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< गीता दर्शन भाग-3 >
लोगों ने उसे पकड़ा और कहा, वापस चलो। गुरु ने स्मरण जाता है। श्वेतकेतु वापस चला गया। वर्षों के बाद वह जानकर किया है। अब तुम वह बांस के चित्र कब बनाओगे? लौटा। अब वह बिलकुल दूसरा आदमी होकर आ रहा था। पिता
उसने कहा, लेकिन अब चित्र बनाने की जरूरत भी न रही। अब ने अपने झोपड़े की खिड़की से झांककर देखा, श्वेतकेतु चला आ तो मैं खुद ही बांस हो गया हूं। फिर उसे लाए और गुरु ने उससे कहा रहा है। कि अब तू आंख बंद करके भी लकीर खींच, तो बांस बन जाएंगे। पिता ने अपनी पत्नी को कहा, उस बेटे की मां को कहा श्वेतकेतु उसने आंख बंद करके लकीरें खींची और बांस बनते चले गए। और | की, कि अब मैं भाग जाता हूं पीछे के दरवाजे से, क्योंकि श्वेतकेतु गुरु ने कहा कि अब आंख खोल और देख। तूने पहले जो बनाए थे, | ब्रह्म को जानकर लौट रहा है। पत्नी ने कहा कि तुम क्यों भागते बड़ी मेहनत थी उनमें, लेकिन झूठे थे वे, क्योंकि तेरा कोई जानना । हो? तुम्हीं ने तो उसे भेजा था जानने को कि उसे जानकर आ, जिसे नहीं था। अब तुझसे बांस ऐसे बन गए हैं, जैसे बांस की जड़ से बांस | जान लेने से सब जान लिया जाता है। अब वह आ रहा है। निकलते हैं, ऐसे ही अब तुझसे बांस निकल रहे हैं।
पहली बार जब आया था, तो अकड़ से भरा था। शास्त्रों का दंभ एक ज्ञान है, जहां हम एक होकर ही जान पाते हैं। था। अस्मिता थी, अहंकार था। अकड़ रही होगी। नशा है शास्त्रों
यह मैंने आपको उदाहरण के लिए कहा। यह उदाहरण भी का भी। जानकारी का भी नशा है। और जब नशा पकड़ जाता है, तो बिलकुल सही नहीं है। क्योंकि जिसकी बात कृष्ण कर रहे हैं, उसके बड़ी दिक्कतें देता है। देख लिया था दूर से, अकड़कर आ रहा है। लिए कोई उदाहरण काम नहीं देगा। वह अपना उदाहरण खुद ही है। अब तो वह ऐसे आ रहा था, जैसे हवा का एक झोंका हो।
और कोई चीज का उदाहरण काम नहीं करेगा। लेकिन यह खयाल चुपचाप आ जाए घर के भीतर और किसी को पता न चले। पैरों के में अगर आपको आ जाए कि एक ऐसा जानना भी है, जहां होना | पदचाप भी न हों, ऐसा चला आता था। जैसे एक छोटा-सा सफेद
और जानना एक हो जाते हैं, तो ही आप ब्रह्मतत्व को समझने में | बादल का टुकड़ा हो, तैर जाए चुपचाप, किसी को पता न चले। समर्थ हो पाएंगे।
| या जैसे कि कभी आकाश में कोई चील पर तौलकर पड़ी रह जाती कृष्ण कहते हैं, फिर वह ज्ञानी, वह मुझे भजने वाला, वह युक्त | | है; हिलती भी नहीं, उड़ती है, उड़ती नहीं, पंख नहीं हिलाती; तिर चित्त हुआ, वह स्थिर बुद्धि हुआ भक्त, वासुदेव हो जाता है। वह | जाती है। ऐसा चला आता था, शांत। उसके पैरों में चाप नहीं रह भक्त नहीं रहता, भगवान हो जाता है।
गई, क्योंकि जब अहंकार नहीं रह जाता, तो पैर चाप खो देते हैं। और एक क्षण को भी आपको अपने भगवान होने का स्मरण आ | पिता ने कहा कि मैं भाग जाता हूं पीछे के दरवाजे से, तू तेरे बेटे जाए, तो आपकी सारी जिंदगी, अनंत जिंदगियां स्वप्नवत हो को सम्हाल। तो उसने कहा कि आप क्यों भाग जाते हैं? आपने ही जाएंगी।
तो भेजा था। उसके पिता ने कहा—अदभुत लोग थे, इसलिए इसे आप व्यवस्था भी दे सकते हैं। अभी आप जिस जिंदगी में कहता हूं-उसके पिता ने कहा कि नहीं, अब मुझे पीछे से चले जीते हैं, अगर उसे आप स्वप्नवत मानकर जीने लगें, तो दूसरे छोर जाना चाहिए। क्योंकि मैंने अभी ब्रह्म को नहीं जाना, और श्वेतकेतु से यात्रा हो सकती है। या तो परमात्मा के साथ एक होने के अनुभव को आकर मेरे पैर पड़ने पड़ें, तो यह उचित न होगा। मैं भाग जाऊं की यात्रा पर निकलें, तो यह जिंदगी स्वप्नवत हो जाएगी। या इस पीछे के दरवाजे से, तू सम्हाल। अब तो मैं जब तक न जान लूं, जिंदगी को स्वप्नवत मानकर जीना शुरू कर दें, तो आप अचानक तब तक श्वेतकेतु के सामने आना उचित नहीं है, क्योंकि वह बेटा पाएंगे कि आप परमात्मा के साथ एक हो गए हैं।
होने की वजह से पैर में झुकेगा। अब तो वह ब्रह्म हो गया, क्योंकि लेकिन इसे आप सिर्फ बुद्धि से समझने चलेंगे, तो समझ तो | ब्रह्म को जानकर लौट रहा है। जाएंगे, लेकिन वह समझ नासमझी से ज्यादा न होगी। समझ तो पिता भाग गया। जब तक मैं न जान लूं, तब तक अब बेटे के जाएंगे, लेकिन एक न हो पाएंगे। और जब तक एक न हो जाएं, | सामने खड़े होने का कोई मुंह भी तो नहीं रहा। तब तक मत मानना कि वह समझ है।
ऐसे पिता थे, तो दूसरे ही ढंग के बेटे भी दुनिया में पैदा होते थे। मैंने पहले दिन आपको श्वेतकेतु की कथा कही, कि पिता ने | आज सभी पिता शिकायत कर रहे हैं बेटों की, बिना इस बात की कहा कि तू उसको जानकर लौट, जिसे जानने से सब जान लिया | फिक्र किए कि पिता कैसे हैं। यह खयाल पिता को, कि उसे पैर में
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