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________________ गीता दर्शन भाग-3 मटकी पीकर देखी, कि ठीक है; हो जाएगा। | चिंतक का लक्षण है। वैज्ञानिक चिंतक अल्प भी शेष हो कुछ मार्ग यह जो वर्ग था साधकों का, यह बहुत कठिन वर्ग है। मैथुन हो, | | की सुविधा, उसे छोड़कर चलता है। उसे छोड़कर चलता है। स्खलन नहीं। और मैथुन की यात्रा पर आदमी निकलता ही इसलिए | दूसरी बात कृष्ण ने कही, सरल है उसके लिए, जो मन को वश है कि स्खलन हो। तो आप यह मत सोचना कि तंत्र मैथुन के पक्ष । | में कर ले। कठिन है उसके लिए, जो मन को बिना वश में किए में है। तंत्र तो मैथुन के अतिक्रमण की बात है। | यात्रा करे। सरल है उसके लिए, जो मन को वश में कर ले। मैथुन के लिए जाता ही आदमी इसलिए है कि स्खलन हो। जो सरल इसलिए है मन को वश में कर लेने के बाद, कि मन ही बोझ उसके चित्त पर और शरीर पर है, वह फिंक जाए। और तंत्र | व्यवधान डालता है। वह व्यवधान डालने वाला अब आपके काबू कहता है, मैथुन सही, स्खलन नहीं। और अगर कोई व्यक्ति मैथुन | में है। आप सरलता से उसका अतिक्रमण कर सकते हैं, बाधाएं की स्थिति में अस्खलन को उपलब्ध हो जाए, तो इससे बड़ा आपके काबू में हैं। ब्रह्मचर्य और क्या होगा? उन ब्रह्मचारियों से, जो कि स्त्री को देखने __करीब-करीब ऐसा समझें कि कोई चाहे तो मकान की सीढ़ियों में डरते हैं, इस आदमी के ब्रह्मचर्य की बात ही और है। से नीचे उतर सकता है, कोई चाहे तो छलांग भी लगाकर मकान से मगर यह मार्ग है अति संकीर्ण, इसलिए कृष्ण ने उसकी सिर्फ नीचे उतर सकता है। छलांग लगाने में खतरा है। हाथ-पैर टूट जाने निगेटिव खबर देकर सूत्र छोड़ दिया। का खतरा है। जब तक कि हाथ-पैरों की ऐसी कुशलता न हो, जैसी कुछ लोग हैं, जो मन को बिना किसी तरह वश में किए, मन को कि होती नहीं है, हाथ-पैर टूटने को सदा तैयार रहते हैं। और जब पूरी छूट दे देते हैं। पूरी छूट! मन से कहते हैं, जो तुझे करना है कर, आप मकान पर से कूदते हैं और आपके हाथ-पैर टूटते हैं, तो न लेकिन उस करने में वे पार खड़े हो जाते हैं। मन को नहीं रोकते, तो मकान की लंबाई तुड़वाती है हाथ-पैर, न जमीन तुड़वाती है; लगाम नहीं पकड़ते मन की। घोड़ों को कह देते हैं, दौड़ो, जहां दौड़ना आपके ही हाथ-पैर का ढंग हाथ-पैर को तुड़वा देता है। . है। लेकिन दौड़ते हुए घोड़ों में, भागते हुए रथ में, गड्ढों में, खाई में, कभी आपने खयाल किया होगा कि एक बैलगाड़ी में अगर आप खड्डु में, वह जो ऊपर रथ पर बैठा है वह, वह अकंप बैठा रहता है। | बैठकर जा रहे हों, साथ में एक शराबी धुत बैठा हो, और आप होश तंत्र कहता है कि लगाम सम्हालकर और आप अकंप बैठे रहे, | | में बैठे हों। और गाड़ी उलट जाए, तो आपको चोट लगे, धुत शराबी तो कुछ मजा नहीं है। छोड़ दो लगाम; घोड़ों को दौड़ने दो; रथ को | को न लगे। आप समझते हैं। कोई आसान बात है! शराबी रोज खड्डों में, खाइयों में गिरने दो; और तुम अकंप रथ पर बैठे रहो, तो नालियों में गिरता है, लेकिन न कहीं चोट है, न हड्डी टूटती, न ही असली मालकियत है। फ्रैक्चर होता! बात क्या है? आप जरा गिरकर देखें! शराबी के पास पर वह मालकियत बहुत थोड़े-से लोगों का मार्ग है। भूलकर कौन-सी तरकीब है, जिससे कि गिरता है और चोट नहीं खाता? आप लगाम छोड़कर मत बैठ जाना, नहीं तो पहले ही गड्ढे में प्राणांत | तरकीब शराबी के पास नहीं है। असल में शरीर जब भी गिरने हो जाएगा! दूसरे संतुलन के लिए नहीं बचेंगे आप। के करीब होता है, तो रेसिस्टेंट हो जाता है, अकड़ जाता है। अकड़ी इसलिए कृष्ण ने असंभव नहीं कहा। असंभव नहीं है, कृष्ण | हुई हड्डी टूट जाती है। वह शराबी बेहोश है, वह रेसिस्ट नहीं करता। भलीभांति जानते हैं। और कृष्ण से बेहतर कोई भी नहीं जानता। यह | | उसको पता ही नहीं कि कब गाड़ी उलट गई। जब उलट गई, तब असंभव नहीं है, बिलकुल संभव है। लेकिन बहुत ही थोड़े-से | भी वे गाड़ी में ही बैठे हुए हैं! तब भी वे हांक रहे हैं नाली में पड़े लोगों के लिए है, अत्यल्प, न के बराबर; उन्हें गिनती के बाहर | | हुए। उनको पता ही नहीं, गाड़ी कब उलट गई। शरीर को मौका नहीं छोड़ा जा सकता है। और उनकी गिनती करनी ठीक भी नहीं है, | | मिलता है कि अकड़ जाए। अकड़ न पाए, तो जमीन चोट नहीं क्योंकि गिनती करने का कोई फायदा नहीं है। अपवाद को बाहर | | पहुंचा पाती। चोट पहुंचती है अकड़ी चीज पर। छोड़ा जा सकता है। इसलिए बच्चे इतने गिरते हैं और चोट नहीं खाते। आप जरा नियम की बात कर रहे हैं वे अर्जुन से। और अर्जुन उन लोगों में | बच्चों की तरह गिरकर देखें, तब आपको पता चलेगा। एक दफे गिर से नहीं है, जो कि तंत्र के मार्ग पर जा सके। इसीलिए कहा, दुष्प्राप्य | | गए, तो फैसला हुआ! और बच्चा दिनभर गिर रहा है और उठकर है। बड़ी कठिनाई से मिलने वाला है; मिल सकता है। यह वैज्ञानिक | | फिर चल पड़ा है। बात क्या है? बच्चे के पास सीक्रेट क्या है? |268]
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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