________________
योगाभ्यास - गलत को काटने के लिए
मारी किसी आदमी को भी न थी। अभी भी आदिवासियों को नींद की कोई बीमारी नहीं है। आदिवासी भरोसा ही नहीं कर सकता कि इन्सोमनिया क्या होता है ! आदिवासी से कहिए कि ऐसे लोग भी हैं, जिनको नींद नहीं आती, तो वह बहुत हैरान हो जाता है कि कैसे? क्या हो गया? आदिवासी से पूछिए कि तुम कैसे सो जाते
? वह कहता है, सोने के लिए कुछ करना पड़ता है! बस, हम सिर रखते हैं और सो जाते हैं।
जानकर आप हैरान होंगे कि जो आदिवासी सभ्यता के और भी कम संपर्क में आए हैं, उनको स्वप्न भी न के बराबर आते हैं-न के बराबर ! इसलिए जिस आदिवासी को स्वप्न आ जाता है, वह विशेष हो जाता है – विशेष ! वह साधारण आदमी नहीं समझा जाता, विजनरी, मिस्टिक, कुछ खास आदमी! बड़ी घटना घट रही है !
आज भी जमीन पर ऐसी आदिवासी कौमें हैं; जैसे एस्कीमो हैं, जो कि दूर ध्रुव पर रहते हैं । उनको अब भी भरोसा नहीं आता कि सब लोगों को सपने आते हैं। लेकिन अमेरिका के वैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा आदमी ही नहीं है, जिसको सपना न आता हो ! वे अमेरिका के आदमी के बाबत बिलकुल ठीक कह रहे हैं। उनके अनुभव में जितने आदमी आते हैं, सबको सपने आते हैं। वे तो कहते हैं, जो आदमी कहता है, मुझे सपना नहीं आता, उसकी सिर्फ मेमोरी कमजोर है। और कोई मामला नहीं है । उसको याद नहीं रहता। आता तो है ही।
और अब तो उन्होंने यंत्र बना लिए हैं, जो बता देते हैं कि सपना आ रहा है कि नहीं आ रहा है। इसलिए अब आप धोखा भी नहीं दे सकते। सुबह यह भी नहीं कह सकते कि मुझे याद ही नहीं, तो कैसे आया? अब तो यंत्र है, जो आपकी खोपड़ी पर लगा रहता है और रातभर ग्राफ बनाता रहता है, कब सपना चल रहा है, कब नहीं चल रहा है। और अब तो धीरे-धीरे ग्राफ इतना विकसित हुआ है कि आपके भीतर सेक्सुअल ड्रीम चल रहा है, तो भी ग्राफ खबर देगा। रंग बदल जाएगा स्याही का। क्योंकि आपके मस्तिष्क में जब तंतु कामोत्तेजना से भर जाते हैं, तो उनके कंपन, उनकी वेव्स बदल जाती हैं। वह ग्राफ पकड़ लेगा।
अब आपके तथाकथित ब्रह्मचारियों को बड़ी कठिनाई होगी। क्योंकि दिनभर ब्रह्मचर्य साधना बहुत आसान है, सवाल रात का है, नींद का है, सपने का है। वह भी पकड़ लिया जाएगा। वह पकड़ा जाएगा, उसमें कोई अड़चन नहीं है। क्योंकि स्वप्न की क्वालिटी
| अलग-अलग होती है। और प्रत्येक स्वप्न की जो कंपन विधि है, वह अलग-अलग होती है। जब आपके भीतर कोई कामोत्तेजक स्वप्न चलता है, तो स्वप्न बिलकुल विक्षिप्त हो जाता है और ग्राफ | बिलकुल पागल की तरह लकीरें खींचने लगता है। जब आपके भीतर गहरी नींद होती है, तो स्वप्न बिलकुल बंद हो जाता है; ग्राफ सीधी लकीर खींचने लगता है; उसमें कंपन खो जाते हैं।
लेकिन बड़ी हैरानी की बात है कि सभ्य आदमी, सुशिक्षित आदमी रातभर में मुश्किल से दस मिनट गहरी नींद में होता है, जब स्वप्न नहीं होता। सिर्फ दस मिनट पूरी रात स्वप्न चलता रहता है।
लेकिन आदिवासी अभी भी हैं, जिनको सपना नहीं चलता; | जिनकी नींद प्रगाढ़ है । स्वभावतः, सुबह उनकी आंखों में जो निर्दोष भाव दिखाई पड़ता है, वह उस आदमी की आंख में नहीं दिखाई पड़ सकता जिसको रातभर सपना चला है। सुबह आदिवासी की आंख वैसे ही होती है, जैसे गाय की उतनी ही सरल, उतनी ही भोली, उतनी ही निष्कपट। रात वह इतनी गहराई में गया है कि हम कह सकते हैं कि बेहोशी में ठीक परमात्मा में उतर गया है।
सुषुप्ति समाधि ही है। सिर्फ बेहोश समाधि है, इतना ही फर्क है। उपनिषद तो कहते हैं, सुषुप्ति जैसी ही है समाधि । एक ही उदाहरण उपनिषद देते हैं। समाधि कैसी ? सुषुप्ति जैसी। फर्क ? फर्क इतना, कि समाधि में आपको होश रहता है और सुषुप्ति में आपको होश नहीं रहता ।
127
आप परमात्मा की गोद में सुषुप्ति में भी पहुंच जाते हैं, लेकिन | आपको पता नहीं रहता । समाधि में भी पहुंचते हैं, लेकिन जागते हुए पहुंचते हैं। लेकिन फायदा दोनों में बराबर मिल जाता है।
लेकिन सभ्य आदमी की नींद ही खो गई है, सुषुप्ति बहुत दूर की | बात है। स्वप्न ही हमारा कुल जमा हाथ में रह गया है। जैसे कि लहरों में सागर के ऊपर ही ऊपर रहते हों, गहरे कभी न जा पाते हों, ऐसे ही नींद में भी गहरे नहीं जा पाते ।
स्वयं के भीतर पहुंचने के लिए कम से कम गहरी नींद तो जरूरी ही है। लेकिन गहरी नींद उसे ही आएगी जिसका श्रम और विश्राम संतुलित है; जिसका भोजन और भूख संतुलित है; जिसकी वाणी और मौन संतुलित है; उसके लिए ही गहरी नींद उपलब्ध होगी। वह गहरी नींद का फल और पुरस्कार उसको मिलता है, जिसका जीवन संतुलित है।
नींद में ही जाना मुश्किल हो गया है, ध्यान में जाना तो बहुत मुश्किल है। क्योंकि ध्यान तो और आगे की बात हो गई, जागते