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-दुखों में अचलायमान -
हो गए हैं। तो वहां तक तो हमें कोई दुख चलायमान नहीं करता। हमारे भीतर वही प्रवेश करता है, जो हमारे भीतर पहले से मौजूद लेकिन विशेष दुख आ जाता है, जिसके लिए हम आदी नहीं हैं, तो | है। जीवन के इस नियम को बहुत गौर से समझ लेना जरूरी है। हम कंपित हो जाते हैं, तो हम पीड़ित हो जाते हैं, तो हमारे भीतर हमारे भीतर वही प्रवेश करता है, जो हमारे भीतर मौजूद है, अन्यथा कुछ टूटता है, बिखरता है।
हमारे भीतर प्रवेश नहीं हो सकता। अगर आप दुखी हैं, तो दुख लेकिन जो व्यक्ति आनंद के अनुभव को उपलब्ध हो जाए, उसे प्रवेश कर सकता है। अगर आनंदित हैं, तो आनंद प्रवेश कर फिर बड़े से बड़ा दुख विचलित नहीं करता, क्योंकि भीतर गहरे में सकता है। अगर अज्ञानी हैं, तो अज्ञान प्रवेश कर सकता है। अगर वह आनंद में जीता ही है। दुख बाहर ही आते हैं फिर, भीतर तक ज्ञानी हैं, तो ज्ञान प्रवेश कर सकता है। समान ही समान को खींचता प्रवेश नहीं कर पाते। दुख बाहर घूमते हैं और चले जाते हैं, जैसे है, असमान को हटाता है। हवा के झोंके आए हों। या आप रास्ते से गुजरते हों और वर्षा पड़ ___ तो अगर आपको बार-बार दुख प्रवेश कर जाता हो, तो समझ गई हो, तो आप कोई मिट्टी के पुतले नहीं हैं, आप उस वर्षा को | | लेना कि आपके भीतर दुख की गहरी पर्त है, जो उसे बुला लेती है, झेलकर घर आ जाते हैं। आप भीतर जानते हैं, कुछ गल नहीं निमंत्रण दे देती है। अगर आप उदास आदमी हैं, तो आपको चारों जाएगा। लेकिन उसी रास्ते पर अगर मिट्टी के पुतले भी चल रहे | तरफ से उदासी पकड़ेगी और आपकी तरफ दौड़ेगी। आप गड्ढा बन हों, तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे।
जाएंगे, और उदासी आपकी तरफ नदियां बनकर यात्रा करने भीतर आनंद की वर्षा हो रही हो सतत, तो बाहर कितना ही बड़ा | लगेगी। अगर आप आनंदित हैं, तो चारों तरफ से आनंद की धाराएं दुख आ जाए, बाहर ही रहता है, भीतर प्रवेश नहीं कर पाता। ध्यान | आपके भीतर प्रवेश करने लगेंगी। रखें, दुख भीतर तभी प्रवेश करता है, जब भीतर दुख मौजूद हो। जो आपके भीतर प्रवेश करता है, वह खबर देता है कि कौन
और समान समान को आकर्षित करता है। भीतर दुख मौजूद हो, आपके भीतर बैठा है, जो उसे आकर्षित कर रहा है। जिसने आनंद तो बाहर के दुख को भीतर खींचता है। भीतर आनंद मौजूद हो, तो को जाना प्रभु को पा लेने के, उसे कोई दुख विचलित नहीं करेगा। बाहर के दुख को वापस लौटा देता है, उसे निमंत्रण भी नहीं देता। - कितने दुख हैं जीवन में? कितने दुख हैं? हम उनकी थोड़ी-सी
कृष्ण कहते हैं, जिसने पा लिया परम लाभ, प्रभु को अनुभव | | मोटी गिनती कर लें, तो खयाल में आ जाए। किया जिसने, फिर बड़े से बड़ा दुख उसे चलायमान नहीं करता है। __प्रिय के बिछुड़ने का दुख है। प्रियजन के बिछुड़ने का दुख है।
फिर चलायमान होने की कोई वजह नहीं रह गई। फिर हालत | लेकिन जो प्रभु को मिल गया, वह प्रियतम को मिल गया। अब कोई ऐसी ही हो गई कि जिसे यह पता चल गया कि मेरे पास अनंत | | प्रियजन के बिछुड़ने का दुख नहीं रह जाता। अब मिलन शाश्वत है। खजाना है, उसकी अगर एक कौड़ी गिर जाए, तो क्या दुख, क्या | अब तो हम उस प्यारे को मिल गए, जिसकी झलक हमने सब पीड़ा! जिसे पता चल जाए, अनंत खजाना मेरे पास है, उसके प्रियजनों में देखी थी, लेकिन जिसे हम किसी में पा न सके थे। जिसे करोड़ रुपए भी खो जाएं, तो कौन-सी पीड़ा है, कौन-सा दुख है! हमने सब प्रियजनों में खोजना चाहा था, और खाली और रिक्त हाथ अनंत में कुछ कम नहीं होगा।
| वापस लौट आए थे। जिसे हमने जब भी किसी को प्रेम किया था, जिसे पता चल जाए कि मेरे भीतर जो है, वह कभी नहीं मरता, | तो उसमें बहुत गहरे में हमने परमात्मा को ही तलाशा था। तो छोटी-मोटी बीमारी की तो बात अलग, मौत खुद भी द्वार पर । और इसीलिए तो सभी प्रेमी फ्रस्ट्रेट होते हैं, क्योंकि अंत में आकर खड़ी हो जाए, तो विचलित होने का कोई कारण नहीं है। मौत मिलता है आदमी, परमात्मा तो मिलता नहीं। खोजते परमात्मा को से हम विचलित होते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, मैं मरूंगा। मौत से ही हैं। इसलिए जब भी कोई किसी के प्रेम में गिरता है, तो वह हम विचलित होते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि बीमारी इतनी उसके भीतर किसी दिव्यता की खोज है। लेकिन फिर हाथ में तो तकलीफ दे गई; मौत कितनी तकलीफ न दे जाएगी! मौत से हम हड्डी, मांस, चमड़ी के कुछ और आता नहीं, कोई दिव्यता तो हाथ विचलित होते हैं, क्योंकि भीतर अमृत का हमें कोई अनुभव नहीं है। में आती नहीं। फिर विषाद घेर लेता है।
यदि अमृत का अनुभव है, तो मौत स्पर्श भी नहीं कर पाएगी। जो प्रभु को पा लिया, उसके लिए अब मिलन का कोई प्रश्न न वह बाहर ही बाहर घूम सकती है, भीतर प्रवेश नहीं कर सकती। रहा, परम मिलन हो गया। अब उसके हाथ किसी के आलिंगन को
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