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________________ - यह किनारा छोड़ें की हो, स्वर्ग चले जाते हैं। लेकिन जिन्होंने योग की साधना मुक्त | | मालूम क्या कह रहे हैं! बोधिधर्म ने कहा, मैं लौट जाता हूं। लेकिन होने के लिए की हो, लेकिन असफल हो गए हों, भ्रष्ट हो गए हों, | ध्यान रख, आखिर में मैं ही काम पडूंगा। वे उन घरों में जन्म ले लेते हैं, जहां इस जीवन में छूटा हुआ क्रम वह लौट गया। नौ-दस वर्ष बाद जब सम्राट वू की मृत्यु हो रही अगले जीवन में पुनः संलग्न हो जाए। वे उन योग के वातावरणों में थी, तब उसे बड़ी घबड़ाहट होने लगी। उसे लगा, अब मेरा क्या पुनः पैदा हो जाते हैं, जहां से पिछली यात्रा फिर से शुरू हो सके। | होगा? मैंने इतने मंदिर बनाए जरूर; मैंने इतने भिक्षुओं को भोजन इसलिए अर्जुन को कृष्ण कहते हैं, तू आश्वासन रख। तू | कराया जरूर; मैंने इतनी मूर्तियां बनाईं जरूर; मैंने इतने शास्त्र भयभीत न हो। यदि मोक्ष न भी मिला, तो स्वर्ग मिल सकेगा। अगर छपवाए जरूर; लेकिन मेरी आकांक्षा तो यही थी कि लोग कहें कि स्वर्ग भी न मिला, तो कम से कम उस कुल में जन्म मिल सकेगा, तू कितना महान धर्मी है! मेरे अहंकार के सिवाय और तो मैंने कुछ जहां से तूने छोड़ी थी पिछली यात्रा, तू पुनः शुरू कर सके। भयभीत न चाहा! ये सारे मंदिर, ये सारे तीर्थ, ये सारी मूर्तियां, मेरे अहंकार न हो। घबड़ा मत। इस किनारे को छोड़ने की हिम्मत कर। अगर के आभूषण से ज्यादा कहां हैं? तब वह घबड़ाया। मौत करीब आने वह किनारा न भी मिला, तो भी इस किनारे से बुरा नहीं होगा। और लगी, तब वह घबड़ाया। तब वह चिल्लाया, हे बोधिधर्म! अगर कुछ भी हो जाए, यह किनारा वापस मिल जाएगा, इसलिए घबड़ा तुम कहीं हो, तो लौट आओ; क्योंकि शायद तुम्हीं ठीक कहते थे। मत। इसको छोड़ने में भय मत कर। अगर मैं तुम्हारी सुन लेता, तो शायद मैं कुछ कर सकता, जो मुझे मैंने कहा सुबह आपसे कि कृष्ण जैसा शिक्षक अर्जुन की बुद्धि मुक्त कर देता। ये तो मैंने नए बंधन ही निर्मित किए हैं। को समझकर बात करता है। अगर अर्जुन ने बुद्ध से पूछा होता कि __ अगर बुद्ध होते, तो अर्जुन को ऐसा न कहते। लेकिन बुद्ध और अगर मैं भ्रष्ट हो जाऊं, तो कहां पहुंचूंगा? तो पता है आपको, बुद्ध | अर्जुन की मुलाकात नहीं हो सकती थी। वह इंपासिबल है, वह क्या कहते? जहां तक संभावना तो यह है कि बुद्ध कुछ कहते ही | असंभव है। क्योंकि बुद्ध को युद्ध के मैदान पर नहीं लाया जा नहीं, तू जान। लेकिन अगर हम बहुत ही खोजबीन करें बुद्ध सकता था। और अर्जुन बुद्ध के बोधिवृक्ष के नीचे हाथ जोड़कर, साहित्य में, तो सिर्फ एक घटना मिलती है। बुद्ध की नहीं मिलती, नमस्कार करके, जिज्ञासा करने नहीं जा सकता था। वे टाइप अलग बोधिधर्म की मिलती है, बुद्ध के एक शिष्य की। थे। अर्जुन जंगल में किसी गुरु के पास जिज्ञासा करने जाता, इसकी ___ वह चीन गया। चीन के सम्राट ने उसका स्वागत किया। और संभावना कम थी। अगर जाता भी कहीं बुद्ध के पास, तो वृक्ष के चीन के सम्राट ने उसका स्वागत करके कहा, बोधिधर्म, हे ऊपर बैठकर पछता, नीचे नहीं। महाभिक्षु, तुमसे मैं कुछ बातें जानना चाहता हूं। मैंने हजारों बुद्ध के | कृष्ण को भी उसके अहंकार को बीच-बीच में तृप्ति देनी पड़ती मंदिर बनाए, लाखों प्रतिमाएं स्थापित की। मुझे इसका क्या फल | है। कहते हैं, हे महाबाहो, हे विशाल बाहुओं वाले अर्जुन! तो मिलेगा? बोधिधर्म ने कहा, कुछ भी नहीं। सम्राट ने कहा, कुछ भी अर्जुन बड़ा फूलता है। ठीक है। कृष्ण से भी सुनने को राजी हो गया नहीं! आप समझे, मैंने क्या कहा? मैंने अरबों रुपए खर्च किए, इसीलिए कि कृष्ण सारथी हैं उसके, मित्र हैं, सखा हैं; कंधे पर हाथ इसका फल मुझे क्या मिलेगा? बोधिधर्म ने कहा, कुछ भी नहीं। रख सकता है; चाहे तो कह सकता है कि सब व्यर्थ की बातें कर क्योंकि तूने फल की आकांक्षा की, उसी में तूने सब खो दिया। वह रहे हो! इसलिए सुनने को राजी हो गया। सब व्यर्थ हो गया तेरा किया हुआ। दो कौड़ी का हो गया तेरा किया | तो बुद्ध और अर्जुन की मुलाकात नहीं हो सकती थी, वह हआ। उसने कहा. क्या बातें कर रहे हैं? मैंने इतना पवित्र कार्य असंभव दिखती है। अर्जन जाता न बद्ध के पास. और बद्ध को किया, सच होली वर्क, ऐसा पवित्र कार्य! बोधिधर्म ने कहा, तू मूढ़ युद्ध के मैदान पर न लाया जा सकता था। है। देअर इज़ नथिंग ऐज होली, एवरीथिंग इज़ जस्ट एंप्टी-कोई | । इसलिए कृष्ण अर्जुन को जो कह रहे हैं, पूरे वक्त अर्जुन को पवित्र-अवित्र नहीं है; सब खाली है, सब शून्य है। देखकर कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, बहुत सुख मिलेंगे अर्जुन, अगर सम्राट ने कहा, आप कृपा करके किसी और राज्य में पदार्पण | | तू अच्छे काम करते हुए मर जाता है असफल, तो स्वर्गों में पैदा करें। क्योंकि या तो आप ऐसी बात कह रहे हैं, जो हमारी बुद्धि में हो जाएगा। नहीं पड़ती; और या फिर आपकी बुद्धि ही ठीक नहीं है। आप न अगर बुद्ध से वह कहता कि स्वर्गों में पैदा होऊंगा, तो वे कहेंगे, 289
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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