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4 गीता दर्शन भाग-3>
सदा आदत थी कि जब भी वह कुछ समझाता, तो एक अंगुली ऊपर | रेडीमेड। कह दिया कि मैं शरीर नहीं हूं। बस, व्यर्थ हो गया। नहीं; उठाकर समझाता। जब भी कुछ कहता, तो उसकी एक अंगुली सिर्फ पूछे। उत्तर को आने दें। आप जल्दी न करें। आपके उत्तर दो ऊपर उठ जाती। अद्वैत की खबर वह अंगुली से देने लगता। जो | कौड़ी के हैं। क्योंकि आपको उत्तर ही मालूम होता, तो पूछने की बोलने से नहीं कह पाता था, वह अंगुली से कहता। वह जब तक जरूरत क्या थी? उत्तर आपको मालूम नहीं है।
उसकी अंगली कंपित होती रहती. ऊपर उठी रहती। लेकिन शास्त्र दश्मन हो गए हैं। पढ लिया है उनको। उनमें फकीरों में मजाक चलता था। उसके शिष्यों में भी कभी-कभी | लिखा है कि मैं शरीर नहीं हूं! जो मित्र हो सकते थे, उनको हमने मजाक चलता था; वे भी अंगुली उठाकर बात करते थे। उसके दुश्मन कर लिया है। कंठस्थ कर लिया, मैं शरीर नहीं हूं। बैठे, सामने तो हिम्मत नहीं पड़ती थी लेकिन पीठ पीछे उसके शिष्य | पूछते हैं, मैं शरीर हूं? पूछ भी नहीं पाते, हमको उत्तर पहले से ही कभी-कभी मजाक में अंगुली उठा लेते।
| पता है। वह कहता है, क्या बेकार में! मैं शरीर नहीं हूं। उठकर एक दिन एक शिष्य अंगुली उठाकर कुछ गपशप कर रहा था। वापस वही के वही आदमी वापस हो गए। अचानक लिंची मंदिर के भीतर आ गया। वह घबड़ा गया। उसने | नहीं; पूछे, क्या मैं शरीर हूं? और चुप रह जाएं। जाने दें प्रश्न अंगुली अपनी बंद की। लिंची ने कहा कि नहीं, उठी रहने दो। लिंची को गहरा। उत्तर न दें स्मृति से। उतरने दें प्रश्न को गहरा। अनुभव ने खीसे से चाकू निकाला और अंगुली काटकर फेंक दी। तड़फड़ा | करें, क्या मैं शरीर हूं? गया। ल
।। लहलहान हो गया हाथ। लिंची ने कहा, सावधान। देख, शरीर के प्रति जागें, शरीर को भीतर से देखें कि यह रहा शरीर। अंगुली कटी है, तू तो नहीं कटा। बी अवेयर। मौका मत चूक। जैसे कि कोई आदमी अपने मकान के भीतर बैठा है और देखता है अंगुली कटी है, तू नहीं कटा। गौर से देख!
कि चारों तरफ दीवाल है, ठीक ऐसे ही अपने शरीर के भीतर बैठकर चौंक गया। लिंची की आवाज! अंगुली के कटने में एक तो देखें, चारों तरफ शरीर की दीवाल है, हाथ हैं, पैर हैं। यह शरीर विचार वैसे ही बंद हो गए। एकदम घबड़ा गया। विचार का कंपन | रहा। क्या मैं शरीर हूं? उत्तर न दें। कृपा कर उत्तर से बचें। मैं शरीर चला गया। अंगुली कट जाएगी, अनएक्सपेक्टेड, कभी सोचा भी | हं? प्रश्न और प्रश्न को तीर की तरह भीतर उतर जाने दें। नहीं था। और लिंची जैसा दयावान आदमी, जो पत्ता न तोड़े, वह और जल्दी ही कोई चीज भीतर गिर जाएगी पर्दे की तरह, और अंगुली काट देगा, यह कोई सोच ही नहीं सकता था। और फिर अचानक प्रतीत होगा, कहां! शरीर तो वह रहा; मैं यह अलग हूं। लिंची की आवाज; और लिंची का खड़ा हुआ रूप; और लिंची की | | लेकिन यह उत्तर आप मत देना; यह उत्तर आने देना। और जब यह उठी हुई अंगुली! देख, तू नहीं कटा है, अंगुली कटी है। उस आएगा, तो आपके जीवन को बदल जाएगा। और जब आप देंगे, आदमी की आंख बंद हो गई, उसने भीतर देखा। वह लिंची के | | तो जीवन वही का वही बना रहेगा। यही कसौटी है। चरणों में गिर पड़ा और उसने कहा कि धन्यवाद! पहली दफा मुझे । अगर इस उत्तर के बाद जीवन दूसरा हो जाए, तो जानना कि उत्तर पता चला कि मैं अंगुली नहीं हूं।
आया। और अगर जीवन वही रहे कि पूछ-पांछकर उठे और एक-एक इंद्रिय के प्रति ऐसे ही जागना पड़ता है कि यह मैं नहीं सिगरेट मुंह में लगाकर जला ली और फिर धुआं उड़ाने लगे। और हूं, यह मैं नहीं हूं, यह मैं नहीं हूं। और कठिन नहीं है। जरूरी नहीं जीवन वही का वही रहा, कोई अंतर न पड़ा, कोई ट्रांसफार्मेशन न है कि अंगुली काटकर ही जागें। जरूरी नहीं है कि अंगुली काटकर हुआ, तो जानना कि उत्तर आथेंटिक नहीं था; हमने ही दे दिया था। ही जागें, कभी बैठकर शांति से विचार ही करें अंगुली को उठाकर और मन की चालाकी अनंत है। वह उत्तर तैयार रखे है, ताकि कि क्या यह अंगुली मैं हूं? उठाए रहें अंगुली को; भीतर सोचें, क्या | | आपको नाहक भीतर न जाना पड़े। वह कहता है, कहां जा रहे हो? यह अंगुली मैं हूं? बहुत देर न लगेगी, अंगुली से कोई चीज भीतर | पहरेदार हूं, मैं ही बताए देता हूं। मालिक से मिलने की जरूरत क्या वापस गिर जाएगी। अंगुली अलग, आप अलग हो जाएंगे। | है? दरवाजे पर पहरेदार की तरह खड़ा है। आपसे कहता है, हम
कभी आंख बंद करके सोचें, यह शरीर मैं हूँ? ध्यान रहे, प्रश्न ही बताए देते हैं, आप कहां जाते हो? बैठो यहीं। सब उत्तर हमें पूछे, उत्तर न दें! हम उत्तर देने में बड़े होशियार हैं। हम सबको मालूम हैं; नाहक भीतर जाने का कष्ट क्यों उठाते हो! मालूम है कि मैं शरीर नहीं हूं! पूछा भी नहीं कि उत्तर तैयार है, तो मन से कहना कि क्षमा करो। तुम्हारे उत्तर अपने पास रखो।