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________________ गीता दर्शन भाग-3 है-पुराने ईसाई आर्थोडाक्स ढंग से, गांव में जब कोई मरता है, जब आप एक छोटे-से बच्चे को डांट रहे हैं बूढ़े होकर, तब तो चर्च की घंटी बजती है—उस कवि ने एक छोटा-सा गीत लिखा आपको कभी भी खयाल नहीं आता कि एक दिन आप भी छोटे-से है और कहा है कि जब चर्च की घंटी बजे, तो किसी को पूछने मत बच्चे थे। इसी तरह डांटे गए थे। और आपको यह भी खयाल नहीं भेजना कि किसके लिए बजती है। तुम्हारे लिए ही बजती है, तुम्हारे आता कि यह बच्चा कल इसी तरह बूढ़ा हो जाएगा। अगर बूढ़े को लिए ही बजती है। बच्चे में यह सादृश्य दिखाई पड़ जाए, तो इस दुनिया में बूढ़ों और जब चर्च की घंटी बजे, तो गांव में कोई मर गया। तो स्वभावतः | बच्चों के बीच जो कलह है, वह विदा हो जाए। वह कलह विदा गांव के लोग किसी को बाहर पूछने भेजते हैं, किसके लिए बजती | हो जाए। उस कलह की कोई जगह न रह जाए। . है? उस गीतकार ने ठीक लिखा है, मत भेजना किसी को पूछने कि लेकिन यह दिखाई नहीं पड़ता है। हम इसके लिए बिलकुल किसके लिए बजती है। तुम्हारे लिए ही बजती है, तुम्हारे लिए ही अंधे हैं। इसलिए हमारे जीवन में महा दुख फलित होता है। लेकिन बजती है-इट टाल्स फार दी, इट टाल्स फार दी। | वह अति उत्तम योग और उससे उपलब्ध होने वाली शांति फलित जब रास्ते से कोई मुर्दा निकले, तो मत पूछना कि कौन मर नहीं होती। गया? जानना कि मैं ही मर गया हूं, मैं ही मर गया हूं। जब कोई शेष कल सुबह हम बात करेंगे। अपमानित हो, जब कोई हारे और धूल-धूसरित हो जाए, तो मत अभी कीर्तन में पांच मिनट जाएंगे। नहीं, उठेगा कोई भी नहीं। सोचना कि कोई और गिर गया है। जानना कि मैं ही गिर गया हूं। अपनी जगह बैठे रहें। और साथ दें, बैठे न रहें। साथ देकर ही और तब जीवन में भी धीरे-धीरे-धीरे सादृश्य फैलता चला जाएगा। कीर्तन को समझा जा सकता है। देखें, देखने वाले कोई भी मंच पर सादृश्य के आते ही बड़ी करुणा पैदा होती है; बड़ी करुणा, | | नहीं आएंगे। आप वहीं बैठकर ताली बजाएं, गीत गाएं, डोलें, महाकरुणा पैदा होती है। अंग्रेजी में शब्द बहुत अच्छा है करुणा के | आंदोलित हों। लिए, कंपैशन। उसमें अगर आधे कम को हम अलग कर दें, तो पीछे पैशन रह जाता है। दो तरह के लोग हैं, पैसोनेट और कंपैसोनेट। पैशन यानी वासना, और कंपैशन यानी करुणा। जब तक कोई आदमी कहता है कि मैं दूसरों से भिन्न हूं, तब तक वासना में जीएगा, पैशन में। और जब जानेगा कि मैं दूसरों के ही समान हूं, तो कंपैशन में प्रवेश कर जाएगा, करुणा में। दो ही तरह के लोग हैं, वासना से जीने वाले और करुणा से जीने वाले। वासना में वे जीते हैं, जो अहंकार को केंद्र बनाते हैं। करुणा में वे जीते हैं, जो दूसरे के साथ सादृश्य को उपलब्ध हो जाते हैं। सादृश्य अहंकार की मृत्यु है। और सादृश्य करुणा का जन्म है। सादृश्य यह खबर देता है कि दूसरा भी उतना ही कमजोर है, जितना कमजोर मैं। सादृश्य कहता है, दूसरा भी उतनी ही सीमाओं में बंधा है, जितनी सीमाओं में मैं। मुझे भी किसी ने गाली दी है, तो क्रोध आ गया है। और अगर किसी दूसरे को भी गाली दी गई है, तो क्रोध आ गया है, तो मैं कठोर न हो जाऊं। करुणा अपेक्षित है, अगर सादृश्य का थोड़ा बोध है। लेकिन सादृश्य का बोध हमें नहीं है। और इस बोध को समझने से नहीं समझा जा सकता: इस बोध को जन्माने से समझा जा सकता है। इसका प्रयोग करना शुरू करें। 234
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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