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________________ योग का अंतर्विज्ञान - वह जो मिलने का क्षण है, कर्मठ व्यक्ति को भी मिलता है, लेकिन उसे कर्म से ही मिलता है। अब जैसे अर्जुन जैसा आदमी है, जब तलवारें चमकेंगी और जब कर्म का पूर्ण क्षण होगा, जब अर्जुन भी नहीं बचेगा, दुश्मन भी नहीं बचेगा, सिर्फ कर्म रह जाएगा। तलवार मैं चला रहा हूं, ऐसा नहीं रहेगा; तलवार चल रही है, ऐसे क्षण की स्थिति आ जाएगी, तब अर्जुन जैसे आदमी को समाधि का अनुभव होगा। ये तीन खास प्रकार के लोग हैं। और योग ने इन तीनों पर, वैसे फिर इन तीनों के बहुत विभाजन हैं और योग ने बहुत-सी विधियां खोजी हैं, लेकिन इन तीन विधियों के द्वारा साधारणतः कोई भी व्यक्ति चेतना को उस थिर स्थान में ले आ सकता है। ___ ज्ञान रह जाए केवल; भाव रह जाए केवल; कर्म रह जाए केवल। तीन की जगह एक बचे, दो कोने मिट जाएं। द्रष्टा मिट जाए, दृश्य मिट जाए, दर्शन रह जाए। ज्ञाता मिट जाए, ज्ञेय मिट जाए. ज्ञान रह जाए। तीन की जगह एक रह जाए। बीच का रह जाए, दोनों छोर मिट जाएं, तो व्यक्ति की चेतना थिर हो जाती है, ऐसी जैसे कि जहां वायु न बहती हो, पवन न बहता हो, वहां दीए की ज्योति थिर हो जाती है। उस दीए की ज्योति के थिर होने को ही. कष्ण कहते हैं. योगी को उपमा दी गई है। योगी भी ऐसा ही ठहर जाता है। आज के लिए इतना ही। पांच मिनट लेकिन कोई उठेगा नहीं। पांच मिनट यहां वह भाव वाली प्रक्रिया...। पांच-सात मिनट ये संन्यासी नाचेंगे। इनके साथ आप भी मिट जाएं। और नाच ही रह जाए। गीत ही रह जाए। उठे . न! पांच मिनट बैठे रहें। कोई उठकर अस्तव्यस्त न हो। और यहां मंच पर कोई नहीं आएगा देखने के लिए। मंच पर तो जो नृत्य में सम्मिलित होते हैं, वही आएंगे। आप अपनी जगह बैठे। वहां से ताली बजाएं। आनंदित हों। गीत दोहराएं। 147
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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