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________________ गीता दर्शन भाग-3 असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः। लेता कि हे मधुसूदन, आपको कभी आसन लगाए नहीं देखा! वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः।। ३६ ।। आपको कभी प्राणायाम करते नहीं देखा। आपको कभी प्रभु-स्मरण मन को वश में न करने वाले पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है करते नहीं देखा। आपको किसी तपश्चर्या में से गुजरते नहीं देखा। अर्थात प्राप्त होना कठिन है और स्वाधीन मन वाले | जिस योग-साधना की आप बात कर रहे हैं, जिस अभ्यास की आप प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन करने से प्राप्त होना सहज है, | बात कर रहे हैं, वह कभी आपके आस-पास दिखाई नहीं पड़ा। यह मेरा मत है। | और जिस वैराग्य की आप बात कर रहे हैं, उसका तो आपके आस-पास कोई भी अंदाज नहीं मिलता, अनुमान नहीं लगता। मोर पंख बांधकर, बांसुरी बजाकर आप नाचते हैं। सुंदरतम बृज की ष्ण ने दो-तीन बातें इस सूत्र में कही हैं, जो समझने गोपियां आपके चारों तरफ रास करती हैं। वैराग्य कहीं दिखाई नहीं जैसी हैं। | पड़ता, मधुसूदन! ८ एक, मन को वश में न करने वाले पुरुष द्वारा योग की अर्जुन निश्चित ही ऐसा पूछता। लेकिन अर्जुन को पूछने का उपलब्धि अति कठिन है; असंभव नहीं कहा। बहुत मुश्किल है; | उपाय कृष्ण ने नहीं छोड़ा। इसलिए अर्जुन ने नहीं पूछा। क्योंकि असंभव नहीं कहा। नहीं ही होगी, ऐसा नहीं कहा। होनी अति कठिन | कृष्ण ने कहा, बहुत कठिन है अर्जुन, असंभव नहीं है। है, ऐसा कहा है। तो एक तो इस बात को समझ लेना जरूरी है। तो उस थोड़े-से वर्ग, जिसमें कृष्ण भी आते हैं और कभी दूसरी बात कृष्ण ने कही, मन को वश में कर लेने वाले के लिए । एकाध-दो आदमी आ पाते हैं सदियों में, उस छोटे-से वर्ग की भी सरल है, सहज है उपलब्धि योग की। हम बात कर लें, क्योंकि उसका भी खतरा बड़ा है। क्योंकि जो उस और तीसरी बात कही, ऐसा मेरा मत है। ऐसा नहीं कहा, ऐसा | वर्ग में नहीं आता, वह अगर सोच ले कि यह होगा कठिन, लेकिन सत्य है। ऐसा कहा, दिस इज़ माइ ओपीनियन, ऐसा मेरा मत है। | हम कठिन मार्ग से ही जाएंगे, तो बहुत डर यह है कि वह कभी नहीं ये तीन बातें इस श्लोक में खयाल ले लेने जैसी हैं। पहुंचेगा, भटकेगा, व्यर्थ समय और जीवन को कर लेगा। पहली बात तो यह जो बहुत अजीब मालम पडेगी कि कष्ण ऐसा हआ इस देश में। इस देश ने बडे गहरे प्रयोग किए हैं। तंत्र ऐसा कहें। कहना था कि मन को जो वश में नहीं करता, उसके लिए | | उन प्रयोगों में से है, जो उनके लिए है वस्तुतः, जो मन को वश में योग की उपलब्धि असंभव है, इंपासिबल है; नहीं होगी। लेकिन | न करें। इसलिए तंत्र जब इसोटेरिक था, कुछ थोड़े-से लोग उस पर कृष्ण कहते हैं, कठिन है, असंभव नहीं। इसका अर्थ? इसका अर्थ | प्रयोग करते थे, तब वह बड़ी अदभुत प्रक्रिया थी। लेकिन और यह हुआ कि कठिन हो, लेकिन किसी स्थिति में, किसी व्यक्ति के लोगों को भी लगा कि यह तो बहुत अच्छा है। मन को वश में भी लिए, मन को वश में बिना किए भी उपलब्धि संभव हो सकती है। | | न करना पड़े और योग उपलब्ध हो जाए! कठिन है, लेकिन संभव हो सकती है। अति कठिन है, लेकिन फिर तंत्र के तो सभी सत्र उलटे हैं।। भी हो सकती है। यह जो थोड़ी-सी जगह छोड़ी है कृष्ण ने, वह तंत्र के लिए छोड़ी मन को वश में करने वाला कैसे उपलब्धि को प्राप्त होता है, है। उसकी बात करनी उन्होंने उचित नहीं समझी है, क्योंकि उसकी उसकी हमने बात की। अब थोड़ा हम उस थोड़े-से अल्पवर्ग के | | बात करनी सदा ही खतरे से भरी है। क्योंकि हम सबका मन ऐसा संबंध में बात कर लें, जिसकी वजह से कृष्ण असंभव न कह सके। होगा कि अपने को अपवाद मान और हम सबका मन ऐसा बहुत ही छोटा वर्ग है। कभी करोड़ में एकाध आदमी ऐसा होता | | होगा कि जब मन को बिना वश में किए हो सकता है, तो होगा लंबा है, जो मन को बिना वश में किए योग को उपलब्ध हो जाता है।। | मार्ग, लेकिन यही ज्यादा आनंदपूर्ण रहेगा। मन को वश में भी न बहुत रेयर फिनामिनन है; बहुत करीब-करीब न घटने वाली घटना | करेंगे और पहुंच भी जाएंगे योग को। दूसरे न पहुंचते होंगे, हम तो है; लेकिन घटती है। खुद कृष्ण भी उन्हीं लोगों में से एक हैं। पहुंच ही जाएंगे! इसलिए कृष्ण ने जानकर कहा है यह, बहुत समझकर कहा है। इसलिए तंत्र जब व्यापक फैला, तो अति कठिनाई उसने पैदा खुद कृष्ण भी उन्हीं लोगों में से एक हैं। क्योंकि अर्जुन जरूर ही पूछ की। हजारों लोग यह सोचकर कि ठीक है, क्योंकि तंत्र कहता 12661
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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