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गीता दर्शन भाग-3
लिखा है कि सोरोकिन एक समाजवादी से बात कर रहा था, जो वह पाएगा, मैं कौन हूं निर्णय लेने वाला! मैं भी तो वहीं खड़ा हूं, कहता था, सब चीजें बांट दी जानी चाहिए समान। सोरोकिन ने जहां सारे लोग खड़े हैं। उससे कहा कि जिन आदमियों के पास दो मकान हैं, क्या आपका इसलिए हमारे जो तथाकथित साधु-संत होते हैं, जो स्वयं को खयाल है, एक उसको दे दिया जाए, जिसके पास एक भी नहीं? कुछ पवित्र, ऊपर, और शेष सबको नारकीय जीव मानकर देखते उस आदमी ने कहा, निश्चित। बिलकुल ठीक। यही चाहता हूं। हैं, इन्हें कृष्ण के सूत्र का कोई पता नहीं। जिन आदमियों के पास दो कारें हैं, सोरोकिन ने कहा, एक उसको | तथाकथित साधु-संन्यासियों के पास जाओ, तो वे ऐसे देखते हैं दे दी जाए, जिसके पास एक भी नहीं? उस आदमी ने कहा कि |कि कहां है, पासपोर्ट ले आए नर्क जाने का कि नहीं। नीचे से ऊपर बिलकुल दुरुस्त। यही तो मेरी फिलासफी है, यही तो मेरा दर्शन है। तक जांच करके उनकी आंख का भाव यह होता है कि वे कहीं सोरोकिन ने कहा कि क्या आपका यह मतलब है कि जिस आदमी ऊपर, आप कहीं नीचे! के पास दो मुर्गियां हैं, एक उसको दे दी जाए, जिसके पास एक भी ठीक संत तो वह है, जो यह जान लेता है कि सभी सम हैं। नहीं? उस आदमी ने कहा, बिलकुल गलत। कभी नहीं! सोरोकिन | क्योंकि वह जो भीतर बैठा है, वह जरा भी ऊपर-नीचे नहीं हो . ने कहा कि कैसा समाजवाद है! अभी तक तो आप कहते थे, सकता। एक ही बैठा हुआ है, तो असमानता का सवाल कहां है! बिलकल ठीक। उसने कहा, न मेरे पास दो मकान हैं और न
दोबद्ध ने अपने पिछले जन्म की कथा कही है। और कहा है कि कारें हैं, मेरे पास दो मुर्गियां हैं। यह बिलकुल गलत। यहां तक अपने पिछले जन्म में, जब मैं ज्ञान को उपलब्ध नहीं था, तब उस समाजवाद लाने की कोई जरूरत नहीं है।
समय एक बुद्धपुरुष थे, कोई ज्ञान को उपलब्ध हो गए थे, तो मैं दूसरों को समान कर दिया जाए, यह बहुत कठिन मामला नहीं उनके दर्शन करने गया। मैंने झुककर उनके पैर छुए। स्वाभाविक! है। कृष्ण और गहरी समानता की बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, उन्होंने जान लिया था, मैं अज्ञानी था। मैं पैर छूकर खड़ा भी न हो स्वयं के सादृश्य से समता, स्वयं को दूसरे के समान समझना। पाया था कि मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया। मैंने क्या देखा,
यह बड़ी जटिल बात है। क्योंकि अहंकार भयंकर बाधा डालता अनपेक्षित, कि वे बुद्धपुरुष मेरे चरणों में सिर रखे हैं, झुक गए हैं। है। वह कहता है, कछ भी कहो, सब कहो, इंचभर भी जरा मझे घबड़ाकर मैंने उन्हें ऊपर उठाया और कहा कि आप यह क्या करते ऊंची जगह दे दो, बस, फिर ठीक है। सबके साथ!
हैं! यह तो मेरे साथ...मुझे पाप लगेगा। मैं आपके पैर छुऊं, यह अभी भीतर मन में सोचेंगे, तब पता चलेगा कि सबके साथ मैं | | तो ठीक, क्योंकि आप जानते हैं और मैं नहीं जानता। और आप मेरे समान! यह नहीं हो सकता। सब समान हो सकते हैं, सबके बीच पैर छुएं! मुझे जरा बचाओ। भीतर गहरे में मन कहेगा, मुझे बचाओ। मैं | | तो उन बुद्धपुरुष ने हंसकर कहा था कि जो तेरे भीतर बैठा है, सबको समान करने को राजी हूं। और सबको समान करने में ही मैं मैं भलीभांति जानता हूं, वह वही है जो मेरे भीतर बैठा है। तुझे पता विशेष हो जाऊंगा, मैं अलग हो जाऊंगा, मैं ऊपर उठ जाऊंगा। । नहीं है, कभी पता चल जाएगा। जब तुझे पता चल जाएगा, तब
इसलिए समाजवादी नेता हैं सारी दुनिया में, साम्यवादी नेता हैं | | तेरी समझ में आ जाएगा यह राज कि मैंने तेरे पैर क्यों छुए थे। मैंने सारी दुनिया में, वे सबको समान करने के लिए बहुत पागल हैं, तेरे पैर क्यों छुए थे, यह राज तुझे कभी समझ में आ जाएगा। आज बहुत विक्षिप्त हैं। लेकिन आखिर में कुल फल इतना होता है कि | तुझे पता नहीं कि तेरे भीतर वही हीरा छिपा है, जो मेरे भीतर। तू तो सब समान हो जाते हैं, वे सबके ऊपर हो जाते हैं। कोई इस बात | | नहीं जानता है, इसलिए अगर मैं तेरे पैर न भी छुऊं, तो तुझे पता के लिए राजी नहीं है कि मुझसे कोई समान हो।
नहीं चलेगा। लेकिन मैं तो जानता हूं; अगर मैं तेरे पैर न छुळं, तो कृष्ण कहते हैं, स्वयं के सादृश्य से!
| मेरे सामने ही मैं गिल्टी और अपराधी हो जाऊंगा। मैं जानता हूं कि जब भी दूसरे के संबंध में सोचो, तो स्वयं के सादृश्य से वही तेरे भीतर भी छिपा है, जो मेरे भीतर छिपा है। सोचना। और तब एक अदभत घटना घटेगी। तीन घटनाएं घटेंगी। यह सादश्य है। एक तो घटना यह घटेगी, जो स्वयं के सादृश्य से सोचेगा, वह तो कृष्ण कहते हैं, यह श्रेष्ठतम स्थिति है योग की। पर यह दूसरे का निर्णय लेना बंद कर देगा। नहीं; निर्णय नहीं लेगा। क्योंकि समता और है। यह अ और ब के बीच में नहीं; यह मेरे और तेरे
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