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- गीता दर्शन भाग-3
लोग सताने लगे।
के मैदान में। लेकिन युद्धों में जो वीर हैं, वे बच्चे हैं। महावीर की एक दिन सुबह ऐसी घटना हुई। एक ग्वाले ने आकर अपनी | वीरता यह है कि वे कहते हैं, अब संगी और साथी न बनाऊंगा। गायों को वहां चराने के लिए छोड़ा। फिर उसे कुछ काम आ गया, | अब अकेला काफी हूं। जन्मों-जन्मों बहुत संगी-साथी बनाए, सब तो उसने खड़े हुए महावीर से कहा कि सुनो! जरा मेरी गायों को | व्यर्थ हो गए। पाया आखिर में कि अकेला हूं। अब मुझे तुम देखते रहना, मैं अभी लौटकर आता हूं। जल्दी में था; उसने यह अकेला ही होने दो। और एक तरह से वह विचलित करने आया भी फिक्र न की कि यह नग्न खड़ा हुआ साधु कुछ बोला नहीं। या । | था; तुम दूसरी तरह से विचलित करने आए हो। सोचा होगा कि मौन सम्मति का लक्षण है; चला गया। इंद्र ने कहा, आप हमें गलत न समझें। हम आपको विचलित
दोपहर जब वापस लौटा, तो महावीर तो अपने दूसरे ही लोक करने नहीं; सिर्फ रक्षा करने आए हैं। में थे। लौटा, तब तक गाएं चरती हुई दूर निकल गई थीं। महावीर | महावीर ने कहा कि जिन्होंने भी मेरे लिए सदा वचन दिए रक्षा से बहुत पूछा, वे कुछ न बोले। आंख बंद किए खड़े थे, खड़े रहे। करने के और जिन्होंने कहा, हम रक्षा करेंगे, वे ही थोड़े दिन में मेरे सोचा कि या तो यह आदमी पागल है, या चालाक है। गाएं या तो | । कारागृह बन गए। जिन्होंने भी कहा था कि हम रक्षा करेंगे, जिन्होंने चोरी चली गईं; इस आदमी का हाथ है कुछ। और या फिर यह । | भी कहा था कि हम साथ देंगे, संगी बनेंगे, दुख से बचाएंगे, आखिर आदमी पागल है, या गूगा है, या बहरा है।
में मैंने पाया कि वे ही मेरे दुख के कारण बने, और वे ही मेरे कारागृह वह गायों को ढूंढ़ने गया, जंगलभर में घूम आया, लेकिन गाएं न | की दीवालें बने। अब नहीं। अब मैं अकेला काफी हूं। अब सुख हो मिलीं। और जब सांझ महावीर के पास से निकलता था, तो गाएं। | कि दुख, मैं अकेला काफी हूं। तुम मुझे मुझ पर छोड़ दो। चरकर लौट आई थीं और महावीर के पास वापस बैठी हुई थीं। तब महावीर ने कहा है, एक ही वीरता है इस पृथ्वी पर, अकेले होने तो पक्का शक हो गया। सोचा कि यह आदमी बेईमान है। मुझे धोखा का साहसदि करेज टु बी अलोन।' दिया। गायों को छिपाए रहा। अब रात में लेकर निकल जाएगा। | बहादुर से बहादुर आदमी भी अकेला नहीं हो सकता। कम से
उसने महावीर को गालियां दीं। मारा। कान में लकड़ियों की | | कम तलवार तो साथ में रखता ही है। इसलिए जिसके हाथ में खूटियां ठोंक दीं। क्योंकि यह देखकर कि तू समझ रहा है कि तू बहरा तलवार देखें, समझ लेना कि भीतर कायर छिपा है। नहीं तो तलवार है; सुनता नहीं। तो हम तेरे बहरेपन को पूरा किए देते हैं! कान में किसके लिए! महावीर नग्न खड़े हैं; हाथ में एक लकड़ी का टुकड़ा उसने खूटियां ठोंक दीं। खून, लहूलुहान, महावीर के कान से खून भी नहीं है। बहने लगा। वह खूटियां ठोंककर अपनी गायों को लेकर चला गया। कृष्ण कहते हैं, जिसकी वासना हट गई, जिसका काम हट गया,
मीठी कथा है कि देवता पीड़ित और परेशान हुए। और इंद्र ने उसमें मैं वीर्य हूं। उसमें मैं बल हूं। उसका मैं बल हूं। आकर महावीर से कहा कि क्षमा करें! हमें आज्ञा दें, ताकि हम । इसमें एक बात और समझ लेने जैसी है। जहां भी कामवासना आपकी रक्षा कर सकें। ऐसा दुबारा न हो, अन्यथा बदनामी हमारी है, वहां वीर होना उसी तरह आसान है, जैसे किसी आदमी को होगी कि भले लोग जमीन पर थे और महावीर के कान में खूटियां | शराब पिला दी जाए और लड़ने को भेज दिया जाए। नशे में बहादुर ठोंक दी गईं! हमें आज्ञा दें।
हो जाना आसान है, क्योंकि नशे में आदमी मूछित होता है। महावीर ने आंख खोली और कहा, वह ग्वाला भी अपने ढंग से इसलिए हाथियों को जब युद्ध पर भेजते हैं, तो शराब पिलाकर मुझे विचलित करने आया था; तुम अपने ढंग से मुझे विचलित भेजते हैं। क्योंकि मरने का खयाल ही नहीं रह जाता; होश ही नहीं
करने आए हो। मुझे छोड़ दो मुझ पर। जो भी होना है, मुझ अकेले रह जाता। पर होने दो। जन्मों-जन्मों बहुत तरह के साथ मैंने लिए, सब साथ कामवासना भी एक जहर है, एक इंटाक्सिकेंट है। और जब व्यर्थ गए। अब मैं अकेला हूं। जन्मों-जन्मों न मालूम कितने कंधों आप कामवासना से भरते हैं, तो कामवासना से भरा हुआ आदमी पर हाथ रखे, और सोचा कि वे साथी बनेंगे; कोई साथी कभी बना | आग लगे मकान में प्रवेश कर सकता है। नहीं। अब मैं अकेला हूं।
तुलसीदास की कहानी हम सबने सुनी है। कामवासना से भरा अब यह वीर्य, यह वीरता दिखाई नहीं पड़ेगी बाहर किसी युद्ध हुआ आदमी नदी में मुर्दे को हाथ का सहारा लगाकर पार हो गया।
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