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< गीता दर्शन भाग-3
तू नाचती थी मोरों के साथ; लेकिन अब तू नाचती नहीं, तू अपने | आकांक्षा से भर जाता है, वह परमात्मा की तरफ विमुख हो जाता है। को सम्हालकर खड़ी रहती है। तू अपने ही खिलाफ हो गई है! यह | यह जो फ्रायड ने बहुत गहरी खोज की, और फ्रायड को खुद भी अपने से विरोध छोड़। क्योंकि परमात्मा से विरोध अपने से ही | | मुसीबत पड़ी। क्योंकि जिंदगीभर से कहता था, आदमी जीने के विरोध है।
लिए आतुर है। लेकिन बुढ़ापे में उसे समझ में आया कि सिर्फ जीने कृष्ण कह रहे हैं, वह आदमी मूढ़ है।
के लिए आतुर नहीं है। क्योंकि आदमी हजार ऐसे काम कर रहा है, इस बेल की तरह है वह आदमी, जो परमात्मा का भजन नहीं | जो गवाही देते हैं कि आदमी मरने को भी आतुर है। आदमी कर रहा है। भजन का अर्थ है. जो परमात्मा और अपने बीच कोई कभी-कभी मरना भी चाहता है। आप अपने ही तरफ सोचेंगे. तो सेतु नहीं बना रहा है; जो परमात्मा की शक्ति को अपनी शक्ति नहीं | समझ में आएगा। मान रहा है; जो परमात्मा और अपने बीच किसी तरह का विरोध | | मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जो
और रेजिस्टेंस खड़ा कर रहा है, वह आदमी मूढ़ है। क्योंकि वह | | जिंदगी में दस-पांच बार स्वयं की हत्या का विचार न करता हो। किसी और से नहीं लड़ रहा है, वह अपने से ही लड़ रहा है। और | | यह दूसरी बात है कि आप हत्या न करते हों, क्योंकि हत्या करने हारेगा, क्योंकि बड़ी विराट ऊर्जा से लड़ रहा है। लहर सागर से | के लिए और सब इंतजाम चाहिए, जो आपके पास न हो। हिम्मत लड़ने चल पड़ी!
चाहिए, जो न हो। लेकिन हत्या का विचार आदमी करता है। और तो कृष्ण एक तथ्य की बात कहते हैं। कहते हैं, मूढ़ है वह ऐसा नहीं कि बूढ़े ही करते हैं। छोटे-से बच्चे को बाप जोर से डांट आदमी। मूढ़ मुझे नहीं भजते हैं।
| दे और बच्चा अपने भीतर सोचता है, इससे तो मर ही जाऊं। इसमें कई दफे पढ़कर ऐसा लगता है कि जो कृष्ण को नहीं | | छोटा-सा बच्चा, अभी जो जीवन की यात्रा पर निकला भी नहीं है; भजता है, कृष्ण उसको गाली दे रहे हैं कि तुम मढ़ हो। नहीं, ऐसा उसके भीतर भी मरने का भाव पकड़ता है। वह भी सोचता है, नहीं है। नहीं भजते हो, इसलिए मूढ़ हो, ऐसा नहीं। मूढ़ हो, | खतम कर दो अपने को, नष्ट कर दो। इसलिए नहीं भजते हो। और इस मूढ़ता में आत्मघात छिपा है, ___ अगर मनुष्य के भीतर कोई मरने की वृत्ति न हो, तो इतनी जल्दी अपना ही विनाश छिपा है। सेल्फ-डिस्ट्रक्टिव, आत्मविनाश की | मरने का खयाल नहीं आ सकता है। और जो गहरे खोजते हैं, वे वृत्ति छिपी है। और हम सबके भीतर आत्मविनाश की वृत्ति है। कहते हैं कि हम दूसरे को भी मारने के लिए इसलिए उत्सुक हो जाते
फ्रायड ने तो अपने जीवन के अंतिम दिनों में, मनुष्य के भीतर | हैं, क्योंकि हमें डर है कि अगर हम दूसरे को न मारें, तो कहीं अपने एक डेथ विश, मृत्यु की आकांक्षा भी है, इसकी खोज की है। को मारना शुरू न कर दें। यह बहुत उलटा लगेगा। फ्रायड ने जिंदगीभर एक ही चीज की बात की थी. वह थी ईरोज. | नीत्से से किसी ने पछा कि तम सदा हंसते रहते हो. बात क्या कामवासना, जीवन की इच्छा। लेकिन अंत में उसे लगा कि यह है? नीत्से ने कहा, सिर्फ इसलिए हंसता रहता हूं कि कहीं रोने न अधूरी बात है। आदमी के भीतर मरने की इच्छा भी छिपी हुई है। | लगू। क्योंकि दो के सिवाय कोई उपाय नहीं दिखाई पड़ता। या तो उसे उसने थानाटोस, डेथ विश, मृत्यु की आकांक्षा कहा। उसने | | हंसू, या रोऊ। दो के बीच कोई जगह नहीं है, जहां आदमी खड़ा कहा कि आदमी के भीतर कोई ऐसा तत्व भी है, जो स्वयं को भी | हो जाए। खड़े होने के लिए जगह नहीं है। या तो हंसूं या रोऊं। तो नष्ट करने के लिए आतुर रहता है।
मैं हंसता ही रहता हूं, कि अगर हंसना रोका, तो फिर रोना पड़ेगा। इस खोज ने सारे पश्चिम में हैरानी पैदा कर दी थी। लेकिन पूरब | | रोने पर विकल्प बदल जाएगा। इसे सदा से जानता है। सदा से जानता है कि आदमी के भीतर जीवन | इसलिए हर आदमी दूसरे की हत्या का विचार करता रहता है कि की आकांक्षा भी है, और मरने की आकांक्षा भी है। स्वस्थ आदमी | | कहीं अपनी हत्या का विचार न करने लगे। और हर आदमी दूसरे वह है, जो जीवन की आकांक्षा पर यात्रा करता है। अस्वस्थ, रुग्ण को नुकसान पहुंचाने की धारणा बनाता रहता है, ताकि अपने को आदमी वह है, जो मृत्यु की आकांक्षा पर यात्रा करने लगता है। नुकसान न पहुंचाने लगे। हर आदमी आक्रामक है, ताकि कहीं
ध्यान रहे, जो आदमी जीवन की आकांक्षा से जीता है, वह | आत्महिंसा में न लग जाए। परमात्मा की तरफ उन्मुख हो जाता है; और जो आदमी मृत्यु की और यह बड़े मजे की बात है, जो लोग आक्रमण छोड़ देते हैं,
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