________________
-तंत्र और योग
काश, दुनिया के सभी धर्म यह समझ पाएं कि उनका जो शास्त्र
अर्जुन उवाच है, वह एक मत है, सत्य नहीं है, तो झगड़ा न हो। क्योंकि सत्य के अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः । संबंध में हजार मत हो सकते हैं। हजार सत्य नहीं हो सकते। लेकिन अप्राप्य योगसंसिद्धि कां गतिं कृष्ण गच्छति ।। ३७ ।। चूंकि प्रत्येक शास्त्र दावा करता है सत्य का, इसलिए दो सत्यों कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति । में-दो सत्य कैसे माने–कलह खड़ी हो जाती है।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्मणः पथि ।। ३८।। मत है! अर्जुन को कहा गया कृष्ण का यह वक्तव्य बड़ा कीमती एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः। है, यह मेरा मत है। कृष्ण जैसा आदमी कहे कि यह मेरा मत है, त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते । । ३९ ।। अदभुत है। क्योंकि कृष्ण जैसा आदमी सहज ही कह पाता है, यह | इस पर अर्जुन बोला, हे कृष्ण, योग से चलायमान हो गया सत्य है। बिना फिक्र किए, बिना सोचे-समझे उससे निकलता है, है मन जिसका, ऐसा शिथिल यत्न वाला श्रद्धायुक्त पुरुष, यह सत्य है, क्योंकि वह सत्य को जानता है। यह बहुत कंसीडर्ड योग-सिद्धि को अर्थात भगवत-साक्षात्कार को न प्राप्त वक्तव्य है, बहुत सोचकर कहा गया कि यह मत है अर्जुन। इसको
होकर, किस गति को प्राप्त होता है। तुम ऐसा मत समझ लेना कि यही सत्य है। अन्यथा शब्दों पर गांठ और हे महाबाहो, क्या वह भगवत्प्राप्ति के मार्ग में मोहित बन जाएगी और शब्दों की व्याख्या तुम करोगे।
हुआ आश्रयरहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भांति दोनों ___ अगर मत है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि सत्य तुम्हें पाना ओर से अर्थात भगवत्प्राप्ति और सांसारिक भोगों से भ्रष्ट पड़ेगा, इस मत से सत्य नहीं मिलेगा। मत से सिर्फ सूचना मिलती
हुआ नष्ट तो नहीं हो जाता है। है कि मुझे सत्य मिला। अगर तुम्हें भी सत्य पाना है, तो तुम्हें भी | हे कृष्ण, मेरे इस संशय को संपूर्णता से छेदन करने के लिए चेष्टा और श्रम और अभ्यास और साधना करनी पड़ेगी, तब तुम । आप ही योग्य हैं, क्योंकि आपके सिवाय दूसरा इस संशय सत्य पाओगे। अगर मैं कहूं कि जो मैं कह रहा हूं, यही सत्य है, । का छेदन करने वाला मिलना संभव नहीं है। तो आपको शब्द से ही सत्य मिल गया। अब साधना की और क्या जरूरत रह गई है! साधना की सुविधा बनी रहे। अर्जुन को पता रहे कि सत्य अभी पाना है। जो मिला है, वह मत है। भगवान भी बोले, | ना अर्जुन ने कृष्ण की बात को; जो उठना चाहिए था तो जो मिलेगा, वह मत होगा, सत्य नहीं होगा। साधना के लिए स संशय, वही उसके मन में उठा। अर्जुन बहुत उपाय शेष रहेगा ही।
प्रेडिक्टेबल है। अर्जुन के संबंध में भविष्यवाणी की फिर साथ में यह भी जरूरी है समझ लेना कि मत को विचारा जा सकती है कि उसके मन में क्या उठेगा। जो मनुष्य के मन में . जा सकता है। इसलिए जब तक जो आदमी विचार में पड़ा है, उससे उठता है सहज, वह उठा उसके मन में।
मत की ही बात की जा सकती है, सत्य की बात नहीं की जा सकती उठा यह सवाल कि योग से चलायमान हो जाए जिसका चित्त, है। क्योंकि वह इस पर सोचेगा। अर्जुन जो सुनेगा, उस पर सोचेगा प्रभु-मिलन से जो विचलित हो गया है, खो चुका है जो उस निधि भी, उसका अर्थ भी निकालेगा, व्याख्या भी करेगा। और अर्थ और को-यद्यपि श्रद्धायुक्त है, चाहता भी है कि पा ले, कोशिश भी व्याख्याएं! अर्थ और व्याख्याएं हमारी होती हैं।
करता है कि पा ले, फिर भी मन थिर नहीं होता तो ऐसे व्यक्ति जब अर्जुन अर्थ निकालेगा, तो वह कृष्ण का नहीं होगा, वह की गति क्या होगी? अर्जुन का होगा। हां, अगर अर्जुन इस हालत में आ जाए कि यह डर स्वाभाविक है। तत्काल पीछे पूछता है कि कहीं ऐसा तो सोचना छोड़ दे, व्याख्या करना छोड़ दे, अर्थ निकालना छोड़ दे,। न होगा कि जैसे कभी आकाश में वायु के झोंकों में बादल सिर्फ सुन सके; इतना शून्य और खाली हो जाए कि अपने मन को छितर-बितर होकर नष्ट हो जाता है। कहीं ऐसा तो न होगा कि दोनों विदा कर दे तो फिर मत सत्य की तरह प्रवेश कर सकता है। । ही छोरों को खो गया आदमी! यहां संसार को छोड़ने की चेष्टा करे लेकिन ऐसा अति कठिन है। ऐसा अति कठिन है।
कि परमात्मा को पाना है, और वहां मन थिर न हो पाए और इसलिए कृष्ण कहते हैं, यह मत है।
| परमात्मा मिले नहीं! तो कहीं ऐसा तो न होगा कि राम और काम
1273|