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~ परमात्मा की खोज >
पता भी नहीं चलता।
तो चर्च के जिस पादरी ने विवाह करवाया था, उसने पूछा कि इतने परमात्मा की खोज पर निकलने में जो सबसे बड़ी बाधा है, वह उदास क्यों हो गए हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए, क्योंकि जिसे मन का यह नियम है कि हमें उसका ही पता चलता है, जो नहीं है। तुमने चाहा था, वह स्त्री तुम्हें मिल गई! निगेटिव का पता चलता है, पाजिटिव का पता नहीं चलता। टूट | वह युवक कहने लगा, इसीलिए तो उत्साह एकदम क्षीण हो गया गया दांत, तो पता चलता है। वह दांत चालीस साल से आपके पास || है। उत्साह एकदम क्षीण हो गया है। जिसे चाहा था, वह मिल गई, था, तब इस जीभ ने कभी उसकी फिक्र न की। आज नहीं है, तो | इसीलिए तो उत्साह एकदम क्षीण हो गया है। उस युवक ने कहा कि उसकी तलाश है!
आज मैं सोचता हूं कि मजनू के रास्ते में जिन लोगों ने बाधाएं डालीं मन निगेटिविटी, मन जो है नकार की तरफ दौड़ता है। वैसे ही और लैला को न मिलने दिया, उन्होंने बड़ी कृपा की। क्योंकि मजनू जैसे पानी गड्ढों की तरफ दौड़ता है, ऐसा ही मन अभाव की तरफ, लैला को याद तो करता रहा। जिन मजनुओं को उनकी लैलाएं मिल एब्सेंस की तरफ, जो नहीं है, उसकी तरफ दौड़ता है। जो है, उसकी जाती हैं, वे और दूसरों की लैलाओं की भला फिक्र करें, अपनी तरफ मन नहीं दौड़ता।
लैलाएं भूल जाते हैं! और परमात्मा सर्वाधिक है। टू मच। इतना ज्यादा है कि उसके | मन का नियम है, जो मिल जाता है, वह भूल जाता है। और सिवाय और कुछ भी नहीं है। वही वही है। सब तरफ वही है। आंख परमात्मा तो मिला ही हुआ है। उसे तो याद करने की सुविधा भी खोलें तो, आंख बंद करें तो; जागें तो, सो जाएं तो। सब तरफ वही नहीं बनती। वही है। सागर की तरह हमें घेरे हुए है। इसलिए करोड़ों में एक तो मन के नियम को बदलना पड़ेगा। मन का नियम अभी गड्डों उसकी खोज पर निकलता है।
| की तरफ दौड़ना है। मन को पर्वतों की तरफ दौड़ाना शुरू करना अगर परमात्मा की खोज पर निकलना हो, करोड़ों में एक बनना। | पड़ेगा। और कोई कठिनाई नहीं है। हो, तो इस सूत्र से विपरीत चलेंगे तभी, अन्यथा कभी नहीं। जो जिंदगी में बहुत कुछ मिला है, उसमें आह्लाद अनुभव करें। जो आपके पास हो, उसका स्मरण रखें; और जो आपसे दूर हो, उसे | मिला है, उसमें प्रसन्न हों। जो है पास, उसमें संतुष्ट हों। जो पास भूल जाएं। जो दांत अभी मुंह में हो, उसे जीभ से टटोलें; और जो | है, उसके लिए प्रभु को धन्यवाद दें। जो है, उसे देखें; और जो नहीं गिर जाए, उसे मत टटोलें। जो आज सुबह रोटी मिली हो, उसका | है, उसे छोड़ें। बहुत शीघ्र आप पाएंगे कि आपकी परमात्मा की
आनंद लें; जो रोटी कल मिलेगी, उसके सपने मत देखें। जो नहीं | खोज शुरू हो गई। है, उसे छोड़ दें; और जो है, उसे पूरे आनंद से जी लें। तो आप ___ इसलिए जिन लोगों ने परमात्मा की खोज में संतोष को अनिवार्य करोडों में एक बनना शरू हो जाएंगे।
बताया है, उसका कारण भी आप समझ लें, वह इस सूत्र में छिपा क्योंकि ध्यान रखना, यात्रा सीधी परमात्मा की नहीं हो सकती, हुआ है। संतोष में अपने आप कोई मूल्य नहीं है। संतोष अपने आप जब तक आपके मन का ढंग, आपके मन की व्यवस्था न बदले। में कोई वेल्यू नहीं है; उसकी अपने आप में कोई कीमत नहीं है।
कभी आपने खयाल किया कि आप सोचते हैं, एक मकान बना क्योंकि मरा हुआ आदमी भी, मरा-मराया आदमी भी संतुष्ट दिखाई लें। जब तक नहीं बनाते, तब तक मन बिलकुल आर्किटेक्ट हो पड़ सकता है। ऐसा आदमी भी संतुष्ट मालूम पड़ सकता है, जाता है। कितनी कल्पनाएं करता है। कितने नक्शे बनाता है। फिर जिसमें जरा भी दौड़ने की हिम्मत नहीं है। कायर है, भयभीत है, मकान बन जाता है। फिर उसी मकान में जीने लगते हैं, और मकान चुनौती लेने से डरता है। नहीं; संतोष में अपने आप में मूल्य नहीं को भूल जाते हैं। हां, रास्ते से जो निकलते होंगे, उनके मन में है, लेकिन संतोष का एक ही मूल्य है, वह परमात्मा की तरफ आपके मकान के लिए विचार आता होगा। आपको भर नहीं आता, उन्मुख करने में कीमती है। जो उसके भीतर रहता है!
इसलिए मैं आपको कहता हूं कि संतोष का अब तक जो भी पढ़ रहा था मैं, एक युवक का विवाह हो रहा है चर्च में। घंटियां | खयाल दुनिया में दिया गया कि संतोषी सदा सुखी, वह सब बच्चों बजी हैं, और मोमबत्तियां जली हैं। और मित्र उपहार लाए हैं, और की बातें हैं। सच तो यह है कि संतोषी के जीवन में एक नया दुख धन्यवाद दे रहे हैं। लेकिन तभी अचानक वह युवक उदास हो गया। पैदा होता है, वह दुख परमात्मा को पाने का दुख है। वह और किसी
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