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- गीता दर्शन भाग-3 -
तो कृष्ण कहते हैं, यह पहली शर्त है।
ा ब्द तो वही रहते हैं। रुख बदल जाए, तो सब बदल पुराने समस्त गुरु शर्ते पहले लगा देते थे। कहते थे, पहले ये | जाता है। शर्ते पूरी कर दो, फिर हम तुमसे कहेंगे। क्योंकि कहीं ऐसा न हो | परमात्मा में आसक्त मन वाला। और परमात्मा में कि तुम बेकार हमारा समय जाया करो।
आसक्त मन वाला जब हम कहेंगे, तो आसक्त शब्द का वही अर्थ अगर सूफी फकीर के पास आप सीखने जाएं, तो कहेगा कि दो | न रह जाएगा, जो धन में आसक्ति वाला, यश में आसक्ति वाला। साल घर में झाडू-बुहारी लगाते रहो। आप कहेंगे, मैं सत्य खोजने | शब्द तो बदल जाते हैं तत्काल, जैसे ही उनका आयाम बदलता आया हूं, झाडू-बुहारी लगाने नहीं। तो वह कहेगा, सत्य की खोज | | है। हमारे पास शब्द तो थोड़े हैं। और हमारे सब शब्द जूठे हैं। का यह पहला चरण हुआ। तुम दो साल झाडू-बुहारी लगाओ। कृष्ण के पास भी कोई उपाय नहीं है नए शब्दों के बोलने का। बीच में मुझसे पूछना मत। लगाते रहना। जब मैं समझूगा कि वह | | हमारे ही शब्दों का उपयोग करना है। अगर कहेंगे प्रेम, तो हमारे वक्त आ गया, अब मैं तुमसे कहूं, दि टाइम इज़ राइप, समय पक | मन में जो खयाल आता है, वह हमारे ही प्रेम का आता है। अगर गया, तब मैं तुमसे कह दूंगा। भाग जाएंगे हम तो तभी! कहेंगे आसक्त, तो हमारे मन में जो अर्थ आता है, वह हमारी ही
सुना है मैंने कि एक सूफी फकीर के पास एक आदमी आया और आसक्ति का आता है। लेकिन जो शर्त लगी है, परमात्मा में उसने कहा कि मैं सत्य की खोज में आया हूं। उस फकीर ने कहा, आसक्त मन वाला! यह खोज बड़ी कठिन है। तुम्हारी तैयारी पूरी है ? उसने कहा, मेरी परमात्मा में कौन होता है आसक्त? तैयारी पूरी है। तो फकीर ने कहा, अपना नाम-पता लिखा दो; |
| तो कृष्ण ने पहले बहुत व्याख्या की है उसकी, कि जो सब भांति अगर इस खोज में तुम मर जाओ, तो तुम्हारे अस्थिपंजर में कहां अनासक्त हो गया, वही परमात्मा में आसक्त होता है। परमात्मा में भेजूं! व्हेयर शुड आई सेंड दि रिमेंस—जो बच रहे पीछे, उसे मैं | आसक्ति का मतलब है, पूर्ण अनासक्ति। पूर्ण अनासक्ति न हो, कहां भेजूं! उस आदमी ने कहा कि अगर आप बुरा न मानें, तो मैं | | तो परमात्मा में आसक्ति न होगी। जरा-सी भी आसक्ति कहीं बची अस्थिपंजर खुद ही लिए जाता हूं। और भाग खड़ा हुआ! आपको | | हो, तो परमात्मा में आसक्ति न होगी। कष्ट होगा भेजने का, मैं खुद ही लिए जाता हूं!
तो चाहे हम कहें, आसक्ति। आसक्ति का अर्थ है, जिसमें हम उसने सोचा भी न था कि सत्य की खोज में अस्थिपंजर भी कभी आकर्षित हो रहे हैं. जिसमें हम खींचे जा रहे हैं. जिसमें हम बलाए भेजने की जरूरत पड़ सकती है। वह भी नहीं समझा। अस्थिपंजर जा रहे हैं; जिसमें हम पुकारे जा रहे हैं; जिसके बिना हम न जी से उस फकीर का मतलब बड़ा गहरा रहा होगा।
सकेंगे। तो चाहे कहें आसक्ति, चाहे कहें प्रेम, चाहे कहें अनन्य वह जो हम अपने चारों तरफ बांधे हैं, जिसकी वजह से हम सब | राग, चाहे कहें भक्ति; इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। इतना ही तरफ से कट जाते हैं; एक आईलैंड, एक द्वीप की तरह बन जाते | प्रयोजन है कि जो परमात्मा की तरफ खिंचा जा रहा है; जिसके हैं; सब तरफ से टूटकर अलग खड़े हो जाते हैं। उसमें सत्य प्रवेश | आकर्षण का बिंदु परमात्मा हो गया। और परमात्मा का क्या अर्थ नहीं करेगा। सत्य के लिए द्वार चाहिए।
| होता है? इसलिए कृष्ण कहते हैं, इतनी तैयारी हो अर्जुन, तो फिर सुन। परमात्मा का अर्थ है, सब कुछ। जो इस सब को घेरे हुए है, जो
इस सब के भीतर छिपा है, वह निराकार और अरूप जो सब रूपों
| में व्याप्त है, उसकी तरफ जो आकर्षित हो गया। जो अब बंद में प्रश्नः भगवान श्री, एक छोटा-सा प्रश्न है। अनन्य | आकर्षित नहीं है, बूंद में छिपे महासागर में आकर्षित है। जो व्यक्ति प्रेम को यहां मूल संस्कृत में कहा गया है, | में आकर्षित नहीं है, व्यक्ति के भीतर छिपे अव्यक्ति में आकर्षित आसक्तमना। मेरे में आसक्त मन वाले का कैसा | है। जो अब अगर अपनी पत्नी को भी प्रेम कर रहा है, तो पत्नी को आध्यात्मिक अर्थ होगा? इसे स्पष्ट करें। | प्रेम नहीं कर रहा है, पत्नी में छिपे परमात्मा को प्रेम कर रहा है।
अब जो सब तरफ, उस परमात्मा से ही खींचा जा रहा है और बुलाया जा रहा है। जो सब भांति उसी की तरफ दौड़ रहा है, उसी
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