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________________ सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण > के बीच, मैं और त के बीच समता है। अब आप बिलकुल खोजबीन न करेंगे। बिलकुल खोजबीन ही मैं को तू के सम लाना महायोग है। क्योंकि मैं की सारी चेष्टा ही न करेंगे। जरा संदेह-शंका न उठाएंगे। कोई प्रमाण न पूछेगे। यही है कि तू को नीचे कर दे। हम जिंदगीभर यही करते हैं। तू को | | बिलकुल राजी हो जाएंगे कि दुरुस्त। यह तो हम पहले जानते थे नीचे करने की कोशिश ही हमारी जिंदगी का रस है। और अगर कि यह होने वाला है। हम पहले ही कह चुके थे कि वह आदमी वस्तुतः न कर पाएं, तो हम दूसरी तरकीबों से करते हैं। | भाग जाएगा। वह आदमी ही ऐसा था। अगर एक आदमी को धन मिल जाए, तो जिनके पास धन नहीं बड़े मजे की बात है कि जब कोई आपसे किसी की निंदा करता है, वह उनके ऊपर खड़ा हो जाता है। एक को मिनिस्ट्री मिल जाए, | है, तो आप प्रमाण नहीं पूछते। और जब कोई किसी की प्रशंसा तो जिनको नहीं मिली, वह उनके ऊपर खड़ा हो जाता है। उसकी करता है, तब बड़े प्रमाण पूछते हैं! बात क्या है ? निंदा मान लेने में चाल बदल जाती है। उसका ढंग बदल जाता है। उसकी आंखें | दिल को बड़ी राहत मिलती है, क्योंकि मैं ऊपर हो जाता हूं। प्रशंसा बदल जाती हैं। लेकिन जिसको नहीं मिली, वह क्या करे? जो हार मानने में बड़ी पीड़ा होती है, बड़ी चोट लगती है। गया, वह क्या करे? सुना है मैंने, एक विद्यार्थी नंबर तीन पास हुआ। उसके बाप ने वह दूसरी तरकीबों से नीचा दिखाने की कोशिश करता है। वह | उसे डांटा कि हमारे कुल में कभी न चला ऐसा। ऐसा कभी नहीं कहता है, तुम जीते नहीं हो, पैसा बांटकर जीत गए हो। मोरारजी | | हुआ हमारे कुल में कि कोई नंबर तीन आया हो। हालांकि न होने भाई से पूछे । जो जीत गया, वह पैसा बांटकर जीत गया। जैसे जो का कुल कारण इतना था कि कुल में कोई पढ़ा ही नहीं था! नंबर हार गया, उसने पैसे नहीं बांटे थे! हार जाना, कोई पैसे न बांटने | तीन आएगा कैसे? लड़के ने बड़ी मेहनत की। वह सालभर मेहनत की प्रामाणिकता है? लेकिन जो जीत गया, उसे अब किस तरह करके नंबर दो आया। बाप ने कहा कि क्या रखा है! कौन-सी बड़ी नीचे दिखाएं? वह तो दिखा रहा है नीचे, छाती पर चढ़ गया। अब उन्नति कर ली! एक ही लड़के को पीछे हटा पाए! लड़के ने और जो हार गया है, वह क्या करे? वह दूसरे रास्ते खोजेगा नीचे दिखाने | | मेहनत की और तीसरे साल वह नंबर एक आ गया। तो बाप ने कहा के। इसीलिए हम निंदा में इतना रस लेते हैं। हम एक-दूसरे की निंदा | कि इसमें कुछ नहीं है। इससे पता चलता है कि तुम्हारी क्लास में में इतना रस लेते हैं। गधों के सिवाय कोई भी नहीं है! बहुत मजे की बात है। अगर मैं आपसे आकर कहूं कि आपका | बाप को भी अड़चन होती है कि बेटा कुछ है। हालांकि सब बाप पड़ोसी बहुत अच्छा आदमी है, तो आप एकदम से मान न लेंगे। | कोशिश करते हैं कि मेरा बेटा कुछ हो, दूसरों के सामने। क्योंकि आप कहेंगे, अच्छा! भरोसा तो नहीं आता। पड़ोसी और अच्छा | | मेरा बेटा कुछ है, ऐसा दूसरों को बताकर वे भी कुछ होते हैं। आदमी! मेरे रहते और मेरा पड़ोसी अच्छा आदमी! क्या कह रहे हैं | | लेकिन अगर बेटा सच में कुछ है, तो बाप अड़चन में पड़ जाता है • आप! भला आप ऊपर से कहें या न कहें, भीतर बेचैनी शुरू हो | | बेटे के साथ। दूसरों के साथ चर्चा करता है, मेरा बेटा कुछ है। जाएगी। और आप कहेंगे, मान नहीं सकता। आपको पता नहीं है | क्योंकि मेरा बेटा! लेकिन बेटा सामने पड़ता है, तो बेचैनी शुरू शायद। जरा पुलिस की किताब में जाकर देखें ब्लैक लिस्ट में नाम | | होती है। बाप के मन को तक बेटे के मन से बेचैनी शुरू होती है! है उसका। इसको आप अच्छा आदमी कहते हैं! यह आदमी महा | अगर लड़की सुंदर हो, तो मां तक चिंतित हो जाती है। और रास्ते दुष्ट है। पत्नी को पीटते मैंने सुना है। | पर जब गुजरती है, तो देखती रहती है कि लोग लड़की को देख रहे आप पच्चीस बातें निकालकर दलील देंगे कि यह आदमी अच्छा | | हैं कि उसको देख रहे हैं। अगर लड़की को देख रहे हैं, तो बहुत नहीं है। क्यों? क्योंकि अगर वह अच्छा है, तो आपके मैं का क्या बेचैनी होती है। उसका बदला वह घर लौटकर लड़की से लेगी! होगा! आप पच्चीस दलीलें खोजकर, उसे नीचे करके, अपने | | आदमी का मन इतने निकट संबंधों में भी मैं को ऊपर रखता है। सिंहासन पर पुनः विराजमान हो जाएंगे। | मां और बेटी के संबंध में भी, बाप और बेटे के संबंध में भी, वह लेकिन अगर कोई आपसे आकर कहे कि सुना, पड़ोस का | | मैं को ऊपर रखता है। निकटतम के साथ भी हमारी दुश्मनी चलती आदमी फलाने की स्त्री को लेकर भाग गया! आप कहेंगे, मैं पहले है मैं और तू की। से ही जानता था कि वह भागेगा। महायोग है, कृष्ण कहते हैं कि स्वयं के सादृश्य से सब के साथ 231
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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