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________________ - अहंकार खोने के दो ढंग - और हमें सगुण से ही मुलाकात होती है। और सब जगह असीम | | दस खिड़कियां होंगी, तो दस आकाश हो जाएंगे। उस घर के भीतर मौजूद है, और हमें सीमा से ही मुलाकात होती है। बात क्या है? रहने वाले को क्या कभी स्वप्न में भी यह सूझ पाएगा कि एक ही बात करीब-करीब ऐसी है, जैसे कोई आदमी अपने घर के बाहर | | आकाश होगा? यह असंभव मालूम पड़ता है। और आकाश एक कभी न गया हो और जब भी आकाश को देखा हो, तो अपनी ही है। खिड़की से देखा हो। आकाश तो असीम है, लेकिन खिड़की से | ___ इंद्रियों से देखते हैं हम जगत को, इसलिए आकार दिखाई पड़ता देखा गया आकाश फ्रेम में हो जाता है। खिड़की का फ्रेम आकाश | | है। इंद्रियां विंडोज हैं, खिड़कियां हैं। और प्रत्येक इंद्रिय का ढांचा से लग जाता है। आकाश में कोई फ्रेम नहीं होता, कोई ढांचा नहीं | | विराट के ऊपर बैठ जाता है। कान से सुनते हैं, आंख से देखते हैं, होता। आकाश का कोई चौखटा नहीं होता। आकाश चौखटे से | हाथ से छूते हैं। हर इंद्रिय अपने ढांचे को दे देती है निराकार को। बिलकुल मुक्त है। लेकिन खिड़की के पीछे से खड़े होने पर | | जब भी छूते हैं, निराकार छूते हैं। लेकिन हाथ स्पर्श को आकार खिड़की का चौखटा आकाश पर जड़ जाता है। दे देता है। हाथ की सीमा है। हाथ असीम को नहीं छू सकता। और जिसने कभी खले आकाश को जाकर न देखा हो, सदा जिसको भी छएगा, उसे ही सीमित बना लेगा। खिड़की से ही देखा हो, वह यह न मान सकेगा कि आकाश असीम जब भी देखते हैं, निराकार को देखते हैं। लेकिन आंख की सीमा है, निराकार है। वह यही मान पाएगा कि आकाश की सीमा है। | है। आंख निराकार को नहीं देख सकती। तो जब भी देखते हैं, आंख यद्यपि जिसे वह आकाश की सीमा कह रहा है, वह उसकी खिड़की | | अपनी खिड़की बिठा देती है निराकार पर, और आकार निर्मित हो की सीमा है। लेकिन खिड़की आकाश पर जड़ जाती है। और | जाता है। जब भी सुनते हैं, तब फिर...। आकाश जरा भी बाधा नहीं देता। क्योंकि जो असीम है, वह किसी सभी इंद्रियां निराकार को आकार देती हैं। और फिर जैसा मैंने चीज को बाधा नहीं देता; सिर्फ सीमित बाधा देता है। | कहा, उस मकान में पांच खिड़कियां हों। या हम ऐसा समझें कि ध्यान रखना. सीमित हमेशा बाधा देता है। उसकी सीमा के आगे वह मकान ठहरा हआ मकान न हो. आन दि व्हील्स हो. उस पर आप खींचोगे, इनकार कर देगा। असीम बाधा नहीं देता। असीम | चक्के लगे हों और मकान दिन-रात चलता रहे, तो पांच खिड़कियां का अर्थ ही यह है कि आप कुछ भी करो, कोई बाधा नहीं पड़ती। | करोड़ों आकाश बना देंगी। तो एक छोटी-सी खिड़की आकाश पर जड़ जाती है, आकाश | ।। हम चलते हुए मकान हैं, जिसके नीचे पैर लगे हैं। घूमती हुई इनकार भी नहीं करता। आकाश कहता भी नहीं कि ज्यादती हो रही आंखें हैं हमारे पास। हमारी सारी इंद्रियां, पांच इंद्रियां पांच अरब है, अन्याय हो रहा है। आकाश चुपचाप अपनी जगह बना रहता | | इंद्रियों का काम करती हैं। क्योंकि चलते वक्त पूरे समय आकाश है। आकाश को पता भी नहीं चलता कि किसी की खिड़की उसके बदलता रहता है और हमारी इंद्रिय हर बार नई-नई चीज को देखती ऊपर बैठ गई है। लेकिन आप जो भीतर खड़े होकर देखते हैं, रहती है। इसलिए हमने यह अनंत-अनंत रूपों का जगत अनुभव आपकी खिड़की की सीमा आकाश की सीमा बन जाती है। एक। किया है। फिर अगर आपके घर में बहुत खिड़कियां हैं, तो आप बहुत-से | कृष्ण इस सूत्र तक आने के पहले बार-बार दोहराते हैं कि वही आकाशों को जानने वाले हो जाएंगे। एक खिड़की से देखेंगे, एक | जान पाएगा मुझे, जो इंद्रियों के पार है। तब इतने सूत्रों के बाद वे आकाश दिखाई पड़ेगा, जहां से सूरज निकलता है। दूसरी खिड़की | कहते हैं कि जो मुझे सब भूतों में देख लेगा एक को, और एक में से देखेंगे, वहां अभी कोई सूरज नहीं है; आकाश में बदलियां तैर देख लेगा सब भूतों को...। रही हैं। तीसरी खिड़की से देखेंगे, वहां बदलियां भी नहीं हैं, सूरज __यह एक साथ ही घटित हो जाता है। कहीं से भी शुरू कर लें। भी नहीं है; आकाश में पक्षी उड़ रहे हैं। चाहे सबमें देख लें एक को, तो दूसरी बात, एक में सब दिखाई जो आदमी घर के बाहर कभी नहीं गया. क्या वह किसी भी तरह एक दिखाई सोच पाएगा कि ये तीनों आकाश एक ही आकाश हैं? नहीं सोच | पड़ने लगता है। ये दो बातें नहीं हैं। ये दो छोर हैं एक ही घटना के, पाएगा। सीधा गणित यही होगा कि तीन आकाश हैं मेरे घर के एक ही हैपनिंग के। कहीं से भी शुरू हो सकता है। और हर आदमी आस-पास। पांच खिड़कियां होंगी, तो पांच आकाश हो जाएंगे। को अलग-अलग शुरू होगा। को 209
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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