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- गीता दर्शन भाग-3>
मुश्किल है।
अपना कोई चेहरा नहीं है, कोई ओरिजिनल फेस नहीं है। | उसने कहा, बहुत अनुभव है। स्कूल सिवाय सर्कस के और कुछ
कृष्ण कहते हैं, युक्त आत्मा, स्थिर बुद्धि हुई जिसकी, ऐसा भी नहीं है। मुझे जगह दे दो। कोई और जगह तो न थी, लेकिन एक व्यक्ति ही मुझे जान पाता है।
जगह सर्कस वालों ने खोज ली, उसे जगह दे दी गई। और काम परमात्मा के पास झूठे चेहरे लेकर नहीं जाया जा सकता। हां, | यह था कि उसके शरीर पर शेर की खाल चढ़ा दी, पूरे शरीर पर; कोई चाहे तो बिना चेहरे के भला पहुंच जाए; लेकिन झूठे चेहरों के और उसे एक शेर का काम करना था। एक रस्सी पर उसे चलना साथ नहीं जा सकता। पर बिना चेहरे के वही जा सकता है, जिसके | था शेर की तरह। पास भीतर एक युक्त आत्मा हो। तब शरीर के चेहरों की जरूरत | चल जाता, कोई कठिनाई न आती। लेकिन जब वह पहले ही नहीं रह जाती।
दिन बीच रस्सी पर था, तभी उसे दिखाई पड़ा कि उसके स्कूल के लेकिन बड़े मजे की बात है कि हम सब झूठे चेहरे लगाकर जीते दस-पंद्रह लड़के सर्कस देखने आए हैं और उसे गौर से देख रहे हैं। हमें अच्छी तरह पता है कि हम झूठे चेहरे लगाकर जिंदगी में हैं। नर्वस हो गया। मास्टर लड़कों को देखकर एकदम नर्वस हो जीते हैं। और हमारे पास कई चेहरे हैं, हमारे पास एक व्यक्तित्व | जाते हैं। घबड़ा गया और गिर पड़ा। गिर पड़ा नीचे, जहां कि नहीं, एक आत्मा नहीं।
चार-आठ दूसरे शेर गुर्रा रहे थे, और चिल्ला रहे थे, और गरज रहे महावीर ने कहा है, मल्टी-साइकिक, बहुचित्तवान है आदमी। थे, और घूम रहे थे नीचे के कठघरे में। जब शेरों के बीच में घुसा, बहुत चित्त हैं उसके भीतर। यह मल्टी-साइकिक शब्द तो अभी गिरा, तो घबड़ा गया। भूल गया कि मैं शेर हूं। याद आया कि जुंग ने विकसित किया, लेकिन महावीर ने पच्चीस सौ साल पहले मास्टर हूं। दोनों हाथ ऊंचे उठाकर चिल्लाया कि मरा, अब बचना जो शब्द उपयोग किया है, वह ठीक यही है। वह शब्द है, | बहुचित्तवान। बहुत चित्त वाला है आदमी।
जनता उसके उस चमत्कार से उतनी चमत्कृत नहीं हुई थी, रस्सी कृष्ण भी वही कह रहे हैं कि जब वह एक चित्त वाला हो जाए, | पर चलने से, जितनी इससे चमत्कृत हुई कि शेर आदमी की तरह तभी मुझ तक आ सकता है; उसके पहले मुझे न जान पाएगा। | बोल रहा है दोनों हाथ उठाकर!
हम दूसरे को तो धोखा देते हैं, लेकिन बड़ा मजा तो यह है कि बाकी एक शेर, जो पास ही गुर्रा रहा था, उसने धीरे से कहा कि हमें कभी यह खयाल नहीं आता है कि दूसरे भी ऐसे ही चेहरे | मास्टर, घबड़ा मत। तू क्या सोचता है, तू ही अकेला बेकार है गांव लगाकर हमें धोखे दे रहे हैं। और हम चेहरों के एक बाजार में हैं, में? घबड़ा मत। तू अकेला ही थोड़े बेकार है गांव में, और लोग जहां आदमी को खोजना बहुत मुश्किल है। जब हम हाथ बढ़ाते हैं, भी बेकार हैं। वे जो चार शेर नीचे घूम रहे थे, वे भी आदमी ही थे! तो हमारा एक चेहरा हाथ बढ़ाता है; दूसरी तरफ से भी जो हाथ हम सबकी हालत वैसी ही है। आप ही झूठा चेहरा लगाकर घूम आता है, वह भी एक चेहरे का हाथ है। सिर्फ इमेजेज, प्रतिमाएं | रहे हैं, ऐसा नहीं है। आप जिससे बात कर रहे हैं, वह भी घूम रहा मिलती हैं; आदमी नहीं मिलते। मुलाकात अभिनय में होती है; | | है। आप जिससे मिल रहे हैं, वह भी घूम रहा है। आप जिससे डर मुलाकात प्राणों की नहीं होती। बातचीत दो यंत्रों में होती | रहे हैं, वह भी घूम रहा है। आप जिसको डरा रहे हैं, वह भी घूम है—सधे-सधाए, रटे-रटाए जवाब-सवालों में। भीतर की आत्मा का सहज आविर्भाव नहीं होता। लेकिन हम खुद अपने को धोखा ___ आप ही अकेले नहीं हैं, यह पूरा का पूरा समाज, चेहरों का देते-देते इ वे में डब गए होते हैं कि यह खयाल ही नहीं होता समाज है। इतने चेहरों की जरूरत इसलिए पड़ती है कि हमें अपने कि दूसरे लोग भी ऐसा ही धोखा दे रहे हैं।
| पर कोई भरोसा नहीं। हम भीतर हैं ही नहीं। अगर हम इन चेहरों को ___ सुना है मैंने कि एक गांव में बड़ी बेकारी के दिन थे। अकाल | | छोड़ दें, तो हम पैर भी न उठा सकेंगे, एक शब्द न निकाल सकेंगे। पड़ा था और लोग बहुत मुश्किल में थे। एक सर्कस गुजर रहा था | | क्योंकि भीतर कोई है तो नहीं मजबूती से खड़ा हुआ, कोई गांव से। स्कूल का एक मास्टर नौकरी से अलग कर दिया गया | | क्रिस्टलाइज्ड बीइंग, कोई युक्त आत्मा तो भीतर नहीं है। तो हमें था। उसने सर्कस वालों से प्रार्थना की कि कोई काम मुझे दे दो। सब पहले से तैयारी करनी पड़ती है। सर्कस के लोगों ने कहा कि सर्कस का तुम्हें कोई अनुभव नहीं है। हमें सब पहले से तैयारी करनी पड़ती है। नाटक में ही रिहर्सल
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