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________________ श्रद्धावान योगी श्रेष्ठ है - मकान हो, खिड़की रहित कोई मकान हो; सब द्वार-दरवाजे बंद, ऐसा मत समझना आप कि श्रद्धा का यह अर्थ हुआ कि जो अंदर बैठे हैं। परमात्मा में श्रद्धा करते हैं, उनको ही परमात्मा सहायता देता है। श्रद्धावान व्यक्ति वह है, जिसके द्वार-दरवाजे खुले हैं। सूरज नहीं, परमात्मा तो सहायता सभी को देता है। लेकिन जो श्रद्धा करते को भीतर आने की आज्ञा है। हवाओं को भीतर प्रवेश की सुविधा हैं, वे उस सहायता को ले पाते हैं। और जो श्रद्धा नहीं करते, वे है। ताजगी को निमंत्रण है कि आओ। श्रद्धा का और कोई अर्थ नहीं नहीं ले पाते हैं। होता। श्रद्धा का अर्थ है, मुझसे भी विराट शक्ति मेरे चारों तरफ श्रद्धा का अर्थ है, ट्रस्ट। मैं एक बूंद से ज्यादा नहीं हूं इस विराट मौजूद है, मैं उसके सहारे के लिए निरंतर निवेदन कर रहा हूं। बस, जीवन के सागर में। इस अस्तित्व में एक छोटा-सा कण हूं। इस और कुछ अर्थ नहीं होता। विराट अस्तित्व में मेरी क्या हस्ती है? ___ मैं अकेला काफी नहीं हूं। क्योंकि मैं जन्मा नहीं था, तब भी वह __ योग तो कहता है कि तू अपनी हस्ती को इकट्ठा कर और श्रम कर। विराट शक्ति मौजूद थी। और आज भी मेरे हृदय की धड़कन मेरे और श्रद्धा कहती है, अपनी हस्ती को पूरा मत मान लेना। नाव को द्वारा नहीं चलती, उसके ही द्वारा चलती है। और आज भी मेरा खून खोलना जरूर किनारे से, लेकिन हवाएं तो उसकी ही ले जाएंगी तेरी मैं नहीं बहाता, वही बहाता है। और आज भी मेरी श्वास मैं नहीं नाव को। नाव को खोलना जरूर किनारे से, लेकिन नदी की धार तो लेता, वही लेता है। और कल जब मौत आएगी, तो मैं कुछ न कर उसी की है, वही ले जाएगी। नाव को खोलना जरूर, लेकिन तेरे सकूँगा। शायद वही मुझे अपने में वापस बुला लेगा। तो जो मुझे हृदय की धड़कन भी उसी की है, वही पतवार चलाएगी। यह सदा जन्म देता, जो मुझे जीवन देता, जो मुझे मृत्यु में ले जाता, जिसके स्मरण रखना कि कर रहा हूं मैं, लेकिन मेरे भीतर तू ही करता है। हाथ में सारा खेल है, मैं अकड़कर यह कहूं कि मैं ही चल लूंगा, चलता हूं मैं, लेकिन मेरे भीतर तू ही चलता है। मैं ही सत्य तक पहुंच जाऊंगा, तो थोड़ी-सी भूल होगी। द्वार बंद ऐसी श्रद्धा बनी रहती है, तो छोटा-सा दीया भी सूरज की शक्ति हो जाएंगे व्यर्थ ही। विराट शक्ति मिल सकती थी सहयोग के लिए, का मालिक हो जाता है। ऐसी श्रद्धा बनी रहती है, तो छोटा-सा वह न मिल पाएगी। अणु भी परम ब्रह्मांड की शक्ति के साथ एक हो जाता है। ऐसी इसलिए अंतिम सूत्र कृष्ण कहते हैं, योग की इतनी लंबी चर्चा श्रद्धा बनी रहती है, तो फिर हम अकेले नहीं हैं, फिर परमात्मा सदा के बाद श्रद्धा की बात! साथ है। योग का तो अर्थ है, मैं करूंगा कुछ; श्रद्धा का अर्थ है, मुझसे एक छोटी-सी घटना, और मैं अपनी बात पूरी करूं। अकेले से न होगा। योग और श्रद्धा विपरीत मालूम पड़ेंगे। योग का संत थेरेसा, एक ईसाई फकीर औरत हुई। वह एक बहुत बड़ा अर्थ है, मैं करूंगा-विधि, साधन, प्रयोग, साधना। और श्रद्धा चर्च बनाना चाहती थी; बहुत बड़ा, कि जमीन पर इतना बड़ा कोई का अर्थ है. करूंगा जरूर लेकिन मैं काफी नहीं हं. तेरी भी जरूरत चर्च न हो। उसके शिखर आकाश को छएं और उसके शिखर पड़ती रहेगी। और जहां मैं कमजोर पड़ जाऊं, तेरी शक्ति मुझे स्वर्णमंडित हों, और स्वर्ण में हीरे जड़े हों। वह दिन-रात उसी की मिले। और जहां मेरे पैर डगमगाएं, तेरा बल मुझे सम्हाले। और कल्पना करती थी। फिर एक दिन उसने गांव में आकर कहा कि मुझे जहां मैं भटकने लगू, तू मुझे पुकारना। और जहां मैं गलत होने कोई कुछ दान कर दो। मैं एक बहुत बड़ा चर्च, मंदिर बनाना चाहती लगू, तू मुझे इशारा करना। हूं प्रभु के लिए। और मजे की बात यह है कि जो इस भाव से चलता है, उसे इशारे लेकिन जैसे कि सब गांव के लोग होते हैं, वैसे ही उस गांव के मिलते हैं, सहारे मिलते हैं; उसे बल भी मिलता है, उसे शक्ति भी लोग भी थे। उसने बहुत, अगर उसके पास डब्बा रहा होगा, तो मिलती है। और जो इस भरोसे नहीं चलता, उसे भी मिलता है बहुत बजाया। तीन नए पैसे लोगों ने दिए। लेकिन थेरेसा नाचने इशारा, लेकिन उसके द्वार बंद हैं, इसलिए वह नहीं देख पाता। उसे | | लगी, और लोगों से बोली कि अब चर्च बन जाएगा। लोगों ने भी मिलती है शक्ति, लेकिन शक्ति दरवाजे से ही वापस लौट जाती | कहा, डब्बा तो इतना छोटा है, चर्च बहुत बड़ा। क्या डब्बा पूरा भर है। उसे भी मिलता है सहारा, लेकिन वह हाथ नहीं बढ़ाता, और गया? तो भी क्या होगा? बढ़ा हुआ परमात्मा का हाथ वैसा का वैसा रह जाता है। डब्बा खोला। भरा तो क्या था, कुल तीन पैसे थे! फिर भी संत 3151
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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