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जीवन अवसर है
या जो लोग चेष्टा करके दूसरे की हिंसा छोड़ देते हैं, वे आत्महिंसा में फौरन लग जाते हैं। इसलिए तथाकथित अहिंसा आत्म-हिंसा में लग जाते हैं, वे अपने को सताने लगते हैं।
साधक
यह बहुत मजे की बात है कि जो आदमी दूसरे को सताना छोड़ता है, वह फौरन अपने को सताने के उपाय करने लगता है। दो में से कोई और रास्ता दिखाई नहीं पड़ता ।
कृष्ण उसे मूढ़ कहते हैं, जो अपने को सता रहा है। और अपने को सताने के लिए सबसे बड़ी विधि अगर जगत में कोई है, तो वह प्रभु को भूल जाना है।
आप कहेंगे, यह कैसी विधि ? छाती में छुरा भोंक लो, ज्यादा तकलीफ होगी। कांटों पर लेट जाओ। जहर पी लो।
नहीं । परमात्मा के विस्मरण से बड़ी तकलीफ इस जगत में कोई भी नहीं हो सकती है। परमात्मा के विस्मरण से बड़ी तकलीफ इसलिए नहीं हो सकती है, क्योंकि परमात्मा के विस्मरण के साथ ही जीवन के सब आनंद की धाराएं अवरुद्ध हो जाती हैं। आदमी जीता भी है मरा हुआ । ध्यान रहे, मर जाना उतना बुरा नहीं है, जितना मरे हुए जीना बुरा है।
सुना है मैंने, ईरान के एक बादशाह का वजीर एक जुर्म में पकड़ा गया। और जुर्म यह था कि उसने कानून के खिलाफ तीन विवाह कर लिए थे और तीनों औरतों को धोखा दिया था। एक ही विवाह कर सकता था, तीन विवाह कर लिए थे और हर स्त्री को धोखा दिया था कि मैं अविवाहित हूं।
तो
यह बात पकड़ गई और सम्राट ने उस वजीर को कहा कि यह बहुत ही खतरनाक जुर्म है। अपने न्यायाधीशों से कहा, कठिन से कठिन सजा खोजो। अगर यह भी सजा हो कि इसको फांसी देनी पड़े, तो फांसी दो । लेकिन न्यायाधीशों ने एक सप्ताह विचार किया और कहा कि नहीं, फांसी देने को हम बड़ी कठिन सजा नहीं मानते। हमने और दूसरी सजा खोजी है। बादशाह ने कहा, हैरान करते हो मुझे तु । फांसी से और कठिन सजा क्या हो सकती है? उन्होंने कहा कि तीनों औरतों के साथ इस आदमी को इकट्ठा रहने दो। तीनों औरतों को साथ रहने दो इसके साथ ।
कहते हैं, इक्कीसवें दिन उस आदमी ने आत्महत्या कर ली। और वह चिट्ठी लिखकर रख गया कि यह सजा मुझे तो दी, लेकिन कभी अब किसी और को मत देना। इससे तो फांसी बेहतर थी।
मौत इतनी बुरी नहीं है, जीवन जितना बुरा हो सकता है। जीवन के बुरे होने की संभावना बहुत ज्यादा है। मौत के बुरे होने की
संभावना बहुत ज्यादा नहीं है। मौत तो सिर्फ द्वार का बंद हो जाना
जीवन, प्रभु से हीन, ऐसा जीवन है, जिसमें चारों तरफ हमारे सब तरह के दुश्मन इकट्ठे हो जाते हैं। उसके पास तो तीन औरतें थीं; हमारे पास तीन हजार औरतें इकट्ठी हो जाती हैं। औरतों का मतलब, क्रोध इकट्ठा हो जाता है, बेईमानी इकट्ठी हो जाती है, चोरी इकट्ठी हो जाती है, हिंसा इकट्ठी हो जाती है, सब उपद्रव इकट्ठे हो जाते हैं। और उनके बीच हमें जीना पड़ता है।
एक प्रभु का साथ छूटा कि चारों तरफ जीवन में सिवाय उपद्रव के और कुछ नहीं बचता। क्योंकि जो आदमी प्रभु की तरफ पीठ करेगा, उसने अपने आप अंधेरे की तरफ आंखें कर लीं। अब वह अंधेरे में, और अंधेरे में, और अंधेरे में उतरेगा। जिसने प्रभु का | साथ छोड़ा, उसने अपने हाथ से दुर्गुणों को निमंत्रण दिया। जिसने | प्रभु का साथ छोड़ा, उसने अपने हाथ से गड्ढों में, पतन में और नर्कों में उतरने का इंतजाम किया।
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तो
कृष्ण कहते हैं, मूढ़ हैं जगत में ऐसे, दुष्टजन हैं वे, नासमझ हैं, असात्विक भावनाओं से भरे हुए हैं, वे मेरी प्रार्थना नहीं करते।
लेकिन आपसे मैं एक बात कह दूं। इससे आप यह मत समझना कि जो-जो प्रार्थना करते हैं, वे इन मूढ़ों में नहीं हैं। क्योंकि जरूरी नहीं है कि आप प्रार्थना करते वक्त प्रार्थना ही कर रहे हों । प्रार्थना करनी बड़ी कठिन है। इसलिए आप एकदम निश्चित होकर मत बैठ जाना कि यह किसी और की बात हो रही है, मैं तो रोज मंदिर जाता हूं। मैं तो प्रार्थना करता हूं। जरूरी नहीं है, आपकी प्रार्थना प्रार्थना हो ।
मैंने सुना है, एक स्त्री के पास एक तोता था, नर तोता; लेकिन वह गाली-गलौज सीख गया था। जिससे खरीदा था, वह एक होटल थी और वहां सब तरह के लोग आते-जाते थे। वह गाली-गलौज सीख गया था। वह स्त्री बड़ी परेशान थी, क्योंकि घर में मेहमान आते और वह बेहूदी बातें बोल देता । उसने अपने पड़ोस के पादरी को, चर्च के पादरी को कहा कि कुछ उपाय करो। तुम तो सब कुछ जानते हो । आदमियों तक को बदल देते हो, तो यह तो तोता है । फिर से दोहराऊं, उसने कहा, आदमियों तक को बदल देते हो, तो यह तो तोता है। इसे थोड़ा उपदेश दो कि यह बदल जाए।
पादरी ने कहा, यह तो मेरी भाषा न समझेगा, लेकिन मेरे पास एक मादा तोता है। वह दिन-रात प्रार्थना किया करती है। चौबीस घंटे चर्च में उसकी प्रार्थना गूंजती रहती है। तुम इसे ले आओ; दोनों