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< श्रद्धा का सेतु -
इस फर्क को आप ठीक से समझ लें।
अभय, फियरलेस, इस जगत में कोई भी चीज नहीं है। खुद श्रद्धा का अर्थ है, अविश्वास उठता ही नहीं। विश्वास का अर्थ | भगवान भी आकर किसी श्रद्धावान हृदय को कहे कि भगवान नहीं है, अविश्वास मौजूद है। किसी भय के कारण, किसी लोभ के | है, तो वह कहेगा कि रास्ते से हटो! लेकिन आपके विश्वास को कारण, वह जो अविश्वास मौजूद है, उसे हम दबा लेना चाहते हैं, तो एक छोटा-सा बच्चा डिगा सकता है। एक छोटा-सा बच्चा तर्क छिपा लेना चाहते हैं, झुठला देना चाहते हैं, भुला देना चाहते हैं। | उठा दे, और आपके विश्वास मिट्टी में लोट जाते हैं।
धर्म की यात्रा पर विश्वास से काम नहीं चलता। विश्वास इसलिए कोई आदमी अपने विश्वासों की चर्चा नहीं करना सब्स्टीटयूट है श्रद्धा का; लेकिन इमिटेशन, नकली; उससे काम | चाहता। क्योंकि विश्वास की चर्चा करनी खतरनाक है। उसके नीचे नहीं चलता। इसीलिए तो दुनिया में इतने विश्वासी लोग हैं, फिर कोई जड़ नहीं है। ऊपर-ऊपर है सब। जरा में गिर जाएगा। भी धर्म कहीं दिखाई नहीं पड़ता। विश्वासियों की कोई कमी है? | | कृष्ण कहते हैं, श्रद्धा जो करता है। फिर वे कहते हैं कि वह श्रद्धा सच पूछा जाए, तो अधिकतम लोग विश्वासी हैं। वे जो अविश्वास | | चाहे किसी कामना से प्रेरित होकर किसी देवता में ही क्यों न करता करते हुए मालूम पड़ते हैं, वे भी विश्वासी हैं। सिर्फ उनके विश्वास हो। और यहां एक बहुत कीमती बात वे कहते हैं! कहते हैं, किसी नकारात्मक हैं।
कामना से प्रेरित होकर ही, अर्थार्थी, किसी वासना से प्रेरित होकर पृथ्वी विश्वासियों से भरी है, लेकिन धर्म की कोई रोशनी नहीं ही किसी देवता में श्रद्धा क्यों न करता हो, मैं उसकी श्रद्धा नहीं दिखाई पड़ती। मंदिर, मस्जिद और चर्चों में विश्वासी प्रार्थना कर | मिटाता। मैं उसकी श्रद्धा को परिपुष्ट और मजबूत करता हूं। रहे हैं, लेकिन प्रार्थना का आनंद कहीं विकीर्णित होता नहीं दिखाई दो रास्ते संभव हैं। पड़ता। वह हरियाली जो प्रार्थना से हमारे हृदय पर छा जानी | कृष्ण भलीभांति जानते हैं कि देवता की श्रद्धा मुक्ति तक, सत्य चाहिए, नहीं छाती दिखाई पड़ती। हम रूखे के रूखे, सूखे के तक, परम सत्य तक नहीं ले जाएगी। यह भी भलीभांति जानते हैं सखे मरुस्थल रह जाते हैं। कहते हैं कि प्रार्थना कर आए. लेकिन कि कामना से प्रेरित होकर जो आदमी श्रद्धा कर रहा है. उसकी मरुस्थल का मरुस्थल रह जाता है, कोई वर्षा नहीं होती उस पर। श्रद्धा बड़ी सांसारिक है। उसके लगाव में परमात्मा की तरफ बहाव
विश्वास धोखा है श्रद्धा का, लेकिन धोखे से कुछ काम नहीं | कम है, संसार में ही बहने के लिए परमात्मा की सहायता की अपेक्षा चलेगा।
ज्यादा है। यह भलीभांति जानते हैं। एक व्यक्ति संध्या अपने घर लौटा है। उसकी पत्नी का जन्मदिन दो रास्ते हैं। या तो कृष्ण कह सकते हैं कि छोड़ो कामवासना, है। आते ही उसने कहा कि देखती हो, हीरे की अंगूठी लाया हूं छोड़ो वासनाएं, हटाओ वासनाओं को, और छोड़ो देवताओं को, तुम्हारे लिए। पत्नी ने कहा, हीरे पर इतना खर्च क्यों किया? इतने क्योंकि देवताओं से परम मुक्ति नहीं होगी। आओ मेरे पास, सब दिन से हम सोचते थे, अच्छा होता कि तुम एक कार ही खरीद लाते वासनाओं को छोड़कर, परम ऊर्जा के पास। वही मुक्ति है, वही
और मुझे भेंट कर देते। उस आदमी ने आंख बंद कर ली और फिर स्वातंत्र्य है, वही अमृत है। एक रास्ता तो यह है। सिर ठोंका, और उसने कहा कि क्या करूं, इमिटेशन कार मिलती | लेकिन कृष्ण भलीभांति जानते हैं कि ऐसा कहकर इस बात की नहीं; नकली कार मिलती नहीं। नकली हीरा मिल जाता है। नकली | | तो सौ में एक ही संभावना है कि कोई देवताओं को और वासनाओं कार मिलती होती, तो वह ले आता।
को छोड़कर कृष्ण के पास आए। सौ में निन्यानबे संभावना यह है श्रद्धा की जगह जिसने भी विश्वास को पकड़ा है, वह नकली | कि कृष्ण के पास तो आए ही नहीं, देवता के पास भी जाना बंद कर हीरे को पकड़े हुए है। असली हीरे का उसे पता ही नहीं है। इसलिए दे। इसकी संभावना सौ में निन्यानबे है। विश्वासी बहुत डरता है कि कोई उसके विश्वास का खंडन न कर इसलिए कृष्ण कहते हैं, मैं उसके ही देवता में उसकी श्रद्धा को दे; कोई विपरीत तर्क न दे दे; कोई उलटी बात न कह दे; कहीं| स्थापित करता हूं। क्योंकि श्रद्धा आज देवता में स्थापित हो जाए, विश्वास डगमगा न जाए।
| तो कल एक कदम आगे उसे और बढ़ाया जा सकता है। कृष्ण ध्यान रहे, विश्वास डगमगाता ही रहेगा, क्योंकि विश्वास की कहते हैं, वह कामवासना से भरे व्यक्ति को भी मैं एकदम से नहीं कोई जड़ ही नहीं है। श्रद्धा नहीं डगमगाती। इसलिए श्रद्धा से ज्यादा कहता कि तेरी कामवासना गलत है। मैं कहता हूं कि ठीक है। मेरी
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