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________________ ८ मन का रूपांतरण > कहेगा, असंभव है। अंधे को कोई समझाने की कोशिश करे कि भविष्य का निर्धारक नहीं है; और अतीत से कोई नतीजा भविष्य के प्रकाश संभव है; अंधा कहेगा, असंभव है। अंधा कहेगा, हे लिए नहीं लिया जा सकता। मैं अभी तक नहीं मरा हूं, इसलिए मैं मधुसूदन, अंधकार के सिवाय कभी कुछ जाना नहीं। मान नहीं अगर कहूं कि मृत्यु असंभव है, तो गलती है कुछ? इतने दिन का सकता कि आंखें प्रकाश भी देख सकती हैं, क्योंकि अंधकार ही | | अनुभव है, इतने दिन जीकर जाना है कि नहीं मरता हूं। अगर मैं देखती रही हैं। एक क्षण को भी देख सकती हैं, यह अकल्पनीय | कहूं कि इतने वर्ष का अनुभव! मालम पडता है. क्योंकि सदा से अंधकार ही जाना है। एक आदमी कहे कि अस्सी वर्ष का मेरा अनभव कि नहीं मरता फिर भी हम जानते हैं कि वह अंधे की धारणा नकारात्मक है। हूं, नतीजा देता है कि मृत्यु असंभव है। अस्सी वर्ष तक जो संभव लेकिन अंधे की बात गलत न कह सकेंगे हम। अंधा अपने अनुभव नहीं हो पाया, वह अचानक एक क्षण में संभव हो जाएगा, यह से कहता है। और अनुभव के सिवाय कहने का उपाय भी क्या है! तर्कयुक्त नहीं मालूम होता। जो अस्सी वर्ष तक नहीं आ सकी मौत, __ हम जब मन के संबंध में कह रहे हैं, तब भी हम अपने अनुभव अस्सी वर्ष तक मैं प्रतीक्षा करता रहा हूं, वह एक क्षण में कैसे आ से कहते हैं। लेकिन अनुभव अंधे जैसा है। मन के अतिरिक्त हमने जाएगी? जिसको अस्सी वर्ष मैंने हराया, वह एक क्षण में मुझे कैसे कभी कुछ जाना ही नहीं। जो हमने नहीं जाना है, उसके बाबत | हराएगी? जो अस्सी वर्ष तक मेरी प्रतीति नहीं बनी, वह एक क्षण पाजिटिव कनक्लूजन लेना उचित नहीं है। में मेरा अनुभव नहीं बन सकता है-ऐसा अगर कोई कहे, तो अर्जुन का यह कहना तो ठीक है कि मन चंचल है, बहुत कठिन गलत कह रहा है? ठीक ही मालूम पड़ता है, तर्कयुक्त मालूम मालूम पड़ता है। लेकिन यह कहना उचित नहीं है कि अकल्पनीय | पड़ता है। मालूम पड़ता है, कृष्ण। यह हम अपनी अनुभूति के बाहर का लेकिन सभी तर्कयुक्त बातें सत्य नहीं होतीं। सच तो यह है कि नतीजा ले रहे हैं, जो खतरनाक हो सकता है। क्योंकि वैसा नतीजा, | सभी असत्य तर्कयुक्त रूप लेते हैं। सभी असत्य अपने आस-पास रोकने वाला सिद्ध होगा। वैसा नतीजा अवरोध बन जाएगा। तर्क का जाल बुन लेते हैं। एक बार किसी ने सोच लिया कि ऐसी बात असंभव है, तो करने अर्जुन कहता है, असंभव मालूम पड़ता है-अकल्पनीय, की धारणा ही छूट जाती है। असंभव को कोई करने नहीं निकलता। इनकंसीवेबल-कोई धारणा नहीं बनती कि यह हो सकता है, एक जब कोई असंभव को भी करने निकलता है, तो मानकर चलता है। क्षण को भी ठहरेगा मन। लेकिन यह अर्जुन बिना जाने कह रहा है। कि संभव है। अगर संभव को भी कोई मान ले कि असंभव है, तो अर्जुन एक अर्थ में ठीक कह रहा है, क्योंकि हम सब का करने ही नहीं निकलता। और मान्यता फिर असंभव ही बना देगी; अनुभव यही है। एक अर्थ में गलत कह रहा है, क्योंकि जो हमारा क्योंकि जब करने ही नहीं जाएंगे, तो सिद्ध ही हो जाएगा कि देखो, अनुभव नहीं है, उसके संबंध में कोई भी विधायक वक्तव्य ठीक असंभव है; क्योंकि फलित नहीं होगा। और इस तरह तर्क का नहीं है। अपना एक दुष्चक्र, एक विशियस सर्किल है। अगर आप मानते हैं एक आदमी कहता है कि मेरा जीवन हो गया, मैंने ईश्वर का कि असंभव है, तो आप करेंगे नहीं; करेंगे नहीं, तो संभव नहीं हो कहीं दर्शन नहीं किया, इसलिए ईश्वर नहीं है। उसे इतना ही कहना पाएगा। आपकी मान्यता और दृढ़ हो जाएगी कि असंभव है। देखो, । चाहिए कि ईश्वर है या नहीं, मुझे पता नहीं। इतना ही मुझे पता है कहा था पहले ही कि असंभव है! कि मैंने उसका अभी तक दर्शन नहीं किया है। तो बात बिलकुल ही अगर आप असंभव को भी संभव मानकर चलते हैं, तो करने तथ्य की है। की सामर्थ्य, शक्ति बढ़ती है। और कुछ आश्चर्य नहीं कि असंभव लेकिन मैंने दर्शन नहीं किया है, इसलिए ईश्वर नहीं है, तो फिर भी संभव हो जाए। क्योंकि बहुत असंभव संभव होते देखे गए हैं। तर्क अपनी सीमा के बाहर गया। और अक्सर तर्क कब अपनी असल में हम असंभव उसे कहते हैं, जिसे हम नहीं कर पा रहे हैं। | सीमा के बाहर चला जाता है, हमें पता नहीं चलता। एक छोटी-सी लेकिन जिसे हम नहीं कर पा रहे हैं, उसे नहीं ही कर पाएंगे, ऐसा | छलांग तर्क लेता है, और खतरनाक स्थितियों में पहुंचा देता है। निष्कर्ष लेने की तो कोई भी जरूरत नहीं है। एक बिलकुल छोटी-सी छलांग; मैंने ईश्वर को नहीं जाना अब पर अक्सर हम अतीत से निष्कर्ष लेते हैं भविष्य का। अतीत तक; बहुत खोजा, नहीं पाया। सब तरह खोजा, नहीं दर्शन हुआ, 2371
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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