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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 बहुत सोचने जैसा है। भविष्य में परिग्रह भारी होता जाएगा, होता | |घर लौटता है, तो सोच लेता है कि आज क्या रिश्वत ले चलनी है। जा रहा है, रोज बढ़ता जा रहा है। क्योंकि बच्चा दरवाजे पर खड़ा होगा। छोटा-सा बच्चा, जिसकी __ आज योरोप में तो लोग, आम प्रचलित कहावत हो गई है कि अभी जीवन की कोई ताकत नहीं, कुछ नहीं। उससे भी बाप डरता पति-पत्नी एक बच्चे को पैदा करें या न करें, तो सोचते हैं कि एक है घर लौटते वक्त। छोटे-छोटे बच्चों से भी बाप और मां को झूठ बच्चा पैदा करें कि एक फ्रिज खरीद लें? एक बच्चा पैदा करें कि | | बोलना पड़ता है। पिक्चर देखने जाते हैं, तो कहते हैं, गीता ज्ञान एक और नया माडल कार का निकला है, वह खरीद लें? एक सत्र में जा रहे हैं! बच्चा पैदा करें कि टी.वी. का एक सेट खरीद लें? यह विकल्प ___ व्यक्ति के साथ संबंध बनाना जटिल बात है। छोटा-सा जीवित है! क्योंकि एक बच्चा इतना खर्चा लाएगा, उससे तो कार का नया | | व्यक्ति और जटिलताएं शुरू हो जाती हैं। तो हम फिर व्यक्तियों को माडल खरीदा जा सकता है। और कार ज्यादा भरोसे की है। ज्यादा | हटाना शुरू कर देते हैं। हटा दो व्यक्ति को, वस्तुओं से संबंध बना भरोसे की है। जहां चाहो, वहां खड़ा करो; जहां चाहो, मत खड़ा | लो। घर में जाओ, जहां भी नजर डालो, आप ही मालिक हो। करो। जो व्यवहार करना चाहो, करो। रिटेलिएट नहीं करती, उत्तर | कुर्सियां रखी हैं, फर्नीचर रखा है, फ्रिज रखा है, कार रखी है, . भी नहीं देती, झंझट भी नहीं करती। गुस्सा आ आए, गाली दो, | | रेडिओ रखे हैं। आप बिलकुल मालिक की तरह हैं। जहां भी नजर लात मार दो; चुपचाप सह लेती है। डालो, मालिक हैं। तो वस्तुएं बढ़ती जाती हैं, व्यक्ति से संबंध क्षीण तो वस्तुओं पर हमारा आग्रह बढ़ता चला जाता है। आदमी अपने होते चले जाते हैं। सभ्यता जब विकसित होती है, तो वस्तुओं से चारों तरफ वस्तुओं का एक जाल इकट्ठा करके सम्राट होकर बैठ संबंध रह जाते हैं आदमियों के और आदमियों से खो जाते हैं। जाता है बीच में कि मैं मालिक हूं। व्यक्तियों को इकट्ठा करके ऐसी | | इसलिए दूसरे सूत्र को जानकर मैंने फिर से कह देना चाहा, वह मालकियत बड़ी कठिन है! प्रौढ़ व्यक्तियों को इकट्ठा करके, तो छूट गया था, कि अपरिग्रह। बहुत कठिन है। प्राइमरी स्कूल के शिक्षक से पूछो कि तीस छोटे-से अपरिग्रही चित्त वह है, जो वस्तुओं की मालकियत में किसी तरह बच्चे इकट्ठे हो जाते हैं चारों तरफ, तो कैसी मुसीबत पैदा हो जाती का रस नहीं लेता। उपयोगिता अलग बात है, रस अलग बात है। है। जरा-जरा से बच्चे, लेकिन शिक्षक की जान ऐसी अटकी रहती| वस्तुओं में जो रस नहीं लेता, वस्तुओं के साथ जो किसी तरह की है कि वह घंटे की राह देखता रहता है कि कब घंटा बजे और वह गुलामी के संबंध निर्मित नहीं करता, वस्तुओं के साथ जिसका कोई । भागे! क्योंकि तीस जीवित बच्चे! जरा सिर मोड़कर तख्ते पर कुछ इनफैचुएशन, वस्तुओं के साथ जिसका कोई रोमांस नहीं चलता। लिखना शुरू करता है कि यहां बगावत फैल जाती है। | रोमांस चलता है वस्तुओं के साथ। जब आप कभी नई कार वैसे मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तख्ते को इसीलिए ऐसा बनाया है खरीदने का सोचते हैं, तो बहुत फर्क नहीं पड़ता। स्थिति कि शिक्षक बीच-बीच में पीठ कर पाए। क्योंकि अगर छः-सात घंटे | करीब-करीब वैसे हो जाती है, जैसे कोई नया व्यक्ति किसी नई वह पीठ ही न करे, तो बच्चों को इतना सप्रेस करना पड़े अपने | लड़की के प्रेम में पड़ जाता है और रात सपने देखता है। कार उसी आपको कि वे बीमार पड़ जाएं। तो रिलीफ के लिए मौका मिल जाता तरह सपनों में आने लगती है! वस्तुओं का भी इनफैचुएशन है। है। पीठ करके तख्ते पर लिखता है, तब तक कोई मजाक में कुछ | उनके साथ भी रोमांस चल पड़ता है। यह वस्तुओं में रस न हो, कह देता है, कोई पत्थर उछाल देता है, कोई चोट कर देता है, कोई | वस्तुओं का उपयोग हो। आंख मिचका देता है, बच्चे रिलैक्स हो जाते हैं। तब तक शिक्षक | और ध्यान रहे, वस्तुओं में जितना ज्यादा रस होगा, आप उतना वापस लौटता है; फिर पढ़ाई शुरू हो जाती है। वह बच्चों के लिए ही कम उपयोग कर पाएंगे। जितना कम रस होगा वस्तु का, उतना बड़ा सहयोगी है तख्ता, जिसकी वजह से शिक्षक को बीच-बीच में पूरा उपयोग कर पाएंगे। क्योंकि उपयोग के लिए एक डिटैचमेंट, मुड़ना पड़ता है। लेकिन ये जिंदा बच्चे हैं, इन पर मालकियत! एक अनासक्त दूरी जरूरी है। छोटे-से बच्चे पर भी मालकियत करनी बहुत मुश्किल बात है। मैं एक मित्र को जानता हूं। दस साल से मैं उनके बरांडे में एक मां-बाप भी छोटे-छोटे बच्चों को फुसलाते हैं और रिश्वत खिलाते स्कूटर को रखा हुआ देखता हूं। दो-चार बार पहले पहल मैंने पूछा हैं। हां, रिश्वत बच्चों जैसी होती है, चाकलेट है, टाफी है। बाप कि क्या स्कूटर बिगड़ गया है? उन्होंने कहा, ऐसा दुश्मन का न 108
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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