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- गीता दर्शन भाग-3>
प्रश्नः भगवान श्री, पिछले श्लोक में कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति वासनाओं की पूर्ति के लिए जिन देवताओं को पूजते हैं, वे देवता मेरे द्वारा विधान किए हुए फलों को प्रदान करते हैं। मेरे द्वारा विधान किए हुए फलों को, कृपया इसका अर्थ स्पष्ट करें।
ट स जगत में कुछ भी ऐसा नहीं होता है, जो परमात्मा इ के विधान से विपरीत हो। ऐसा कुछ भी नहीं होता है,
जो उसके नियम के बाहर हो। ऐसा कुछ भी हो नहीं सकता है, जो उसकी शक्ति से ही, उसकी ऊर्जा से ही संचालित न होता हो।
इसलिए कृष्ण कहते हैं, जो भी देवता मनुष्यों की वासनाओं से भरी चित्त दशा में भी, उनकी प्रार्थनाओं को पूरा करते हैं, वे भी मेरे ही द्वारा किए हुए विधान के माध्यम से! मैं ही, मेरी शक्ति ही, उस सारे विधान के पीछे सक्रिय होती है।
अब बैठे रहे हैं। अब तो भागने से भी कुछ न होगा। आप भीग ही गए हैं। अब भागने से कुछ भी ज्यादा होने का नहीं है। अब बैठे रहें।
कीर्तन कर लेते हैं आनंद में, और फिर बंद कर देते हैं। कल बात कर लेंगे।
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