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< गीता दर्शन भाग-3 -
जरूरी है। निराकार को देखना हो, तो आपके भीतर अहंकार बाधा यह दूसरी बात का क्या राज है? है। क्योंकि अहंकार आकार देता रहेगा। अहंकार बड़ी छोटी-सी परमात्मा को तो हम सब दृश्य होने ही चाहिए, चाहे हम कैसे चीज है, लेकिन बड़े-बड़े आकार उससे पैदा होते हैं। ठीक ऐसे | भी हों। चाहे हम कैसे भी हों-बुरे हों, भले हों, अज्ञानी हों, पापी जैसे कोई शांत झील में एक पत्थर का छोटा-सा कंकड़ डाल दे। हों-कैसे भी हों; बाकी उसकी आंख में तो हम दिखाई पड़ने ही कंकड़ तो बड़ा छोटा-सा होता है, बहुत जल्दी जाकर जमीन में बैठ चाहिए। उसकी आंख में हम दिखाई नहीं पड़ते! कृष्ण का यह जाता है। लेकिन कंकड़ से जो लहरें पैदा होती हैं, वे विराट होती वक्तव्य बहुत अदभुत है। शायद दुनिया के किसी शास्त्र में ऐसा चली जाती हैं, फैलती चली जाती हैं।
वक्तव्य नहीं है। अहंकार तो बहुत छोटी-सी चीज है, लेकिन वह बड़े-बड़े सभी शास्त्र ऐसा कहते हैं कि वह तो हमें देख ही रहा है। सब आकार पैदा करता है, निराकार कभी नहीं। बड़े से बड़ा आकार तरफ से देख रहा है। सब जगह से देख रहा है। ऐसी कोई जगह नहीं पैदा कर सकता है, निराकार कभी नहीं। निराकार तो तब पैदा है, जहां वह हमें न देख रहा हो; उसकी आंख हम पर न लगी हो। होगा, जब कंकड़ ही न हो, लहर ही न उठे, तब निराकार की कृष्ण का यह वक्तव्य तो बहुत भिन्न है। भिन्न ही नहीं, बहुत निस्तरंग स्थिति होगी।
| डायमेट्रिकली अपोजिट है। इस वक्तव्य का दूसरा मतलब यह अहंकार खो जाए! या तो अहंकार इतना मजबूत होता चला जाए हआ कि जब तक हम इस स्थिति में नहीं हैं. तब तक परमात्मा हमें कि अपने आप अपनी ही ताकत से टूट जाए, जैसा पुरुष के जीवन | | नहीं देख रहा है? हम उसके लिए न होने के बराबर हैं? अदृश्य में घटित होता है। जैसा महावीर के जीवन में घटित होता है। | हैं? हम उसी दिन दृश्य होंगे, जिस दिन वह हमारे लिए दृश्य हो अहंकार सख्त, सख्त और मजबूत होता चला जाता है। छोटा होता | | जाएगा? इसका क्या मतलब हो सकता है? चला जाता है—छोटा, छोटा, छोटा-एटामिक, अणु जैसा हो इसके दो-तीन मतलब खयाल में ले लेने जैसे हैं, गहरे हैं, जाता है, परमाणु जैसा हो जाता है। और फिर आखिर इतना छोटा सूक्ष्म। और यह वक्तव्य बहुत कीमती है। हो जाता है कि उसके आगे जाने का कोई उपाय नहीं रहता। इतना | पहला मतलब तो यह है कि परमात्मा ही नहीं, कहीं भी, हम कंडेंस्ड कि अब आखिरी कोई गति नहीं रहती। टूटकर बिखर जाता | | सिर्फ वही देख पाते हैं जो हम हैं। परमात्मा भी वही देख पाता है, है, एक्सप्लोजन हो जाता है।
जो वह है। जब तक हम परमात्मा जैसे नहीं हो जाते, हम उसे स्त्री का अहंकार बड़ा होता चला जाता है; इतना बड़ा कि | | दिखाई नहीं पड़ सकते। परमात्मा से एक हो जाता है। अगर मीरा से कृष्ण की बातें सुनी हैं, __ हम उसे दिखाई नहीं पड़ सकते, क्योंकि वह इतना शुद्धतम, तो खयाल में आएगा। इधर पैर पर सिर भी रखती है, उधर कृष्ण और हम अभी इतने अशुद्ध कि उस शुद्धि में हमारी अशुद्धि का से नाराज भी हो जाती है। डांट-डपट भी कर देती है। इधर सिर रख कोई प्रतिफलन नहीं हो सकता। उस शुद्धतम में हमारी अशुद्धि का देती है पैर पर, उधर कृष्ण पर नाराज भी हो जाती है! उधर कृष्ण से कोई प्रतिफलन नहीं हो सकता। वह अशुद्धि हमसे कटे, हटे, तो कभी रूठ भी जाती है। बड़ा होता जाता है। इतना बड़ा, इतना बड़ा ही हम शद्ध होकर उसमें प्रतिफलित हो सकते हैं। कि परमात्मा से रूठने की सामर्थ्य भी आ जाती है। और जब इतना | | इसमें कसूर परमात्मा का नहीं है, इसमें हमारी अशुद्धि बाधा है। बड़ा हो जाता है कि परमात्मा के बराबर हो जाए, तो खो जाता है। | वह इतना विराट, इतना निराकार, इतना असीम! और हम इतने
दो खोने के ढंग हैं। या तो मैं इतना बड़ा हो जाए कि परमात्मा | आकार से भरे हुए कि उस निराकार की आंख में हमारा आकार जैसा। और या मैं इतना छोटा हो जाए, जितना हो सकता है। दोनों | पकड़ में नहीं आ सकता। स्थितियों में छूट जाएगा, विदा हो जाएगा।
ध्यान रहे, जिस तरह आकार वाली आंख में निराकार पकड़ में कृष्ण कहते हैं, ऐसी स्थिति को उपलब्ध व्यक्ति के लिए मैं नहीं आ सकता, उसी तरह निराकार की आंख में आकार पकड़ में साकार जैसा, दृश्य हो जाता हूं, निराकार होते हुए। और दूसरी बात नहीं आ सकता। आकार इतनी क्षुद्र घटना है कि उस निराकार की तो और भी अद्भुत कहते हैं कि और ऐसा व्यक्ति मुझे दृश्य हो | | आंख में कैसे पकड़ में आएगा? असल में निराकार और आकार जाता है।
का कोई संबंध नहीं बन सकता। असंभव है। निराकार आकार से
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