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________________ < सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण > सब मेरी तरफ भी देखते थे कि तेरा बाप क्या कर रहा है। मार्क | जरा लंबी है, और लोग कहते हैं, खूबसूरत है। और किसी के पास ट्वेन ने पूछा, क्या गलती हो गई? उसने कहा कि जब लोग ताली | | थोड़ी चपटी है, और लोग कहते हैं, बिलकुल न होती तो अच्छी। बजाते थे, मैं ताली बजाता था, तो वह तो आपकी प्रशंसा की जा करो क्या? कोई है कि गणित के बड़े सवाल हल कर देता है, और रही थी कि आप बहुत महान हैं। और आप भी ताली बजा देते थे, | | कोई है कि सोलह आने गिनने में दस दफे भूल कर जाता है। करो उससे बहुत गड़बड़ हो जाती थी। क्या? यहां जीवन में सादृश्य को बनाने में जरा कठिनाई पड़ेगी, मार्क ट्वेन ने कहा, घबड़ा मत। जिंदगी में पहली दफा, जो मैं | क्योंकि बहुत-सा असादृश्य प्रकट है। सदा करना चाहता था, वह अपने आप हो गया है। मार्क ट्वेन ने | __ तो बुद्ध कहते, पहले मौत से शुरू करो, लेट अस बिगिन फ्राम कहा, घबड़ा मत, जिंदगी में जो सदा करना चाहता था कि जब लोग | दि एंड, चलो पीछे से शुरू करें। क्योंकि मौत में तो बड़ी अटारी मेरी प्रशंसा करें, तो मैं भी ताली बजाऊं। बजाता नहीं था, क्योंकि वाला भी वहीं पहुंच जाता है, जहां छोटा झोपडे वाला। जिसका मैं समझता था भाषा। आज तो गलती में हो गया। लेकिन हुआ | गणित बड़ा कुशल था और जो गणित में सदा फेल हुआ, वे भी वही, जो मेरे दिल में सदा से है। | वहीं पहुंच जाते हैं। जिसकी शक्ल पर लोग मरे जाते थे और __ हम सब के दिल में यही है कि देखो, कैसे मूढ़ हम भी, कि सब जिसकी शक्ल से लोग ऐसे बचते थे कि कहीं मिल न जाए, वह तो हमारे लिए ताली बजा रहे हैं, और हम बैठे हैं। यही तो मौका | भी वहीं पहुंच गया। सब वहीं चले आ रहे हैं। नेता और अनुयायी, था, जब हम भी ताली बजाते। लेकिन भाषा समझ में आती है,। | गुरु और शिष्य, साधु और असाधु, सम्मानित और अपमानित, इसलिए चुप रह जाते हैं। वह तो भूल से हो गई घटना। लेकिन मन संत और चोर-सब चले आ रहे हैं। एक जगह जाकर--मौत। में हमारे यही होता है। मन हमारा यही करता है। मौत जो है, बहुत कम्युनिस्ट है; एकदम समान कर देती है! इस वह जो हमारा मैं है, वह सदा इसी तलाश में है कि कोई कह दे | बुरी तरह समान करती है कि राख ही रह जाती है। सब समान हो कि तुम महान, तुम यह, तुम वह-और हम फूलकर कुप्पा हो जाता है। जाएं। फिर सादृश्य नहीं सधेगा। तो बुद्ध कहते, वहीं से शुरू करो और जब यह साफ दिखाई पड़ इसलिए बुद्ध कहते थे कि जिसे सादृश्य-योग साधना हो, वह जाए कि अंत में इतना सब सादृश्य हो जाने वाला है, तो बीच की पहले तो तीन महीने मरघट पर जाकर निवास करे। सादृश्य-योग | झंझट में क्यों पड़ते हो। उसमें कुछ बहुत सार नहीं है। आखिरी तो साधना हो, तो पहले तीन महीने मरघट पर निवास करे। जब कोई यह है। भिक्षु आता, बुद्ध कहते, जा तीन महीने मरघट पर रह। वह कहता, ___ और जो भी भिक्षु तीन महीने मौत पर स्मरण करके आता, इससे क्या होगा? मैं योग साधने आया! बुद्ध कहते, पहले जरा | जिंदगी में सादृश्य को उपलब्ध हो जाता। अगर उससे कोई कभी . मरघट पर तीन महीने रहकर आ। वह कहता, वहां क्या करूंगा? | कहता भी कि तुम तो बहुत ही ज्ञानी हो, तो वह कहता, क्षमा करो। तो बुद्ध कहते, जब भी कोई मुर्दा आए, तो जानना कि ऐसा ही | | अब मझे धोखा न दे पाओगे। मैं देख आया मरघट। वहां मैंने एक दिन मैं भी आऊंगा। जब उसको जलाया जाए, तो जानना कि | | ज्ञानियों को धूल में मिलते देखा। और अगर कोई उससे कहता कि ऐसा ही एक दिन मैं भी जलाया जाऊंगा। जब उसका बेटा खोपडी आपकी आंख वह कहता, क्षमा कर तोड़े, तो जानना कि मेरा बेटा एक दिन खोपड़ी तोड़ेगा। जब सब | धोखा न दे पाओगे। मैं देख आया मरघट। सब आंखें राख से लोग उसको जला-बुझाकर जाने लगें, तो जानना कि एक दिन लोग | ज्यादा सिद्ध नहीं होती। मुझे इसी तरह जला-बुझाकर चले जाएंगे। __ कृष्ण कहते हैं, यह सादृश्य-योग उच्चतम योग की स्थिति को पर वह आदमी पूछता, इससे होगा क्या? बुद्ध कहते, मौत से पहुंचा देता है। सादृश्य शुरू कर, बाद में जिंदगी में आसान हो जाएगा। शुरू करें कहीं से। मौत से शुरू करें, आसान पड़ेगा। लेकिन __ और बात ठीक कहते हैं। जिंदगी में सादृश्य बनाना जरा मुश्किल हिम्मत न जुटेगी मरघट जाने की। डर लगता है मरघट जाने में। पड़ेगा, क्योंकि किसी के पास बड़ा मकान है और किसी के पास इसीलिए डर लगता है, क्योंकि मरघट कुछ बुनियादी खबरें देता है। छोटा मकान है। सादृश्य बनाओ कैसे! और किसी के पास नाक एक अंग्रेज कवि ने एक छोटा-सा गीत लिखा है, जिसमें कहा | 233
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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