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- गीता दर्शन भाग-3 -
नहीं उतर सके।
जाएं, नाक चलने भी दी जाए, तो भी आप पंद्रह मिनट से ज्यादा अगर ठीक से समझें, तो पश्चिम में विज्ञान ने जो तत्वों की जिंदा नहीं रह पाएंगे। क्योंकि आपका रोआं-रोआं श्वास ले रहा धारणा पैदा की है, वह तो प्रयोगशालाओं में की गई है। और भारत | है। वह श्वास जाकर आपके भीतर की जीवन अग्नि को जला रही ने जो पंच महाभत की धारणा की है. वह प्रयोगशालाओं में नहीं है। और अगर श्वास बंद कर दी जाए, तब तो आप अभी ही समाप्त अंतस अनुभूति में की गई है। जो लोग भी अंतस जीवन की | हो जाएंगे। क्योंकि भीतर भी जीवन एक दीए की भांति है, जिसको गहराइयों में उतरेंगे, उन्हें एक तत्व का साक्षात्कार जरूर ही होगा; पूरे समय आक्सीजन चाहिए। वह है फायर, वह है अग्नि। जो लोग भी अपने भीतर गहरे में जो अग्नि के जलने का नियम है, वही जीवन के जलने का नियम जाएंगे, अंततः उन्हें अग्नि का अनुभव होगा, विराट अग्नि का | भी है। जीवन की गहराई में, समस्त तत्वों की गहराई में अग्नि है। अनुभव होगा।
अग्नि महाभूत है। आधारभूत है। इसीलिए जैसे-जैसे व्यक्ति ध्यान में भीतर प्रवेश करता है, आज विज्ञान की खोज इलेक्ट्रिसिटी पर ले गई है। वे जिसे आज प्रकाश, और ऐसे जैसे हजारों सूरज उतर आए हों, दिखाई पड़ने | विद्युत कह रहे हैं, भारत के अंतर्मनीषी ने उसे अग्नि कहा था। और लगते हैं। ध्यान में प्रकाश का अनुभव अंतर्गमन की सूचना है। यह ठीक था, क्योंकि अग्नि उन दिनों सुपरिचित शब्द था। और उसी प्रकाश उस अंतर-अग्नि की बहुत दूर की किरण है। जब हम बहुत से बात प्रकट की जा सकती थी। गहरे में पहुंचेंगे, तभी हमें पूरी अग्नि का आभास होगा। विद्युत भी अग्नि का ही रूप है। तो अग्नि मूल तत्व है। पृथ्वी
हां, अग्नि शब्द से सिर्फ आपके घर में जो आग जलती है, उससे | अग्नि का एक रूप है, सालिड। अग्नि का ठोस रूप पृथ्वी है। ही कृष्ण का प्रयोजन नहीं है। अग्नि से अर्थ है, जीवन का समस्त अग्नि का दूसरा रूप है, जल, लिक्विड, प्रवाह। अग्नि का तीसरा रूप अग्नि का ही रूप है।
रूप है, वायु। अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि आपके भीतर भी जो जीवन चल विज्ञान कहता है, पदार्थ की तीन स्थितियां हैं, सालिड, लिक्विड रहा है, वह भी आक्सीडाइजेशन से ज्यादा नहीं है। पूरे समय | और गैसीय। पदार्थ की तीन स्थितियां हैं, या तो ठोस, जैसे कि हवाओं में से जाकर आक्सीजन आपके भीतर की जीवन-ज्योति को पत्थर है या पानी का बर्फ। फिर जलीय, द्रवीय, जैसे कि जल है। जला रही है।
और फिर वायुवीय, जैसे कि पानी की भाप है। प्रत्येक अस्तित्ववान अगर आप, एक दीया जल रहा हो और उसके ऊपर एक कांच चीज तीन रूपों में प्रकट हो सकती है। का बर्तन ढांक दें, तब आपको पता चलेगा। कभी ऐसा हो जाता है पृथ्वी, जिसे आज विज्ञान कहता है, सालिड। उन दिनों पृथ्वी से कि तूफान जोर का होता है, तो घर में कोई कांच के गिलास को दीए| सालिड और कोई चीज खयाल में आ भी नहीं सकती थी। वह पर ढांक दे। एक क्षण को तो लगेगा कि दीए को आपने बचा लिया | प्रतीक शब्द है। जल, जल से ज्यादा और प्रवाहवान कोई चीज तूफान से। लेकिन ध्यान रखना, तूफान में तो दीया बच भी सकता | खयाल में नहीं आ सकती थी। और वायु; वायु से ज्यादा वाष्पीय, था, गिलास के भीतर दीया नहीं बचेगा। क्योंकि थोड़ी ही देर में | गैसीय और कोई तत्व खयाल में नहीं आ सकता था। आक्सीजन चुक जाएगी। और आक्सीजन के बिना दीया जल नहीं हां, अग्नि है मूल तत्व। अग्नि जब प्रकट होती है, तो तीन रूपों सकेगा। थोड़ी ही देर में ग्लास के भीतर जितनी हवा है, उसकी | | में प्रकट होती है। पदार्थ का एक रूप ठोस, दूसरा रूप जलीय, आक्सीजन जल जाएगी। और फिर तो कार्बन डाइ आक्साइड रह तीसरा रूप गैसीय। जाएगा, जो दीए को बुझा देगा। तूफान तो झेल सकता है दीया, और यह अग्नि के प्रकट होने के लिए जो जगह चाहिए, वह लेकिन आक्सीजन की कमी नहीं झेल सकता। क्योंकि आक्सीजन | | जगह है आकाश। आकाश से अर्थ है, स्पेस। आकाश से अर्थ ही फायर है, अग्नि है।
स्काई नहीं है। आकाश से, आपके ऊपर जो चंदोवा तना हुआ है, __ आप भी नहीं झेल सकते। आपकी भी श्वास बंद कर दी जाएः । | उससे प्रयोजन नहीं है। आकाश शब्द बहुत अदभुत है। आकाश नाक तो छोड़िए, अगर नाक आपकी चलने भी दी जाए, और पूरे का कुल अर्थ होता है, जिसमें अवकाश मिले, जिसमें जगह मिले, शरीर पर ठीक से डामर पोत दिया जाए; रोएं-रोएं सब बंद कर दिए जिसके बिना कोई चीज न हो सके। जगह तो चाहिए। और जगह
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