकेगी नहीं। वर्षा भी आपसे डरेगी नहीं। वर्षा भी जारी हम कैसे लेते हैं जीवन को, इस पर सब निर्भर करता है। हमें | | रहेगी। बादल अपने आनंद में मग्न रहेंगे। अब इतनी देर घंटेभर पता ही नहीं है कि काश, हमें जिंदगी को जीने का खयाल होता, तो | हमें यहां रहना है। आपकी दृष्टि पर निर्भर करेगा। हम जब आकाश से बादल बरसते हों और पानी नीचे गिर रहा हो, मैं चाहूंगा कि थोड़ा-सा खयाल करें कि प्रत्येक बूंद परमात्मा का तो हम नाच भी सकते हैं खशी में। मोर नाचते हैं, और कभी आदमी आशीष है। और यहां से जाते वक्त आपका शरीर ही नहीं गीला भी नाचता था, लेकिन अब आदमी सिर्फ बचता है। सूरज निकला | होगा, आपकी आत्मा भी भीग गई होगी। और वह आत्मा का भीग हो, तो उसकी रोशनी में हम सिर्फ धूप भी अनुभव कर सकते हैं, जाना ही प्रभु का भजन है। उसके भजन किन्हीं मंदिरों के कोने में और जीवन भी। अंधेरा घिरा हो, तो हम आने वाली सुबह की यात्रा | बैठकर नहीं किए जाते हैं; उसके भजन जीवन के हर कोने में और भी देख सकते हैं उसमें, और सिर्फ मृत्यु का अंधकार भी। | जीवन की हर दिशा में और हर आयाम में किए जाते हैं। 447
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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