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4 परमात्मा की खोज >
सब शर्ते पूरी हैं। फिर कुछ हो तो नहीं रहा है। कहीं कोई कमी तो मजबूत कर दे। पहुंच पाता है वह, जो मैं को समर्पित कर देता है। नहीं दिखाई पड़ती।
तब फिर, तब फिर कोई बाधा नहीं रह जाती। फिर ऋषभ के द्वारा भेजी गई बाहुबली की बहन ने बाहुबली परमात्मा की तरफ से कोई बाधा नहीं है। आदमी की तरफ से दो आंख बंद किए। विशालकाय व्यक्ति था। सुंदरतम शरीर वाला बाधाएं हैं। एक, नकारात्मक मन; और दूसरा, अस्मिता से भरा व्यक्ति था। गोमटेश्वर में बाहुबली की प्रतिमा है, कभी आपने चित्र हुआ भाव, अहंकार से भरा हुआ भाव। इन दो दरवाजों को जो पार देखे होंगे। विशालकाय! जिसमें शरीर पर बेलाएं चढ़ गई हैं। और | कर जाता है, कृष्ण कहते हैं, वह मुझको उपलब्ध हो जाता है। पक्षियों ने कान में घोंसले बना लिए थे। और शरीर पर बेलाएं चढ़ गई थीं, उसका उन्हें पता भी नहीं था। क्योंकि वह तो अंतर के संघर्ष में इतना लीन था कि शरीर पर क्या घट रहा है, उसे पता भी नहीं था। भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
बहन ने चारों तरफ से जाकर बाहुबली को देखा। इतना घोर अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।। ४ ।। तपस्वी तो कभी देखा नहीं गया! कान पर पक्षियों ने घोंसले बना लिए और हे अर्जुन, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तथा हैं; अंडे रख दिए हैं। सुरक्षित जगह है। बाहुबली हिलता भी नहीं। मन, बुद्धि और अहंकार भी, ऐसे यह आठ प्रकार से विभक्त बेलाएं चढ़ गई हैं। बेलाओं में फूल आ गए हैं। न मालूम कब से
हुई मेरी प्रकृति है। बाहुबली ऐसा ही खड़ा है पत्थर की तरह। अब और क्या बाकी है?
और तब गहरे और गहरे घमकर बहन ने भीतर तक झांकने की कोशिश की। और उसे दिखाई पड़ा कि भीतर बस एक चीज बाकी - स सूत्र में दो-तीन बातें समझने जैसी हैं। पहली बात, रह गई, वह मैं। तो एक गीत बाहुबली की बहन ने गाया कि सब र कृष्ण ने प्रकृति को आठ हिस्सों में विभाजित किया। कर चुके तुम, अब जरा सिंहासन से नीचे उतर आओ। बस. और पंच महाभूत-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश। कुछ न करो, जरा सिंहासन से नीचे उतर आओ। यह हाथी की पहले तो पंच महाभूत को थोड़ा समझ लें, क्योंकि पंच महाभूत पालकी पर कब तक बैठे रहोगे! जरा नीचे उतर आओ। की धारणा के कारण भारतीय चिंतन को पश्चिम में बहुत धक्का
और बाहुबली को यह सुनाई पड़ा कि हाथी की पालकी पर कब | पहुंच रहा है। इस मुल्क में भी जो लोग सुशिक्षित हैं, उनको भी तक बैठे रहोगे! जरा नीचे उतर आओ। सब शुद्ध था। बस, वह बड़ी कठिनाई होती है। चूंकि अब तो पंच महाभूत का कोई सवाल एक पालकी अहंकार की भारी थी। और उसी क्षण घटना घट गई। न रहा। अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि एक सौ आठ तत्व हैं। फिर इतनी बड़ी तपश्चर्या से जो न हुआ था, पालकी से उतरते ही हो और थोड़े गहरे गए हैं, तो वे कहते हैं, एक ही तत्व है—एक सौ गया। बाहुबली ने झुककर बहन को नमस्कार कर लिया। बात | आठ तो उसके प्रकार हैं-वह है विद्युत। समाप्त हो गई। घटना घट गई।
कृष्ण जैसा व्यक्ति जब कहता है, पंच महाभूत, तो यह सिर्फ करोड़ लोग प्रयास करते हैं, एक पहुंचता है। क्योंकि वह एक कोई लोकोक्ति नहीं हो सकती। लोग सदा ऐसा कहते रहे हैं, पांच ही अपनी अस्मिता को और अहंकार को खोता है। | महाभूत। मोटा हिसाब है कि इन पांच चीजों से सारा जगत बना
इसलिए कृष्ण ने कहा, मुझको परायण हुआ, मेरी तरफ झुक हुआ है। लेकिन कृष्ण जब ऐसा वक्तव्य देते हैं, तो उस वक्तव्य गया, समर्पित हुआ, मेरे चरणों में आ गया!
के पीछे थोड़ा गहरे उतरना पड़ेगा। कृष्ण का वक्तव्य बहुत यहां सवाल बड़ा यह नहीं है कि कृष्ण के चरणों में आ जाओ। वैज्ञानिक है। और इसलिए इन पंच महाभूत की व्याख्या जैसी मैं बड़ा सवाल यह है कि झुक जाओ। ध्यान रहे, असली सवाल है देखता हूं, और जैसी आज के पूरे वैज्ञानिक चिंतन के बाद की जानी झुका हुआ मन, समर्पित, सरेंडर्ड।
|चाहिए, वह मैं आपसे कहना चाहता हूं। करोड़ में से एक करता है कोशिश। करोड़ कोशिश करते हैं, पंच महाभूत केवल लोगों की प्रचलित शब्दावली का उपयोग एक पहुंच पाता है। कोशिश करता है वह, जिसके पास विधायक है। और इसलिए भारत के भी जो लोग सिर्फ शब्दों को सोचते हैं, मन है। लेकिन विधायक मन का खतरा है कि वह अहंकार को | शास्त्रों को सोचते हैं, वे भी इस पंच महाभूत की धारणा में गहरे
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