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< निराकार का बोध >
कुछ भी नहीं मिलेगा, क्योंकि बड़े-बड़े सम्राट वह सब पा चुके हैं कृष्ण वही हमसे कह रहे हैं। हम सब कागज की नावों पर जीवन
और फिर भी दीन-हीन मरे हैं। तो नचिकेता कहता है, ये चीजें फिर | में यात्रा करते हैं। हमारी नावें सपनों से ज्यादा नहीं। और हमारे मैं न लूंगा। मुझे तो इतना ही बता दें कि मृत्यु का राज क्या है, ताकि | भवन ताश के पत्तों के घर हैं। और सब, रेत पर हमारे हस्ताक्षर हैं। मैं अमृत को जान सकूँ।
हवा के झोंके आएंगे और सब बझ जाएगा. और सब मिट जाएगा। नचिकेता को बहुत समझाता है यम। यम बहुत बुद्धिमान है। मृत्यु अल्पबुद्धि हैं हम। पर बुद्धि हम में है, अल्प ही सही। बीज ही से ज्यादा बुद्धिमान शायद ही कोई हो। अनंत उसका अनुभव है सही, पोटेंशियलिटी ही सही। हम इतना तो तय है कि सुख चाहते जीवन का। हर आदमी की नासमझी का भी मृत्यु को जितना पता है, हैं। हां, इतना तय नहीं है कि सुख क्या है, वह हम नहीं समझ पाए उतना किसी और को नहीं होगा। क्योंकि जिंदगीभर दौड़-धूप करके हैं। हम जो इकट्ठा करते हैं, मृत्यु उसे बिखेर जाती है। और एक बार नहीं, सुख चाहते हैं, यह तय है। सुख चाहकर भी दुख पाते हैं, यह हजार बार हमारा इकट्ठा किया हुआ मौत बिखेर देती है। हम फिर हमारा अनुभव है। लेकिन सुख की चाह हमारे भीतर है, वह दुबारा मौका पाकर, फिर वही इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। । बुद्धिमानी की सूचक है। लेकिन अत्यल्प बुद्धि की सूचक है।
आदमी की नासमझी का जितना पता मौत को होगा, उतना किसी | क्योंकि फिर जो हम करते हैं, उससे दुख हाथ में आता है। शायद और को नहीं है। इतने लोगों की नासमझी से गुजरकर मौत | | हम ठीक से नहीं देख पाते कि सुख क्या है और दुख क्या है। समझदार हो गई हो, तो आश्चर्य नहीं। लेकिन यह बच्चा बहुत ___ यह बहुत मजे की बात है। जो व्यक्ति भी थोड़ी दूर तक सोचेगा, अडिग है। वह कहता है कि मुझे तो वही बता दें, जिससे अमृत को | वह हमेशा ऐसे सुख को चुन लेगा, जो बाद में दुख बन जाए। और जान लूं। मृत्यु को समझा दें मुझे। और आप तो मृत्यु को जानते ही | जो व्यक्ति दूर तक सोचेगा, वह ऐसे दुख को चुनेगा, जो बाद में ' हैं, आप मृत्यु के देव हैं। आप नहीं बताएंगे, तो मुझे कौन बताएगा! सुख बन जाए।
बुद्धिमान होगा नचिकेता, कृष्ण के अर्थों में। हम बुद्धिमान नहीं | | भोग और तपश्चर्या का इतना ही फर्क है। भोगी, आज जो सुख हो सकते; हम अल्पबुद्धि हैं। खयाल रखें, कृष्ण कह रहे हैं, मालूम पड़ता है, उसे चुन लेता है; कल वह दुख हो जाता है। अल्पबुद्धि; बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे हैं। बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे तपस्वी, आज जो दुख मालूम पड़ता है, उसे चुनता है, लेकिन कल हैं, अल्पबुद्धि।
वह सुख हो जाता है। अगर मनुष्य बिलकुल बुद्धिहीन हो, तब तो कोई संभावना नहीं और यह बड़े मजे की बात है, जो दुख को चुन सकता है आज, रह जाती। बुद्धि तो है; बहुत छोटी है। बड़ी हो सकती है, विकसित वह कल सुख का मालिक हो सकता है। और जो सुख को ही चुन हो सकती है। जो बीज की तरह है, वह वृक्ष की तरह हो सकती है। सकता है आज, कल वह सिवाय दुख के गड्ढों के और किन्हीं चीजों जो आज बहुत छोटी है, वह कल विराट बन सकती है। को उपलब्ध नहीं होगा। सुख पर जिसकी नजर है, वह दुख में पड़
कहते हैं, अल्पबुद्धि है आदमी। दुख तो नहीं चाहता आदमी, | जाएगा। उसकी नजर बहुत ओछी है, बहुत पास ही वह देखता है। नहीं तो बुद्धिहीन होता। सुख चाहता है, लेकिन अल्पबुद्धि है। इतने पास देखता है कि आगे के रास्ते का कुछ पता नहीं चलता। क्योंकि ऐसा सुख चाहता है, जो अंत में दुख ही लाता है, और कुछ दूर-दृष्टि चाहिए; दूर तक देखने की सामर्थ्य चाहिए। और अगर लाता नहीं।
हम जरा भी दूर देख पाएं, तो हम जिन्हें सुख मानकर चलते हैं, अल्पबुद्धि कहना प्रयोजन से है। और अगर इस बात को हम | उनकी खोज में हम अपने जीवन को नष्ट नहीं करेंगे। ठीक से समझें, तो हम सभी अल्पबुद्धि मालूम पड़ेंगे। हमने जो भी
| सना है मैंने कि एक अमेरिकी फिल्म निर्माता नई अभिनेत्री की चाहा, जो भी मांगा, जो भी खोजा, जीवन के मंदिर में हमने जो भी तलाश में था। अपने एक कवि मित्र को पकड़ लाया, जिसकी प्रार्थनाएं की हैं, वे हमारी सब ऐसी प्रार्थनाएं हैं, जैसे कोई रेत पर सौंदर्य के संबंध में बड़ी सुरुचि थी, जो सौंदर्य का पारखी था, और मकान बनाए; ताश के पत्तों का घर बनाए; कागज की नावें बनाएं, | | जिसने सुंदरतम स्त्री को खोजकर विवाह किया था। सौंदर्य पर
और सोचे कि सागर में यात्रा पर निकल जाएगा। कागज की नाव पर उसने कविताएं लिखी थीं और सौंदर्य पर शास्त्र लिखे थे। कोई बैठकर सागर की यात्रा पर जा रहा हो, तो हम उसे क्या कहेंगे? | | एस्थेटिक्स पर उसकी बड़ी प्रसिद्ध किताबें थीं। उस फिल्म निर्माता
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