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गीता दर्शन भाग-3
आई। बिल्ली तो हट गई। लेकिन छः महीने के बच्चे पर बिल्ली का पंजा बैठ गया । वह जो बाद में कहता था, आई एम दिला, वह सिर्फ बिल्ली का पंजा था उसकी छाती में, कोई कानून नहीं था। फिर वह बहादुर आदमी सिद्ध हुआ। शेर से लड़ सकता था, लेकिन बिल्ली से डरता था। वह छः महीने में जो कानून बनकर बैठ गई थी बिल्ली ! बिल्ली को देखता था तो छः महीने के बच्चे की हैसियत हो जाती थी उसकी, रिग्रेस कर जाता । कभी हारा नहीं था ।
लेकिन उसके दुश्मन ने, नेल्सन ने, जो उसके खिलाफ लड़ने आया था, पता लगा लिया कि उसकी कमजोरी बिल्ली है। तो सत्तर बिल्लियां नेल्सन अपनी युद्ध की फौज के सामने बांधकर लाया। और जब नेपोलियन ने बिल्लियां देखीं, तो जैसा अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि हे कृष्ण, मेरा गांडीव धनुष शिथिल हो गया; मेरे गात शिथिल हुए जाते हैं, पसीना छूट रहा है। अब मेरी हिम्मत नहीं होती। ऐसा ही नेपोलियन ने अपने सेनापति से कहा कि तू सम्हाल। बिल्लियों को देखकर मेरे गात शिथिल हुए जाते हैं! हार गया उसी सांझ ।
और जिसने पंद्रह दिन पहले कहा था, आई एम दि ला, वह पंद्रह दिन बाद हेलेना के द्वीप पर कैद था कारागृह में। सुबह घूमने निकला था। छोटा-सा द्वीप। द्वीप पर उसको मुक्त रखा गया था, क्योंकि छोटे द्वीप के बाहर भाग नहीं सकता था । द्वीप पर कारागृह था, पूरा द्वीप ही उसके लिए कारागृह था। सुबह घूमने निकला था। छोटी-सी पगडंडी है जंगल की और एक घास वाली औरत एक बड़ा घास का गट्ठर लिए उस तरफ से आती थी। नेपोलियन के साथ। एक चिकित्सक रखा गया था, क्योंकि नेपोलियन जो कि कभी भी बीमार नहीं पड़ा था, हारते ही इस बुरी तरह बीमार पड़ गया, जिसका कोई हिसाब नहीं ।
सभी राजनीतिज्ञ पड़ जाते हैं, हारते ही! ज्यादा दिन जिंदगी नहीं रहती फिर। फिर मौत बड़ी जल्दी करीब आ जाती है।
तो चिकित्सक साथ था। दोनों चल रहे थे। चिकित्सक तो भूल गया, चिल्लाकर जोर से कहा कि ओ घसियारिन ! रास्ता छोड़ । लेकिन घसियारिन क्यों रास्ता छोड़े? हो कौन तुम, जिसके लिए रास्ता छोड़े! घसियारिन तो बढ़ी चली आई। तब नेपोलियन को खयाल आया । नेपोलियन रास्ते से नीचे उतर गया, डाक्टर को भी नीचे उतार लिया और उसने कहा कि वे दिन चले गए, जब हम पहाड़ों से कहते थे, रास्ता छोड़ दो और पहाड़ रास्ता छोड़ देते थे। अब घास वाली औरत रास्ता नहीं छोड़ेगी। नीचे उतरकर किनारे
खड़ा हो गया। पंद्रह दिन पहले उस आदमी ने कहा था, आई एम दिला, मैं हूं कानून, मैं हूं नियम ।
असल में नेपोलियन की या सिकंदर की यात्रा भी इसी आशा में है कि एक जगह मिल जाए, जहां जाकर मैं कह सकूं, मैं हूं प्रभु । पद की हो, कि धन की हो, कि यश की हो, सारी यात्रा मिस-इंटरप्रिटेशन है, उस प्यास की गलत व्याख्या है, जो हमारे भीतर प्रभु के लिए है । वह सबके भीतर है।
बस, इस गलत व्याख्या को तोड़ देने की जरूरत है: आपके भीतर चिंतन चलने लगेगा चौबीस घंटे। चाहे दुकान पर बैठे होंगे, तो भीतर कोई प्रभु की प्यास सरकने लगेगी। चाहे घर पर होंगे, चाहे काम करते होंगे, चाहे विश्राम करते होंगे, चाहे जागते होंगे, चाहे सो गए होंगे, भीतर एक खटक चलती ही रहेगी।
उस खटक का नाम चिंतन है। उस खटक का, कि प्रभु हुए बिना कोई उपाय नहीं, कि प्रभु से एक हुए बिना कोई उपाय नहीं, कि प्रभु की गोद में पड़े बिना कोई उपाय नहीं, कि प्रभु की शरण में गए बिना कोई उपाय नहीं, कि प्रभु के साथ लीन हुए बिना कोई उपाय नहीं ।
ऐसी जब प्यास - शब्द नहीं, ऐसी प्यास- जब भीतर सरकने लगती है, तो उसका नाम प्रभु का सतत चिंतन है।
कृष्ण कहते हैं, ऐसे सतत चिंतन को जो उपलब्ध होता है, समस्त वासनाओं को क्षीण करके और समस्त इंद्रियों के पार | उठकर, परम है सौभाग्य उसका, वह योगीजन उस सबको पा लेता है, जो पा लेने योग्य है।
आज इतना ही। फिर कल सुबह ।
लेकिन पांच मिनट बैठेंगे, कोई जाएगा नहीं । धैर्य रखेंगे पांच | मिनट। यहां थोड़ा प्रभु का चिंतन चलता है; प्रभु के प्यासे लोग नाचते हैं उसकी यात्रा पर । उनको देखें। देखें ही न, उनका साथ दें। | बैठकर ताली भी बजाएं। उनके गीत में सम्मिलित भी हों। एक पांच | मिनट के लिए भूल जाएं सब ।
उठें मत। दो-चार लोग उठकर दूसरे लोगों को परेशान करते हैं। अपनी जगह बैठे रहें। एक पांच मिनट का धैर्य रख लें। इतनी देर | धीरज की बात सुनी, तो उसको जल्दी खराब न करें। बैठ जाएं अपनी जगह पर साथ दें उनके कीर्तन में मग्न हों। पांच मिनट के लिए आनंदित हों और यह प्रसाद लेकर घर जाएं।
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