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गीता दर्शन भाग-3
एक:
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । का क्या मूल्य है! इसे ऐसा समझने की कोशिश करें। यतते च ततो भयः संसिद्धौ करुनन्दन ।। ४३ ।।। एक साध्वी, झेन साध्वी वर्षों तक अपने गुरु के पास थी। सब और वह पुरुष वहां उस पहले शरीर में साधन किए हुए बुद्धि तरह के प्रवचन सुने, सब तरह के शास्त्र समझे, सब तरह के
के संयोग को अर्थात समत्वबुद्धि योग के संस्कारों को। सिद्धांतों को जान लिया। लेकिन बस, कहीं कोई चीज अटकी थी अनायास ही प्राप्त हो जाता है। और हे कुरुनंदन, उसके और द्वार नहीं खुलते थे। ऐसा लगता था, चाबी हाथ में है, फिर भी प्रभाव से फिर अच्छी प्रकार भगवत्प्राप्ति के निमित्त यत्न | ताला अनखुला ही रह जाता था। ऐसा लगता था कि मैं जानती हूं, करता है।
फिर भी कुछ अंतराल था, कोई बाधा थी, कुछ दीवाल थी। कितनी ही बारीक और महीन पर्त थी, पर उस पार नहीं निकल पाती थी।
गुरु से बार-बार पूछती है कि कौन-सी बाधा है? कैसे टूटेगी? जीवन में कोई भी प्रयास खोता नहीं है। जीवन समस्त | गुरु कहता है, तू प्रतीक्षा कर। बहुत ही छोटी-सी बाधा है, UIT प्रयासों का जोड़ है, जो हमने कभी भी किए हैं। समय | अनायास ही टूट जाएगी। और बाधा इतनी छोटी है कि तू प्रयास
के अंतराल से अंतर नहीं पड़ता है। प्रत्येक किया हुआ शायद न कर पाए। बाधा बहुत छोटी है, अनायास ही टूट जाएगी। कर्म, प्रत्येक किया हुआ विचार, हमारे प्राणों का हिस्सा बन जाता | थोड़ी प्रतीक्षा कर; थोड़ी प्रतीक्षा कर।
। हम जब कछ सोचते हैं. तभी रूपांतरित हो जाते हैं. जब कछ वर्ष पर वर्ष बीत गए। वह वद्ध भी हो गई। फिर एक दिन उसने करते हैं, तभी रूपांतरित हो जाते हैं। वह रूपांतरण हमारे साथ | | कहा कि कब टूटेगी वह बाधा? गुरु ने आकाश की तरफ देखा और चलता है।
कहा कि इस पखवाड़े में शायद चांद के पूरे होने तक टूट जाए। हम जो भी हैं आज, हमारे विचारों, भावों और कर्मों का जोड़ पांच-सात दिन बचे थे चांद की पूरी रात आने को, पूर्णिमा आने हैं। हम जो भी हैं आज, वह हमारे अतीत की पूरी श्रृंखला है। एक को। और पूर्णिमा की रात बाधा टूटी। और ऐसी अनायास टूटी कि क्षण पहले तक, अनंत-अनंत जीवन में जो भी किया है, वह सब | झेन फकीरों के इतिहास में वह कहानी बन गई। मेरे भीतर मौजूद है।
सांझ सूरज डूब गया। चांद निकल आया। रोशनी उसकी फैलने कृष्ण कह रहे हैं, इस जीवन में जिसने साधा हो योग, लेकिन लगी। गुरु ने, कोई दस बजे होंगे रात, उस साध्वी को कहा, मुझे सिद्ध न होप
ो पाए अर्जन, तो अगले जीवन में अनायास ही, जो उसने प्यास लगी है, त जाकर कएं से पानी ले आ। जैसा जापान में करते साधा था, उसे उपलब्ध हो जाता है। अनायास ही! उसे पता भी नहीं हैं, यहां भी करते हैं। एक बांस की डंडी पर दोनों तरफ बर्तन लटका चलता। उसे यह भी पता नहीं चलता कि यह मुझे क्यों उपलब्ध हो | | देते हैं और कुएं से पानी लाते हैं। रहा है। इसलिए कई बार बड़ी भ्रांति होती है। और इस जगत में | - बांस की डंडी पर लटके हुए मिट्टी के बर्तनों को लेकर कुएं पर सत्य अनायास मिल सकता है, इस तरह के जो सिद्धांत प्रतिपादित | | पानी भरने गई। पानी भरकर लौटती थी। सोचती थी कि पूर्णिमा भी हए हैं, उनके पीछे यही भ्रांति काम करती है।
आ गई। चांद भी पूरा हो गया। आधी रात भी हुई जाती है। और कोई व्यक्ति अगर पिछले जन्म में उस जगह पहुंच गया है, जहां | | गुरु ने कहा था कि शायद इस बार चांद के पूरे होते-होते बात हो पानी निन्यानबे डिग्री पर उबलने लगे, और एक डिग्री कम रह गया जाए। अभी तक हुई नहीं। और कोई आशा भी नहीं दिखाई पड़ती! है, वह अचानक कोई छोटी-मोटी घटना से इस जीवन में परम ज्ञान | और अब तो सोने का वक्त भी आ गया। अब गुरु को पानी को उपलब्ध हो सकता है। आखिरी तिनका रह गया था ऊंट पर पिलाकर, और मैं सो जाऊंगी। कब घटेगी यह बात! पड़ने को और ऊंट बैठ जाता है। पर एक छोटा-सा तिनका, अगर । और तभी अचानक उसकी बांस की डंडी टूट गई। उसके दोनों आप कभी वजन तौलते हैं तराजू पर रखकर, तो आपको पता है, | बर्तन जमीन पर गिरे; फूट गए; पानी बिखर गया। और घटना घट एक छोटा-सा तिनका कम हो, तो तराजू का पलड़ा ऊपर रहता है। गई। उसने एक गीत लिखा है कि जब बर्तन नीचे गिरा, तब मैं बर्तन एक तिनका बढ़ा, तो तराजू का पलड़ा नीचे बैठ जाता है; दूसरा । में देखती थी कि चांद का प्रतिबिंब बन रहा है—पानी में। फिर मिट्टी ऊपर उठ जाता है। एक तिनके की भी प्रतिष्ठा होती है। एक तिनके | का घड़ा था; गिरा, फूटा। घड़ा भी फूट गया। पानी बिखर गया।
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