SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ < गीता दर्शन भाग - 3 > पचती नहीं थी उनके मन को कहीं। गहरे में तो चोट लगती थी, क्योंकि है तो युद्ध का मामला । अहिंसा तो नहीं है कहीं भी । और हिंसा की इतनी सहज स्वीकृति किसी दूसरे आदमी ने कभी दी नहीं है। तो फिर गांधी के पास एक ही उपाय था, या तो गीता को छोड़ दें, या गीता की ऐसी व्याख्या कर लें कि मन में जम जाए। तो उन्होंने एक तरकीब निकाल ली। और वह तरकीब उन्होंने यह निकाल ली कि यह युद्ध कभी हुआ नहीं। यह तो प्रतीकात्मक, सिंबालिक युद्ध है; यह कभी हुआ नहीं। यह तो आदमी में बुरी शक्तियों और अच्छी शक्तियों का युद्ध है। कुरुक्षेत्र पर कभी कोई युद्ध हुआ नहीं। तब उनके मन को थोड़ी राहत मिली। यह तो आसुरी और सदवृत्तियों का संघर्ष है। सच में कभी युद्ध हुआ नहीं। जब गांधी को यह व्याख्या पकड़ ली उन्होंने मन में, तब उनको राहत मिली। लेकिन यह बात झूठ है। यह युद्ध हुआ है। इस युद्ध के होने के ऐतिहासिक प्रमाण हैं । और यह युद्ध प्रतीकात्मक नहीं है, यह युद्ध वास्तविक तथ्य है। फिर कृष्ण-कैसे इस वास्तविक युद्ध में अर्जुन को धक्का दे रहे हैं ? असल में अर्जुन को जो नहीं दिखाई पड़ता है, वह कृष्ण को दिखाई पड़ता है। यह युद्ध होकर रहेगा। यह युद्ध नियति है, यह डेस्टिनी है। इस युद्ध से बचा नहीं जा सकता; यह होगा ही । सारी ऐतिहासिक शक्तियां जिस जगह ले आई हैं, वहां यह युद्ध होकर रहेगा। इसलिए अब सवाल यह नहीं है कि युद्ध हो या न हो । सवाल यह है कि युद्ध पर अर्जुन जाए, तो किस भाव को लेकर जाए। वह परमात्मा के प्रति समर्पित होकर युद्ध करे कि अहंकार से भरा होकर युद्ध करे, असली सवाल इतना ही है। कृष्ण कहते हैं, मुझे तो सब दिखाई पड़ता है, लेकिन जो नहीं जानते, उन्हें मैं बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता हूं। वहीं लोग खड़े होंगे, जो कृष्ण को सारथी से ज्यादा न समझते रहे होंगे। सारथी थे ही वे, जहां तक आकार का संबंध है। अर्जुन के घोड़ों को सांझ जाकर नदी पर पानी पिलाकर, उनकी सफाई कर लाते थे। घोड़ों को दिनभर हांकते थे, सांझ उनकी सेवा करते थे । सारथी तो वे थे ही। उस युद्ध में बहुत सारथी थे। उनसे कुछ विशेष स्थान उनका न रहा होगा। जो नहीं देख सकते थे, उनको तो सारथी ही दिखाई पड़ा होगा। लेकिन जो देख सकते थे, उनको तो, उनको जो दिखाई पड़ा होगा, वह निराकार है । जो देख सकते थे, उन्हें वे परम परमात्मा दिखाई पड़े। जो नहीं देख सकते थे, अंधे थे, उन्हें तो ठीक है, एक आदमी थे। आदमी थे ही, आकार था । आकार था निश्चित । इसलिए कृष्ण कहते हैं, आंख हो निराकार को खोजने की, | ही मुझे कोई देख पाता है। शेष हम कल बात करेंगे। लेकिन उठेंगे नहीं। कीर्तन हम करें। क्योंकि कीर्तन से संभावना है कि आकार थोड़ा टूटे और निराकार की थोड़ी दृष्टि उपलब्ध हो। कोई उठेगा नहीं। थोड़ा पानी गिरेगा, उसको आनंद से लें । परमात्मा थोड़ा पानी भेजता है, उसको आनंद से लें। 444
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy