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________________ गीता दर्शन भाग - 3 एक दिन पीटर महान खुद गया देखने। सच में इतना बड़ा पत्थर था कि उसे काट-काटकर हटाने के सिवाय कोई उपाय उस समय नहीं था। एक बैलगाड़ी वाला किसान पास से गुजरता था, वह हंसने लगा। उसने कहा, लाखों रुपए ! हम सस्ते में जमीन सपाट कर दे सकते हैं। इंजीनियर हंसे, सम्राट हंसा, कहा कि भोला किसान है, क्यों पागलपन में पड़ता है! उसने कहा कि हम कर ही देंगे सस्ते में, इसमें कोई लाखों का सवाल नहीं है। और उसने कर दिया। तो उस महल के नीचे एक पत्थर लगाया था पीटर महान ने उस किसान की स्मृति में – उस किसान की स्मृति में । उस किसान ने बहुत कम, कुछ ही हजार रुपयों में वह पत्थर सपाट कर दिया। लेकिन उसने और ढंग से सोचा । सोचा कम, और किया कुछ ज्यादा । उसने पत्थर को काट-काटकर फेंकने का खयाल ही नहीं लाया। उसने तो पत्थर के चारों तरफ गड्ढा खोदना शुरू करवाया। चारों तरफ गड्ढा खोदा और उस पत्थर को गड्ढे में नीचे गिरा दिया, ऊपर से मिट्टी डलवा दी। जमीन सपाट हो गई। पीटर जब देखने आया, तो उसने कहा, वह पत्थर कहां गया ? उस किसान ने कहा, पत्थर से आपको क्या प्रयोजन! जमीन सपाट चाहिए, जमीन सपाट हो गई। लेकिन पीटर महान बोला कि मैं यह जानना चाहता हूं, वह पत्थर गया कहां ? उसको हटाना बहुत मुश्किल था। उस किसान ने कहा कि आप सदा उसको दूर हटाने की भाषा में सोचते थे, हमने उसको और गहराई में पहुंचा दिया। तो उसके नाम पर एक स्मरण का पत्थर पीटर ने लगवाया था कि बड़े इंजीनियर जिसे महीनों सोचते रहे और हल न कर पाए, एक छोटे-से ग्रामीण किसान ने उसे हल कर दिया। कई बार बड़े बुद्धिमान जिसे हल नहीं कर पाते, छोटे-से प्रयोगकर्ता उसे हल कर लेते हैं। और योग के संबंध में तो ऐसा ही मामला है - बिलकुल ऐसा ही मामला है। आप अगर सोच-सोचकर हल करना चाहें, तो जिंदगी में कोई प्रश्न हल नहीं होगा। अगर आप चाहते हों कि शांत हो जाएं और विचार कर-करके शांत होना चाहें, आप कभी शांत न हो पाएंगे। क्योंकि विचार करना सिर्फ एक और तरह की अशांति है, और कुछ भी नहीं। आप सोचते हों, विचार कर-करके शांत होंगे, तो आप और अशांत हो जाएंगे; क्योंकि विचार करना एक अशांति से ज्यादा नहीं है। इसलिए जो लोग शांत होना चाहते हैं, वे उन लोगों से भी ज्यादा अशांत हो जाते हैं, जो शांत होने की फिक्र नहीं करते। उनकी अशांति दोहरी हो जाती है। एक तो अशांति होती ही है और एक अशांति और पकड़ लेती है कि शांत कैसे हों ! लेकिन कोई छोटी-सी प्रक्रिया चित्त को एकदम शांत कर जाती | है । कोई बहुत छोटी-सी प्रक्रिया, कोई मेथड चित्त को ऐसे शांत कर जाता है, जैसे वह कभी अशांत ही न था। काटता करीब-करीब ऐसा है कि जैसे कोई किसी वृक्ष के रहे और सोचे कि वृक्ष को समाप्त करना है। वह पत्ते काट न पाए | और नए पत्ते आ जाएं। और वृक्ष की आदतें ऐसी हैं कि एक पत्ता | काटो, तो चार आ जाते हैं। वृक्ष समझता है, कलम की जा रही है। | जब तक जड़ न काटी जाए, तब तक वृक्ष के पत्ते काटने से वृक्ष का अंत नहीं होता। हम सब एक-एक विचार से लड़ते रहते हैं। कोई कहता है कि मुझे क्रोध बहुत आता है, तो मेरा क्रोध कैसे ठीक हो जाए? मेरे पास लोग आते हैं। कोई कहता है, क्रोध कैसे ठीक हो जाए? क्रोध, बस क्रोध ठीक हो जाए। वह समझता है कि क्रोध कोई अलग चीज है लोभ से । वह समझता है, लोभ कोई अलग चीज है मान से। वह समझता है, मान कोई अलग चीज है काम से। वह समझता है, ये सब अलग चीजें हैं। अलग चीजें नहीं हैं, सब पत्ते हैं। और एक | को काटिएगा, तो चार निकल आएंगे। योग कहता है, जड़ को काटिए, पत्तों को मत काटिए । जड़ कटं गई, तो पूरा वृक्ष गिर जाएगा। क्रोध नहीं गिर सकता उस आदमी का, जिसका काम बाकी है। | उस आदमी का लोभ नहीं गिर सकता, जिसका काम बाकी है। उस आदमी का मान नहीं गिर सकता, अहंकार नहीं गिर सकता, | जिसका काम बाकी है। और मजा यह है कि चार में से कोई एक भी बच जाए, तो बाकी तीन अनिवार्य रूप से मौजूद रहेंगे। वे जा नहीं सकते। हां, यह हो सकता है कि आपमें एक की मात्रा थोड़ी ज्यादा हो, दूसरे की थोड़ी कम हो। लेकिन अगर चारों का हिसाब जोड़ा जाए, तो सब आदमियों में बराबर मात्रा मिलेगी – चारों को जोड़ लिया जाए, तो लेकिन हम सब उस सर्कस के बंदरों जैसे हैं। मैंने सुना है कि एक सर्कस के मालिक के पास बंदर थे। वह सुबह उनको चार रोटी | देता, शाम को तीन रोटी। एक दिन उसने बंदरों से कहा कि कल से हम व्यवस्था बदल रहे हैं । तुम्हें सुबह तीन रोटी मिलेंगी, शाम चार रोटी। बंदर एकदम नाराज हो गए। रोज सुबह चार रोटी मिलती 144
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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