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गीता दर्शन भाग-3
एक भी नहीं है।
में सत्य का उदघाटन होता है। सत्य का अनुभव न हो और अज्ञानी पूरा गांव राजी हो गया। कई लोगों के पास पत्नियां नहीं थीं। | के हाथ में गीता हो, तो सिवाय अज्ञान के गीता में से कोई अर्थ नहीं लोगों ने कहा, यह तो बिलकुल समाजवादी प्रोग्राम है; यह तत्काल | निकलता; निकल सकता नहीं। पूरा होना चाहिए। और गांव में कई लोग थे, जिनके पास दो-दो शास्त्र-ज्ञान दूसरी कोटि का ज्ञान है। प्रथम कोटि का ज्ञान तो पत्नियां थीं। गांव का जमींदार था, जिसके पास दो पत्नियां थीं। अनुभव है, स्वानुभव है। पहली कोटि का ज्ञान हो, तो शास्त्र बड़े सबकी नजरें उन पत्नियों पर थीं। उन्होंने कहा, कुछ न हो, हमको | चमकदार हैं। और पहली कोटि का ज्ञान न हो, तो शास्त्र बिलकुल न भी मिली तो कोई हर्जा नहीं; जमींदार की तो छूट जाएगी। कोई रद्दी की टोकरी में, उनका कोई मूल्य नहीं है। ' फिक्र नहीं; आंदोलन चले।
गीता पढ़ने अगर योगी जाएगा, तो गीता में सागर है अमृत का। ___ आंदोलन चल पड़ा। जमींदार गांव के बाहर गया था। वह एक और गीता पढ़ने अगर बिना योग के कोई जाएगा, तो सिवाय शब्दों पत्नी को उठाकर आंदोलनकारी ले गए।
के और कुछ भी नहीं है। कोरे खाली शब्द हैं, ऐसे जैसे कि चली ___ चल रहा है जुलूस। नारे लग रहे हैं। जमींदार भागा हुआ आया! हुई कारतूस होती है। चली हुई कारतूस! कितना ही चलाओ, कुछ नेता का पैर पकड़ लिया, और कहा कि बड़ा अन्याय कर रहे हो | नहीं चलता। उठा लो सूत्र श्लोक एक गीता का, कर लो कंठस्थ! मेरे ऊपर। नेता ने कहा, अन्याय कुछ भी नहीं। अन्याय तुमने किया खाली कारतूस लिए घूम रहे हो; कुछ होगा नहीं। प्राण तो अपने ही है। दो-दो पत्नियां रखे हो. जब कि गांव में कई लोगों के पास एक अनुभव से आते हैं। भी पत्नी नहीं है, आधी भी पत्नी नहीं है। दो-दो रखे हुए हो तुम? और कृष्ण खुद कहते हैं अर्जुन को, शास्त्र-ज्ञान भी नहीं है उतना यह नहीं चलेगा। उसने कहा कि नहीं, आप समझ नहीं रहे हैं, बहुत | श्रेष्ठ। शास्त्र-ज्ञान से भी ज्यादा श्रेष्ठ है योग। अन्याय कर रहे हैं मेरे ऊपर। हाथ-पैर जोड़ता हूं। मुझ पर थोड़ा और तीसरी बात कहते हैं, सकाम कर्मों से-किसी आशा से ध्यान धरो। मेरा थोड़ा खयाल करो। रोने लगा, गिड़गिड़ाने लगा। की गई कोई भी प्रार्थना, कोई भी पूजा, कोई भी यज्ञ—उससे योग
और फिर इस भीड़ में, जब पत्नी को उठाकर लाए थे, तब तक श्रेष्ठ है। क्यों? क्योंकि योग की साधना का आधारभूत नियम, तो सोचा था कि दो पत्नियां हैं जमींदार के पास। जब लाए तो इस | | उसकी पहली कंडीशन यह है कि तुम निष्काम हो जाओ। आशा बीच में देखा कि साधारण सी औरत है; नाहक परेशान हो रहे हैं। छोड़ दो, अपेक्षा छोड़ दो, फल की आकांक्षा छोड़ दो, तभी योग फिर जब वह इतना गिड़गिड़ाने लगा, तो नेताओं ने कहा कि झंझट में प्रवेश है। भी छुड़ाओ। इस स्त्री को कोई लेने को भी राजी न होगा। । तब यज्ञ तो बहुत छोटी-सी बात हो गई, सांसारिक बात हो गई।
तो कहा, अच्छा तू नहीं मानता है, तो ले जा अपनी पत्नी को; | | किसी के घर में बच्चा नहीं हो रहा है, किसी के घर में धन नहीं बरस हम छोड़े देते हैं।
रहा है, किसी को पद नहीं मिल रहा है, किसी को कुछ नहीं हो रहा जमींदार बोला कि आप बिलकुल गलत समझ रहे हैं। मेरा | है, तो यज्ञ कर रहा है, हवन कर रहा है। मतलब यह नहीं कि इसको लौटा दो। मेरा मतलब, दूसरी को क्यों वासना और कामना से संयोजित जो भी आयोजन हैं, योग उनसे
छोड़ आए? बड़ा अन्याय कर रहे हैं। उसको भी ले जाओ। बहुत श्रेष्ठ है। क्योंकि योग की पहली शर्त है, निष्काम हो जाओ। __ अब जब उसने कहा कि बड़ा अन्याय कर रहे हैं, तो बहुत कठिन | | इसलिए कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, तू योगी बन। तू योग को था कि नेता समझ पाता कि यह कह रहा है कि दसरी को भी ले | उपलब्ध हो। योग से कुछ भी नीचे, इंचभर नीचे न चलेगा। और जाओ। मुश्किल था मामला। वह यही समझा स्वभावतः, कि इस | उन्होंने अब तक योग की ही शिलाएं रखीं, आधारशिलाएं रखीं। पत्नी को छोड़ दो।
योग की ही सीढ़ियां बनाईं। और अब वे अर्जुन से कहते हैं कि योग शब्द का अपने आप में अर्थ नहीं है। शब्द की व्याख्या निर्मित | की यात्रा पर निकल अर्जुन। तेरा मन चाहेगा कि सकाम कोई भक्ति होती है। जब गीता में से कुछ आप पढ़ते हैं, तो आप यह मत | | में लग जा, युद्ध जीत जाए, राज्य मिल जाए। लेकिन मैं कहता हूं समझना कि कृष्ण जो कहते हैं, वह आप समझते हैं। आप वही | कि सकाम होना धर्म की दिशा में सम्यक यात्रा-पथ नहीं है। तेरा समझते हैं, जो आप समझ सकते हैं। सत्य का अनुभव हो, तो गीता | मन करेगा कि योग के इतने उपद्रव में हम क्यों पड़ें। शास्त्र पढ़
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