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निराकार का बोध ... 431
सकाम प्रार्थनाओं के फल-क्षणिक वस्तुएं / क्षुद्र वस्तुएं मांगना-अल्प बुद्धि का लक्षण / परम आवश्यकता को मांगना-बुद्धिमत्ता है / गलत दिशा में सुख खोजना / दूर-दृष्टि की कमी / सम्राट अशोक का युद्ध से वैराग्य / जो मिला है, उसे भूल जाना / प्रार्थना धन्यवाद है-जो मिला ही है, उसके लिए / कृष्ण में छिपे निराकार को न देख पाना / परमात्मा का आकार में रूपायित होना / कृष्ण को केवल देहधारी की तरह पूजना नासमझी है / कृष्ण की भगवत्ता का इनकार-दूसरी नासमझी है / प्रेमी की अति-नास्तिक की अति / निराकार को देखने की क्षमता / केवल आकार को देखने की हमारी जड़ आदत / शब्दों को समझना, अर्थ को समझना नहीं है / प्रकट होते ही रूप बन जाता है / अरूप की खोज / बुद्ध न चले, न बोले / रिझाई : मैं अजन्मा हूं / ध्यान का एक प्रयोगः मेरी सीमा कहां है? / शरीर के फैलने-सिकुड़ने का बोध / मेरी कोई सीमा नहीं है / दूसरा एक ध्यान : मेरी उम्र कितनी है? / ध्यान है—आकार से निराकार की तरफ यात्रा / निराकार में है-सत् चित् आनंद / इंद्रियां आकार का निर्माण करती हैं | ध्यान का एक तीसरा प्रयोग : मैं मर गया हूं / मैं शरीर नहीं हूं-ध्यान का अनुभव / निराकार परमात्मा-इंद्रियातीत अनुभव है / कृष्ण जैसी चेतना में भूत, भविष्य, वर्तमान का एक हो जाना / सब है-अभी और यहीं/ अस्तित्व है-शाश्वत वर्तमान / हम बीते हैं-समय नहीं / समाधिस्थ चेतना में सम्यक ज्योतिष का जन्म / चेतना की ऊंचाइयों में अतीत, वर्तमान और भविष्य का फासला गिरना / नियति का पूर्व-बोध / नियत महाभारत युद्ध-और निमित्त अर्जुन / जीसस की सूली–जो होने वाला है, वह होगा ही / क्राइस्ट-ड्रामा / कृष्ण के लिए युद्ध-नाटक से ज्यादा नहीं / गांधी की तरकीब-महाभारत युद्ध 'को प्रतीकात्मक मानना / अर्जुन युद्ध करे-प्रभु समर्पित होकर / साधारण आंखों में कृष्ण एक सारथी हैं / आंख वालों के लिए कृष्ण परम परमात्मा हैं | कीर्तन से निराकार की ओर गति।
धर्म का सार : शरणागति ... 445
प्रार्थना का बीज-वासनाओं के घासपात / राग-द्वेष के रहते प्रार्थना कठिन / प्रतिकूल परिस्थितियों के रहते प्रार्थना अंकुरित हो / सृजनात्मक जीवन / अज्ञानी द्वारा नर्क का सतत निर्माण / देखने का ढंग / वर्षा में नाचना / बाजार की भाषा में सोचना / वर्षा की बूंदों को परमात्मा के प्रसाद की तरह लेना / शरीर का भीगना-आत्मा का भीगना / विराट का बोध और शरण-भाव / जो तेरी मर्जी / स्वीकार से रूपांतरण / मैं की दीवाल / एक मात्र शरण योग्य-परमात्मा ही है / सूली पर जीसस-दो क्षण की शिकायत / तेरी मर्जी पूरी हो-और जीसस क्राइस्ट हो गए / जिसका मैं खोया-उसे सब मिला / जमीन पर लेटकर शरण-भाव में डूबना / शरण का अर्थ है-ओपनिंग / इंडोनेशिया का कीमती ध्यान आंदोलन-सुबुद / परमात्मा के हाथ में अपने को छोड़ देना / विराट ऊर्जा का प्रवाह / बुद्धं शरणं गच्छामि / मैं है बाधा–होने में / पूरी गीता का सार-शरणागति / कृष्ण की शरणागति
और महावीर का अशरण-एक ही बात / अशरण तभी पूरा होगा—जब मैं न बचे / जीवन को दो खंडों में तोड़कर देखना / शुभ-अशुभ, प्रकाश-अंधकार / सब एक परमात्मा ही है / बुद्धि का काम है-तोड़कर देखना / ईसाई फकीर सेलवीसियस की भारत यात्रा : चमत्कारी खोपड़ी का रहस्य / रहस्य होता है-समग्रता में / खंडित होते ही रहस्य खो जाता है / विज्ञान है विश्लेषण और धर्म है संश्लेषण / समग्रता में दिव्य सौंदर्य है । सब भूतों में परमात्मा को देखना / जीवन अद्वैत है / रोज एक घंटे चुप बैठना / गीता ज्ञान यज्ञ-शब्द से—मौन से / मौन अखंड करता है / शब्दातीत का बोध-मौन में।