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________________ - अंतर्यात्रा का विज्ञान - कभी आपने सोचा है कि जैसे ही कामवासना का विचार आता | बेहोशी में सोचें, तभी ठीक है। होश में सोचेंगे, तो कहेंगे, क्या है, जननेंद्रिय के पास का केंद्र फौरन सक्रिय हो जाता है। विचार तो मूढ़ता की बातें सोच रहा हूं! खोपड़ी में चलता है, लेकिन केंद्र जननेंद्रिय के पास, सेक्स सेंटर इसलिए कामुक व्यक्ति को शराब बड़ी सहयोगी हो जाती है। के पास सक्रिय हो जाता है। बल्कि कई दफा तो ऐसा होता है कि | उन व्यक्तियों को, जिनकी काम-शक्ति क्षीण हो गई हो, उनको भी आपको भीतर कामवासना का विचार चल रहा है, इसका पता ही शराब बड़ी सहयोगी हो जाती है। क्योंकि वे फिर बेहोशी से इतने तब चलता है, जब सेक्स सेंटर सक्रिय हो जाता है। वह पीछे भर जाते हैं कि फिर काम-चिंतन में लीन हो पाते हैं। धीरे-धीरे सरकता रहता है। लेकिन विचार तो मस्तिष्क में चलता तो ध्यान करने के पहले अगर आप घंटेभर आंख बंद कर लें। है और केंद्र बहुत दूर है, वह सक्रिय हो जाता है! उसकी भी कुंजी आधी आंख नहीं, आंख बंद कर लें। और सचेत रूप से मेडिटेट है वही। अगर विचार कामवासना का चलेगा, तो आपकी जीवन आन सेक्स-सचेत रूप से, अचेत रूप से नहीं—जानकर ही कि ऊर्जा कामवासना के केंद्र की तरफ प्रवाहित हो जाएगी। अब मैं कामवासना पर चिंतन शुरू करता हूं। और शुरू करें। पांच ध्यान के क्षण में अगर कामवासना का विचार चला, तो आप | | मिनट से ज्यादा आप न कर पाएंगे। और जैसे ही आप पाएं कि अब ऊपर तो यात्रा कम करेंगे, बल्कि इतनी नीचे की यात्रा कर जाएंगे. | करना मुश्किल हुआ जा रहा है, अब कर ही नहीं सकता, तब ध्यान जितनी आपने कभी भी न की होगी। इसलिए सचेत किया है। में प्रवेश करें। तो शायद पंद्रह मिनट, आधा घंटा आपके चित्त में साधारणतः भी आप कामवासना में इतने नीचे नहीं जा सकते, कोई काम का विचार नहीं होगा। क्योंकि अर्जुन कोई ब्रह्मचारी नहीं जितना आधी आंख खुली हो, नासाग्र हो दृष्टि और उस वक्त अगर है। पूर्ण ब्रह्मचारी हो, तब तो यह कोई सवाल नहीं उठता। तब तो काम-विचार चल जाए, तो आप इतनी तीव्रता से कामवासना में | ब्रह्मचर्य की याद दिलाने की भी जरूरत नहीं है। गिरेंगे, जिसका हिसाब नहीं। एक बहुत मजे की घटना आपसे कहूं। इसलिए बहुत लोगों को ध्यान की प्रक्रिया शुरू करने पर महावीर के पहले जैनों के तेईस तीर्थंकरों ने ब्रह्मचर्य की कभी कामवासना के बढ़ने का अनुभव होता है। उसका कारण है। बहुत | बात नहीं की, नेवर। महावीर के पहले तेईस तीर्थंकरों ने जैनों के लोगों को...न मालूम कितने लोग मुझे आकर कहते हैं कि यह क्या कभी नहीं कहा, ब्रह्मचर्य। वे चार धर्मों की बात करते उलटा हुआ? हमने ध्यान शुरू किया है, तो कामवासना और ज्यादा थे-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य। इसलिए पार्श्वनाथ तक मालूम पड़ती है! उसके ज्यादा मालूम पड़ने का कारण है। के धर्म का नाम चतुर्याम धर्म है। ___ अगर ध्यान के क्षण में कामवासना पकड़ गई, तो कामवासना महावीर को ब्रह्मचर्य जोड़ना पड़ा, पांच महाव्रत बनाने पड़े; एक को ध्यान की जो ऊर्जा पैदा हो रही है, वह भी मिल जाएगी। और जोड़ना पड़ा। जो लोग खोज-बीन करते हैं इतिहास की, उन्हें . इसलिए ब्रह्मचर्य व्रत में थिर होकर। उस क्षण तो कम से कम कोई | बड़ी हैरानी होती है कि क्या महावीर को ब्रह्मचर्य का खयाल आया! काम-विचार न चलता हो। बाकी तेईस तीर्थंकरों ने क्यों ब्रह्मचर्य की बात नहीं की? तो अगर आपको चलाना ही हो, तो एक सरल तरकीब आपको ये तेईस तीर्थंकर जिन लोगों से बात कर रहे थे, वे निष्णात कहता हूं। ध्यान करने के पहले घंटेभर काम-चिंतन कर लें। पक्का ब्रह्मचारी थे। ये उपदेश जिनको दिए गए थे, उनके लिए ब्रह्मचर्य ही कर लें कि परमात्मा को स्मरण करने के पहले घंटेभर बैठकर | सहज था। यह लोक-चर्चा नहीं थी। यह आम जनता से कही गई काम का चिंतन करेंगे, यौन-चिंतन करेंगे। बात नहीं थी, जो कि ब्रह्मचारी नहीं हैं। और यह बड़े मजे की बात है कि अगर कांशसली यौन-चिंतन | ___महावीर ने पहली दफा तीर्थंकरों के आकल्ट मैसेज को, जो बहुत करें, तो घंटाभर बहुत दूर है, पांच मिनट करना मुश्किल हो गुप्त मैसेज थी, बहुत छिपी मैसेज थी, जो कि बहुत गुप्त राज था जाएगा-चेतन होकर अगर करें, सावधानी से अगर करें। | और केवल निष्णात साधकों को दिया जाता था, उसको मासेस का काम-चिंतन की एक दूसरी कुंजी है कि वह अचेतन चलता है, बनाया। और इसीलिए दूसरी घटना घटी कि तेईस तीर्थकर फीके चेतन नहीं। अगर आप होशपूर्वक करेंगे, तो आप खुद ही अपने पड़ गए और ऐसा लगने लगा कि महावीर जैन धर्म के स्थापक हैं। पर हंसेंगे कि यह मैं क्या-क्या मूढ़ता की बातें सोच रहा हूं! वह तो क्योंकि वे पहले, पहले पापुलाइजर हैं, पापुलाइज करने वाले हैं, | 101]
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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