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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 लोकप्रिय करने वाले पहले व्यक्ति हैं। पहली दफा जनता में उन्होंने वह बात कही, जो कि सदा थोड़े साधकों के बीच, थोड़े गहन साधकों के बीच कही गई थी। इसलिए तेईस तीर्थंकरों को ब्रह्मचर्य की कोई बात नहीं करनी पड़ी। महावीर को बहुत जोर से करनी पड़ी। सबसे ज्यादा जोर ब्रह्मचर्य पर देना पड़ा, क्योंकि अब्रह्मचारियों के बीच चर्चा की जा रही थी। कृष्ण जब अर्जुन से कह रहे हैं कि ब्रह्मचर्य व्रत में ठहरा हुआ! इसका यह मतलब नहीं है कि ब्रह्मचारी, इसका इतना ही मतलब है कि ध्यान के क्षण में ब्रह्मचर्य व्रत में ठहरा हुआ। हां, यह बड़े मजे की बात है कि अगर कोई ध्यान के क्षण में ब्रह्मचर्य में ठहर जाए, क्षणभर को भी ठहर जाए, तो फिर अब्रह्मचर्य में जाना रोज-रोज मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि जब एक दफे ऊर्जा ऊपर चढ़ जाए, तो इतना आनंद लाती है, जितना नीचे सेक्स में गिराई गई ऊर्जा में सपने में भी नहीं मिल सकता है। सोचने में भी नहीं मिल सकता है। उससे कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है। एक बार यह ऊपर का अनुभव हो जाए, तो ऊर्जा नीचे जाने की यात्रा बंद कर देगी। इसलिए तीन बातें कहीं। थिर आसन में, सीधी रीढ़ के साथ बैठा हुआ, अर्धखुली आंख, नासाग्र दृष्टि, आज्ञा चक्र पर पड़ती रहे चोट, ब्रह्मचर्य व्रत में ठहरा हुआ, तो ऐसा व्यक्ति, कृष्ण कहते हैं, मुझे उपलब्ध हो जाता है, मुझमें प्रवेश कर जाता है, मुझसे एक हो जाता है। और जब भी कृष्ण कहते हैं मुझसे, तब वे कहते हैं परमात्मा से। अर्जुन से वे कह सके सीधी-सीधी बात, मुझसे। क्योंकि जिसने जाना परमात्मा को, वह परमात्मा हो गया। इसमें कोई अस्मिता की घोषणा नहीं है कि कृष्ण कह रहे हैं, मैं परमात्मा हूं। इसमें सीधे तथ्य का उदघोषण है। वे हैं; हैं ही। और जो भी जान लेता है परमात्मा को वह परमात्मा ही है। वह कहने का हकदार है कि कहे कि मुझमें। लेकिन वहां मैं जैसी कोई चीज बची नहीं है, तभी वह हकदार है। जिसका मैं समाप्त हुआ, वह कह सकता है, मैं परमात्मा हूं। कृष्ण कहते हैं, वह मुझे जान लेता है। और शेष बात हम रात करेंगे। लेकिन अभी उठेंगे नहीं। पांच मिनट कीर्तन में भाग लें, फिर विदा हों। 102
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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