SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ < मुखौटों से मुक्ति > तक मैं समझता हूं...। ज्यादा मैं नहीं जानता, क्योंकि खच्चर के | जाकर मंदिर में लेट जाओ चरणों में परमात्मा के साष्टांग, सब अंग भीतर क्या होता है, पता नहीं। अनुमान मेरा यह है कि उसकी जमीन को छूने लगें; सिर जमीन पर पटक दो। वह जो अकड़ा हुआ विचारधारा खंडित हो जाती है, गड़बड़ हो जाती है। बस, उसी में सिर है, चौबीस घंटे अकड़ा रहता है। शायद...। वही खच्चर वह चक्कर में आ जाता है; चल पड़ता है। बाकी यह दवा मेरी | वाला काम किया जा रहा है। आपके भीतर वह जो अंडर करंट है, कारगर है। शायद...। लोग कहते, आपने हमें खच्चर समझा है क्या? फरीद कहता लेकिन कई बड़े कुशल खच्चर हैं; उन खच्चरों का मुझे पता कि बिलकुल खच्चर समझा है। अभी तुझे मैंने देखा। तू भीतर | नहीं। कितना ही घंटा बजाओ, उनके भीतर कुछ भी नहीं बजता। आया, तब मैंने देखा कि तेरे भीतर क्या चल रहा था। कुछ बजता ही नहीं! __ कठिन नहीं है देखना कि दूसरे के भीतर क्या चल रहा है। लेकिन मनुष्य को सहायता पहुंचाने के लिए जिनकी आतुरता शिष्टतावश अनेक लोग, जो जानते भी हैं कि दसरे के भीतर क्या रही है, उन्होंने बहत-सी व्यवस्थाएं हैं। चल रहा है, कहते नहीं हैं। लेकिन दूसरे के भीतर क्या चल रहा है, | ___ कृष्ण कह रहे हैं, एक बात तो यह कि च्युत हो जाता है वासना यह जानना बड़ी ही सरल बात है। जब आप भीतर आते हैं, तो की धारा में दौड़ता हुआ चित्त ज्ञान से। आपके भीतर क्या चल रहा है, उसके साथ आपके चारों तरफ रंग, ज्ञान स्वभाव है। और आपके चारों तरफ गंध, और आपके चारों तरफ विचार का इसे ऐसा समझें, तो ठीक होगा, हम आमतौर से कहते हैं कि एक वातावरण भीतर प्रवेश करता है। | वासना को छोड़ दो, तो ज्ञान मिल जाएगा। कहना चाहिए, वासना तो फरीद कहता, जैसे ही मैं देखता हूं, इसके भीतर कोई वासना को पकड़ा है, इसलिए ज्ञान खो गया है। ज्यादा एक्जेक्ट और सही 'चल रही है, उचककर मैं उसकी गर्दन को जोर से हिला देता हूं। जो कहना होगा। यह कहना उतना ठीक नहीं है कि वासना को छोड़ वही खच्चर वाला काम कि शायद करंट...! और अक्सर मेरा | | दो, तो ज्ञान मिल जाएगा। इसमें ऐसा लगता है कि वासना हमारा अनुभव है कि करंट टूट जाती है। वह चौंककर पूछता है, क्या कर | स्वभाव है, छोड़ेंगे, तो ज्ञान, कोई उपलब्धि हो जाएगी। असलियत रहे हैं? कम से कम वहां से चौंक जाता है; दूसरी यात्रा पर ले जाया | उलटी है। ज्ञान हमारा स्वभाव है, वासना को पकड़कर हमने उसे जा सकता है। खोया है। वासना हट जाए, वह हमें फिर मिल जाएगा। बहुत-से धर्म की जो विधियां हैं, वे सारी विधियां ऐसी हैं कि और इसीलिए वासना कभी तृप्त नहीं होगी, क्योंकि वासना किसी तरह आपकी जो वासना की तरफ दौड़ती हुई स्थाई हो गई | हमारा स्वभाव नहीं है, हमारा पतन है। हम कितने ही दौड़ते रहें, धारा है, वह तोड़ी जा सके। पतन से हम कभी राजी न हो पाएंगे, तृप्त न हो पाएंगे। पतन विषाद आप मंदिर जाते हैं। आपने घंटा लटका हुआ देखा है मंदिर के ही बनेगा, पतन हमें पीड़ा ही देगा, संताप ही देगा, नर्क ही देगा। सामने। कभी खयाल नहीं किया होगा कि घंटा किसके लिए बजाया और एक न एक दिन नर्क की पीड़ा से हमें लौट आना पड़ेगा। और जाता है। आप सोचते होंगे, भगवान के लिए; तो आप गलती में हैं। उस शिखर की तरफ देखना पड़ेगा, जो हमारे प्राणों का आंतरिक वह आपके खच्चर के लिए है। वह जो घंटनाद है, भगवान से उसका शिखर है, कैलाश। कोई लेना-देना नहीं है। वह आपकी खोपड़ी में जो चल रहा है, जोर : कैलाश हिमालय में नहीं है। जाते हैं लोग; सोचते हैं, वहां का घंटा बजेगा, मिट्टी थूककर आप मंदिर के भीतर चले जाएंगे। होगा। कैलाश हृदय के उस शिखर का नाम है, ज्ञान के उस शिखर वह अंतर-धारा जो चल रही है, वह एक झटके में टूट जाए। का नाम है, जहां से कभी भगवान च्युत नहीं होता। आपके भीतर टूटती है, अगर समझ हो, तो बराबर टूट जाती है। | का भगवान भी कभी च्युत नहीं होता जहां से। कहते हैं, मंदिर स्नान करके चले जाओ; ऐसे ही मत चले जाना। जिस दिन उस शिखर पर हम पहुंच जाते हैं भीतर के सब वह अंतर-धारा तोड़ने के लिए जो भी हो सकता है, कोशिश की | घाटियों को छोड़कर, घाटियों की वासनाओं को छोड़कर—उस जाती है। बाहर ही जूते निकाल दो; वह अंतर-धारा तोड़ने के लिए। दिन ऐसा नहीं होता कि हमें कुछ नया मिल जाता है। ऐसा ही होता आपके जितने एसोसिएशन हैं, वह तोड़ने की कोशिश की जाती है। है कि जो हमारा सदा था, उसका आविष्कार, उसका उदघाटन हो 421]
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy